राहुल को अभी बहुत चलना होगा
भारत जोड़ो यात्रा ऐसे 200 से अधिक सीटों से गुजरी है, जहां कांग्रेस का सीधा मुकाबला भाजपा से है. लोकसभा में शतक बनाने के लिए कांग्रेस कम से कम 50 सीटें जीतने की आशा कर रही है.
इतिहास हमें बताता है कि हजारों साल पहले अयोध्या के राजकुमार ने पैदल यात्रा शुरू की थी तथा धर्म की ओर से युद्ध करने के लिए भारतवर्ष की सीमा को पार किया था. आज भी आदर्श पुरुष का पवित्र यात्रा-वृत्तांत रामायण देश को एकताबद्ध करता है. राहुल गांधी (एक ऐसे अकेले सिपाही, जो नये मिथक निर्माता होने का प्रयास कर रहे हैं) द्वारा एकता के नाम पर की जा रही राजनीतिक यात्रा स्वयं को पहचान के संकट से ग्रस्त कर रही है.
शुक्रवार को कांग्रेस के एक ट्विटर पोस्ट में हरियाणा के लोगों का ‘राम राम हरियाणा’ कहकर अभिवादन किया गया. इसमें यह भी सूचित किया गया था कि राहुल गांधी अपनी 3,500 किलोमीटर लंबी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान इस राज्य से दूसरी बार गुजर रहे हैं. उल्लेखनीय है कि कांग्रेस पहली बार राम का नाम ले रही थी. सितंबर, 2022 में कन्याकुमारी से शुरू हुई यात्रा में तरह-तरह के नारे और गाने, जैसे- मिले कदम, जुड़े वतन, बेरोजगारी का जाल तोड़ो, भारत जोड़ो, नफरत छोड़ो आदि, चल रहे हैं.
मीलों तक लता मंगेशकर के गाये देशभक्ति गीत बजाये जा रहे हैं. पार्टी की सोशल मीडिया टीम भी बहुत सक्रिय है. लेकिन राम पहली बार आये, नये हिंदू से सांस्कृतिक जुड़ाव के प्रयास के रूप में. संयोगवश, यह मामला अगरतला में अमित शाह की इस घोषणा के एक दिन बाद आया कि अयोध्या में राम मंदिर लोकसभा चुनाव से लगभग तीन माह पूर्व एक जनवरी, 2024 को पूजा के लिए खुल जायेगा. अगले चुनाव का आख्यान तैयार हो गया है.
कांग्रेस की नीति धक्के के साथ बढ़ने की है, तो राम भाजपा के लिए एकबद्ध करने वाले ठोस सूत्र हैं. तमाम प्रचार के बावजूद इस यात्रा का संदेश साधारण और अमूर्त अवधारणा पर आधारित है. संभवतः यह एक व्यक्ति में शक्ति के केंद्रित होने की आलोचना करता है तथा सामाजिक एवं राजनीतिक ध्रुवीकरण को रोकना चाहता है. जैसे-जैसे श्रीनगर निकट आता जा रहा है, यात्रा पर उसके प्रभाव के बारे में सवाल खड़े हो रहे हैं.
कांग्रेस इस यात्रा के माध्यम से राहुल गांधी को मोदी के बरक्स उदार, धर्मनिरपेक्ष और विश्वसनीय लोकतांत्रिक विकल्प के रूप में प्रस्तुत कर रही है. यात्रा की निश्चित ही एक मंजिल है, पर इसकी नियति पर तब संदेह हो जाता है, जब इसमें चेहरा चमकाने वाले, सिविल सोसाइटी के बड़े लोग, दोयम दर्जे के फिल्म स्टार आदि शामिल होते हैं. कांग्रेस ने इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया के लिए राहुल को आधुनिक साजो-सामान मुहैया कराया है. जब भी यह यात्रा शुरू होती है, देशभक्ति गीत बजाये जाते हैं.
नारे गढ़ने में माहिर कांग्रेसी ट्विटर और फेसबुक पर जुटे हुए हैं. राहुल गांधी के आत्मविश्वास और उन तक आसान पहुंच ने पत्रकारों को चित्त कर दिया है. बीते चार माह में बिना किसी गलती के उनकी धाराप्रवाह बातचीत ने उनके धुर आलोचकों को भी चकित किया है. साल 2004 के बाद से पहली बार उन्होंने ऐसी कोई भूल नहीं की है, जिससे फिर पप्पू होने का ठप्पा लगे. लेकिन राहुल की पदयात्रा तेजतर्रार मोदी का सामना नहीं कर सकती है.
