एक तस्वीर हजार शब्दों के समान होती है. पिछले दिनों एक तस्वीर आयी, जिसमें विपक्ष के नये नेता राहुल गांधी लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से हाथ मिला रहे हैं तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और संसदीय कार्य मंत्री किरण रिजिजू उनके पीछे खड़े हैं. मोदी और राहुल परंपरा के अनुसार बिरला को आसन तक ले गये थे. विपक्ष की पहली कतार में आने में राहुल को दो दशक का समय लगा है. उनके माता-पिता भी प्रतिपक्ष के नेता रहे हैं. कभी ऐसा दौर भी था, जब वे संसद को खास अहमियत नहीं देते थे. मोदी को घेरने में कांग्रेस नाकाम रही क्योंकि राहुल द्वारा नामित नेता प्रभावी नहीं थे. इस बार मोदी का सामना करने के लिए उन्हें आगे रहना होगा. उनके आचरण और प्रदर्शन से राजनीति में उनका कद निर्धारित होगा. कांग्रेस अपने बूते सरकार नहीं बना सकती है. राहुल गांधी को अगले गांधी युग के लिए साजो-सामान का आविष्कार करना होगा. उन्हें अर्जुन के कौशल और शकुनि की चतुराई की आवश्यकता है ताकि वे वैचारिक रूप से भिन्न और महत्वाकांक्षी सहयोगियों को साध सकें.
उनके पक्ष में आयु और सामाजिक स्वीकार्यता है. सामाजिक और आर्थिक रूप से तथा आयु के हिसाब से उनके गठबंधन के सभी नेता अनुकूल हैं. अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, सुप्रिया सुले, कनिमोजी, उमर अब्दुल्ला, अभिषेक बनर्जी, अरविंद केजरीवाल और आदित्य ठाकरे राहुल के स्वाभाविक सहयोगी हैं. द्रमुक एवं राजद ने उन्हें प्रधानमंत्री के लिए अपनी पसंद बता दिया है. पर सभी को अपने प्रभाव क्षेत्र को बचाना और बढ़ाना है. राहुल के लिए यह अच्छी बात है कि कई राज्यों में कांग्रेस के पास खोने को कुछ खास नहीं है. वे अन्यों के वर्चस्व को स्वीकार कर सकते हैं और कुछ समय के लिए रणनीतिक रूप से पीछे हट सकते हैं. सोनिया गांधी अपने पूर्व आलोचक शरद पवार के साथ नाराजगी दूर कर तथा यूपीए सहयोगियों को अहम, मंत्रालय देकर 2004 में कांग्रेस को सत्ता में लायी थीं. यह एक सबक है. लोकसभा में मोदी के धार को कुंद करना राहुल की बड़ी चुनौती होगी.
राहुल धारदार वक्ता नहीं हैं. उन्हें मोदी की राजनीति, आर्थिक नीति और कूटनीति में कमियां निकालने की कला सीखनी होगी. मोदी ने एक चुनौतीविहीन शासक की तरह राज्य और केंद्र में सरकार चलाया है. अब उन्हें अपने सहयोगियों की मांगों का भी ध्यान रखना होगा. या तो वे उन्हें मानेंगे या गलतियां करेंगे. राहुल सही मौके का फायदा उठा सकते हैं. नेता प्रतिपक्ष के रूप में उन्हें हर क्षण मोदी का सामना करना होगा. उन्हें विशेषज्ञ शोधार्थियों और सलाहकारों की आवश्यकता होगी, जो उन्हें अर्थशास्त्र, राजनीति, सरकार प्रबंधन, रक्षा, विदेश संबंध और पर्यावरण पर राय दे सकें. उन्हें ऐसे लोगों की आवश्यकता होगी, जो प्रभावी ढंग से नैरेटिव का जवाब दे सकें.
क्या राहुल की विचारधारा नेहरू से मेल खाती है? उनके भाषणों से लगता है कि उन्होंने फेबियन समाजवाद के विचार को अपनाया है. ‘दो भारत’ की उनकी बात नेहरू से ली गयी है. सम्मोहक नारे, बड़े आंकड़े और अजीब लक्ष्य मोदी की ताकत के हिस्से हैं. चूंकि दोनों हमेशा टकराव की स्थिति में होंगे, इसलिए राहुल को नये कौशल सीखने होंगे. हर गांधी ने अपना नया कांग्रेस बनाया था. नेहरू को ऐसी पार्टी मिली थी, जो उनके लोकप्रिय व्यक्तित्व और महात्मा गांधी के लगाव से अभिभूत थी. इंदिरा ने कांग्रेस विभाजन कर समर्पित समर्थकों की टुकड़ी खड़ी की, जिनमें से कुछ मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री बने. उनमें असुरक्षा का बोध नहीं था क्योंकि वे पार्टी से बड़ी थीं. अब सोनिया ने उसे अपनी संतानों को सौंप दिया है. गांधी परिवार की भारत की खोज त्रासदियों के माध्यम से निरंतरता की रही है. राजीव गांधी का प्रधानमंत्री बनना संजय गांधी और उनकी माता के निधन का परिणाम था.
जब बोफोर्स घोटाले का विवाद उठा, तो उनके नजदीकी भाजपा में चले गये, जहां वे मंत्री एवं सांसद बने. विडंबना देखें, उनमें अधिकतर कांग्रेस नेताओं के परिजन थे. अब राहुल को कांग्रेस को एकजुट रखना होगा तथा उसे युद्ध के लिए तैयार करना होगा. भाजपा के दूसरे स्तर के नेता अभी सीखने की प्रक्रिया में हैं, जबकि कई कांग्रेस नेता युवा या अधेड़ हैं और कुछ साठ के दशक के शुरू में हैं. सचिन पायलट, रेवंत रेड्डी, डीके शिवकुमार, गौरव गोगोई, नाना पटोले, दीपेंदर हुड्डा, शशि थरूर, भूपेश बघेल आदि अकेले और साथ मिलकर अपने क्षेत्रों में जीत दिला सकते हैं. जनवरी, 2013 में जयपुर में राहुल ने मीडिया को कहा था- ‘कांग्रेस एक मजेदार पार्टी है.
यह दुनिया का सबसे बड़ा राजनीतिक संगठन है, पर शायद इसमें एक भी नियम या कायदा नहीं है. हम हर दो मिनट में नये कानून बनाते हैं, फिर उन्हें हटा देते हैं. पार्टी में नियमों के बारे में किसी को पता नहीं.’ राहुल को केवल एक नियम का पालन करना चाहिए- खो गये गांधी जादू को पुनः सक्रिय करना. वे अगला प्रधानमंत्री बनने से बस एक कदम दूर हैं. पप्पू से प्रतिपक्ष का नेता बनने का उनका रूपांतरण उनकी दो यात्राओं के कारण विश्वसनीय है. उन्हें याद रखना चाहिए कि गांधी परिवार के, गांधी परिवार द्वारा और गांधी परिवार के लिए कांग्रेस अब आगे नहीं चल सकती. अब तक वह बची रही है, पर यदि उसे आगे बढ़ना है, तो उसे लोगों की कांग्रेस बनना होगा. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)