अभिनेता सुशांत की मौत से उठे सवाल
फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की बेहद दुखद परिस्थितियों में मौत हुई है. उम्मीद की जा रही है कि सीबीआइ जांच से उनकी मौत के राज से पर्दा उठेगा.
आशुतोष चतुर्वेदी, प्रधान संपादक, प्रभात खबर
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देश के एक उभरते फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की दुखद परिस्थितियों में मौत के मामले की गुत्थी अभी तक नहीं सुलझी है. केंद्र सरकार ने अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत की जांच सीबीआइ से कराने की बिहार सरकार की सिफारिश मान ली है. इससे पहले महाराष्ट्र पुलिस का जांच को लेकर कैसा रवैया रहा, यह हम सब के सामने है. बिहार सरकार की पहल के बाद ही इस मामले में जांच आगे बढ़ी है. सुशांत बिहार-झारखंड के सबसे उभरते अभिनेता थे.
शत्रुघ्न सिन्हा के बाद इस इलाके के कई अभिनेता बॉलीवुड में चमके, लेकिन इतना बड़ा स्टार सामने नहीं आया था. बेहद दुखद परिस्थितियों में उनकी मौत हो गयी. उम्मीद की जा रही है कि सीबीआइ जांच से उनकी मौत के राज से पर्दा उठेगा. वजह जो भी हो, जो अब तक की सूचनाएं सामने आयीं हैं, उनसे लगता है कि सुशांत अवसाद से ग्रसित थे. सुशांत की आत्महत्या ने बॉलीवुड पर ढका ग्लैमर का पर्दा उठा दिया है. पिछले कुछ महीनों में मनोरंजन उद्योग में हुई आत्महत्याओं को जान कर आप अचंभित रह जायेंगे. 25 जनवरी को टीवी अभिनेत्री सेजल शर्मा ने आत्महत्या कर ली.
इसके बाद 16 मई को अभिनेता मनमीत ग्रेवाल, 27 मई को टीवी एक्टर प्रेक्षा मेहता, 14 जून को फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत, 26 जून को टिकटॉक स्टार सिया कक्कड़, 3 जुलाई को टिकटॉक स्टार संध्या चौहान, 8 जुलाई को कन्नड़ टीवी स्टार सुशील गौड़ा, 29 जुलाई को मराठी फिल्म अभिनेता आशुतोष भाखरे, 2 अगस्त को भोजपुरी फिल्म अभिनेत्री अनुपमा पाठक और 6 अगस्त को टीवी एक्टर समीर शर्मा ने आत्महत्या कर ली. इन घटनाओं से लगता है कि मनोरंजन उद्योग मानसिक अवसाद की बड़ी समस्या से जूझ रहा है. दरअसल, अवसाद नये दौर की महामारी के रूप में उभरा है. किसी भी समाज के लिए यह बेहद चिंताजनक स्थिति है. कोई शख्स आत्महत्या को आखिरी विकल्प क्यों मान रहा है?
सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में भाई-भतीजावाद पर भी बहस चल रही है. इसे अवसाद की मुख्य वजह बताया जा रहा है. इसको लेकर कुछ कलाकार खुल कर अपनी बातें रख रहे हैं. अभिनेत्री कंगना रनौत ने कई गंभीर आरोप लगाये हैं. इस बहस में चेतन भगत जैसे लेखक भी कूदे हैं और जाने-माने संगीतकार एआर रहमान ने भी इस बात की ओर इशारा किया है. हाल ही में एक इंटरव्यू में एआर रहमान ने कहा कि पिछले पांच वर्षों में उन्होंने केवल पांच फिल्मों में ही संगीत दिया है. वे कभी अच्छी फिल्मों को न नहीं कहते हैं, लेकिन बॉलीवुड में एक गैंग है, जो उनके खिलाफ झूठी अफवाहें फैला रहा है. लोग उनसे उम्मीद करते हैं कि वे अच्छा काम करें, लेकिन लोगों का एक गिरोह है, जो ऐसा नहीं होने दे रहा है.
दूसरी ओर, जाने-माने लेखक चेतन भगत ने दावा किया है कि फिल्म निर्माता विधु विनोद चोपड़ा ने उन्हें आत्महत्या करने के लिए लगभग मजबूर कर दिया था. चेतन भगत ने चोपड़ा की पत्नी और फिल्म समीक्षक अनुपमा चोपड़ा को एक जवाबी ट्वीट किया – मैडम, जब आपके पति ने मुझे सबके सामने धमकाया था और बेशर्मी से मेरा सारा क्रेडिट खुद ले लिया था, मेरे कहे जाने पर भी मुझे फिल्म 3ईडियट्स में क्रेडिट देने से इनकार कर दिया था और मुझे आत्महत्या तक करने के लिए मजबूर कर दिया था, उस समय आप सिर्फ तमाशा देख रही थीं.