मोदी होने का मतलब केवल अतुलनीय नेतृत्व से संबंधित नहीं है, बल्कि मोदी एक विचार, विचारधारा और संस्थान हैं. मोदी के स्तर तक पहुंचने के लिए राहुल को कई बार चलना पड़ेगा. भारत जोड़ो यात्रा असल में कई हारों के बाद धूमिल हुई राहुल की छवि से ध्यान भटकाने के लिए की गयी कांग्रेस जोड़ो पहल है. यह समृद्धि एवं विकसित भारत के मोदी की दृष्टि का कोई विकल्प नहीं है. मोदी के संदेश की तकनीक में धार्मिक एवं सांस्कृतिक एकता तथा आर्थिक और तकनीकी विकास घुले-मिले हैं. राम और रुपये का उनका वादा है. भारत जोड़ने की राहुल की योजना एक सामाजिक और आर्थिक प्रारूप है.
भाजपा विरोधी दलों की प्रतिक्रिया से लगता है कि यात्रा को केवल अच्छी भावनाओं की फसल ही मिलेगी. अधिकतर बड़े विपक्षी नेता या तो इस यात्रा से दूर रहे हैं या उन्होंने कनिष्ठ नेताओं को राहुल गांधी के साथ फोटो खिंचाने के लिए भेजा है. यात्रा की मुख्य योजना का उद्देश्य राहुल गांधी को आगे रखने का है. वे झंडे लहराते चुने हुए वालंटियरों और सुरक्षाकर्मियों के साथ सड़क के बीच में चलते हैं.
विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि राहुल ने यात्रा से जुड़ने के लिए व्यक्तिगत स्तर पर विपक्षी और क्षेत्रीय दलों के बड़े नेताओं से संपर्क नहीं किया था. उन्होंने या सोनिया गांधी ने 40 से अधिक राज्य इकाइयों के सदस्यों को भी साथ चलने के लिए नहीं बुलाया. एकता की इस कोशिश की यह विडंबना है. नीतीश कुमार यात्रा को कांग्रेस का कार्यक्रम मानते हैं. अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, उमर अब्दुल्ला, सुप्रिया सुले भी राहुल के संग नहीं दिखे.
जमीन से जुड़े कई वरिष्ठ कांग्रेसी भी अनुपस्थित हैं. केवल आदित्य ठाकरे आये. केरल में सीपीएम ने पहले इसे ‘सीट जोड़ो’ अभियान कहा और बाद में प्रशंसा की. पहले दिन केवल एमके स्टालिन यात्रा से जुड़े और उन्होंने राहुल गांधी की खुलकर प्रशंसा की. ममता, नायडू, पवार, मायावती और वामपंथियों का अलग रहना राहुल गांधी के वंशीय एकाकीपन का संकेत है.
हमें इस साल के नौ विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव की प्रतीक्षा करनी चाहिए. कांग्रेस का नुकसान भाजपा के लिए फायदा रहा है. भाजपा द्वारा जीती गयीं 70 प्रतिशत से अधिक सीटें पहले कांग्रेस की होती थीं. भारत जोड़ो यात्रा ऐसे 200 से अधिक सीटों से गुजरी है, जहां कांग्रेस का सीधा मुकाबला भाजपा से है. लोकसभा में शतक बनाने के लिए कांग्रेस कम से कम 50 सीटें जीतने की आशा कर रही है.
उसे राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सत्ता कायम रखनी होगी तथा मध्य प्रदेश और कर्नाटक को जीतना होगा. हालांकि दलित, किसान, अल्पसंख्यक आदि कांग्रेस के पारंपरिक वोटों में यात्रा का असर होना मुश्किल है, पर इससे आंतरिक असंतोष में कमी आयी है. राहुल सफलता के आकांक्षी हैं, लेकिन उनके पास वोट और सीट खींचने का करिश्मा नहीं है. लेकिन इस यात्रा से संगठन में मजबूती आ सकती है और कांग्रेस बेहतर लड़ाई कर सकती है.
विनोबा भावे, चंद्रशेखर, सुनील दत्त, एलके आडवाणी, चंद्रबाबू नायडू, जगन रेड्डी आदि की प्रसिद्ध यात्राओं में स्पष्ट राजनीतिक और सांस्कृतिक संदेश थे. मोदी का 2014 का चुनावी अभियान भी असरदार था. भारत को ऐसा भरोसेमंद विकल्प चाहिए, जिस पर पर्सनलिटी कल्ट और अस्पष्ट शब्दकोश के दाग न हों. राहुल गांधी को अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए अभी बहुत चलना होगा.