ऐसा नहीं है कि मनोरंजन उद्योग से जुड़े लोगों ने पहले कभी आत्महत्याएं नहीं की हों. यदा-कदा ऐसी घटनाएं सामने आती रही हैं, लेकिन इसमें अचानक तेजी आयी है और यह प्रवृत्ति बढ़ी है. पुराने मामलों पर नजर दौड़ाएं, तो दिसंबर, 2019 में फिल्म और टीवी अभिनेता कुशल पंजाबी ने आत्महत्या कर ली थी. वे अवसादग्रस्त थे. मार्च, 2017 में जाने-माने अभिनेता जितेंद्र के चचेरे भाई नितिन कपूर ने एक बिल्डिंग से कूद कर जान दे दी थी. नितिन ने दक्षिण की एक अभिनेत्री जयासुधा से शादी की थी और वे भी अवसाद से ग्रसित थे.
टीवी सीरियल बालिका वधू में आनंदी के रोल से चर्चित हुई अभिनेत्री प्रत्यूशा बनर्जी ने 2016 में अपने एपार्टमेंट में आत्महत्या कर ली थी. 2015 में तेलुगू फिल्मों के जाने-माने अभिनेता रंगनाथ ने खुदकुशी कर ली थी. उन्होंने लगभग 300 फिल्मों में काम किया था. 2013 में युवा अभिनेत्री जिया खान ने आत्महत्या कर ली थी. जिया ने निशब्द और गजनी जैसी सुपरहिट फिल्मों में काम किया था. पिछले साल जानी-मानी विज्ञान पत्रिका लैंसेट में 2017 में किये गये एक अध्ययन को प्रकाशित किया था, जिसके अनुसार सात में से एक भारतीय किसी-न-किसी तरह के मानसिक अस्वस्थता से ग्रसित है.
हाल में देश में किये एक अध्ययन के अनुसार कोरोना महामारी और लॉकडाउन से भारतीयों में तनाव बढ़ा है. लगभग 10 हजार भारतीयों पर यह जानने के लिए सर्वेक्षण किया गया कि वे कोरोना वायरस से उत्पन्न परिस्थिति का किस तरह से सामना कर रहे हैं. अध्ययन में शामिल 26 प्रतिशत लोगों ने बताया कि वे हल्के अवसाद से ग्रस्त हैं, जबकि 11 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे काफी हद तक अवसाद से ग्रस्त हैं, वहीं 6 प्रतिशत लोगों ने अवसाद के गंभीर लक्षण होने की बात स्वीकार की.
मेरा मानना है कि आत्महत्या से बड़ा कोई अपराध नहीं है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया में लगभग आठ लाख लोग हर साल आत्महत्या कर लेते हैं. ऐसा नहीं है कि केवल निराशा और अवसाद से पीड़ित भारत में ही हों. सबसे विकसित देश अमेरिका में सबसे अधिक लोग अवसाद पीड़ित हैं, लेकिन चिंताजनक बात यह है कि पीड़ित लोगों में से केवल आधे लोगों का इलाज हो पाता है. आत्महत्या की एक बड़ी वजह आर्थिक परेशानी पायी गयी है.
हमारे पूर्वजों ने वर्षों के अध्ययन और मनन के बाद एक बात कही थी, तेते पांव पसारिये, जेती लांबी सौर यानी जितनी चादर है, उतने ही पैर फैलाएं, लेकिन हम इस जीवन-दर्शन को भूल गये हैं और आर्थिक चकाचौंध में फंस गये हैं. अब हम उधार लेकर घी पीने के विदेशी चिंतन के मायाजाल में फंस गये हैं. जाहिर है कि ऐसी परिस्थिति में जीवन में ऐसे अनेक अवसर आयेंगे, जब व्यक्ति आर्थिक कारणों से तनाव का शिकार होगा. यह सही है कि मौजूदा दौर की गलाकाट प्रतिस्पर्धा के कारण लोगों को जीवन में भारी मानसिक दबाव का सामना करना पड़ता है और वे अवसाद में चले जाते हैं. कई लोग संघर्ष करने के बजाये हार मान कर आत्महत्या का सहज रास्ता चुन लेते हैं.
यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि परीक्षा अथवा प्रेम में असफल होने, नौकरी छूटने अथवा बीमारी जैसी वजह से भी लोग आत्महत्या कर लेते हैं. सबसे बड़ी समस्या यह है कि भारत में अवसाद को बीमारी नहीं माना जाता. इलाज तो दूर, पीड़ित व्यक्ति की मदद करने के बजाये लोग उसका उपहास उड़ाते हैं. कई बार तो पढ़े-लिखे लोग भी झाड़-फूंक के चक्कर में फंस जाते हैं. दरअसल, भारत में परंपरागत परिवार का तानाबाना टूट गया है. व्यक्ति एकाकी हो गया है. यही वजह है कि अनेक लोग अवसादग्रस्त हो जाते हैं और आत्महत्या जैसे अतिरेकी कदम उठा लेते हैं.