वर्षा जल संचयन समय की मांग

वर्षा जल का 47 फीसदी हिस्सा नदियों में चला जाता है. यदि इसी को रिचार्ज की स्पष्ट नीति के तहत संरक्षित किया जाए, तो देश में पानी का कोई संकट नहीं होगा.

By ज्ञानेंद्र रावत | July 4, 2022 8:14 AM
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जल संकट आज समूचे विश्व के समक्ष एक गंभीर समस्या है. हालात इतने खराब हैं कि 37 देश पानी की भारी किल्लत का सामना कर रहे हैं. इनमें सिंगापुर, पश्चिमी सहारा, कतर, बहरीन, जमैका, सऊदी अरब और कुवैत समेत 19 देश ऐसे हैं, जहां पानी की आपूर्ति मांग से बेहद कम है. चिंता की बात यह है कि हमारा देश इन देशों से सिर्फ एक पायदान पीछे है. असलियत यह है कि दुनिया में पांच में से एक व्यक्ति की साफ पानी तक पहुंच ही नहीं है.

यह सब घरेलू और औद्यौगिक क्षेत्र में पानी की मांग में उल्लेखनीय बढ़ोतरी का नतीजा है. विडंबना यह है कि दुनिया में नदियों के मामले में सबसे अधिक संपन्न भारत करीब साठ करोड़ से ज्यादा आबादी पानी की समस्या से जूझ रही है और तीन-चौथाई घरों में पीने का साफ पानी मयस्सर नहीं है. यह स्थिति तब है, जब यहां मानसून बेहतर रहता है. यदि हम जल गुणवत्ता की बात करें, तो हमारा देश दुनिया के 122 देशों में 120वें पायदान पर है. इसका सबसे बड़ा कारण कारगर नीति के अभाव में जल संचय, संरक्षण व प्रबंधन में नाकामी है.

भूजल पानी का महत्वपूर्ण स्रोत है. पृथ्वी पर होने वाली जलापूर्ति अधिकतर भूजल पर ही निर्भर है, लेकिन चाहे सरकारी मशीनरी हो, उद्योग हो, कृषि क्षेत्र हो या आम जन, सबने इसका इतना दोहन किया है कि भूजल के लगातार गिरते स्तर के चलते जल संकट की भीषण समस्या हमारे सामने है. इससे पारिस्थितिकी तंत्र के असंतुलन की स्थिति पैदा हो गयी है. यह इस बात का संकेत है कि आने वाले दिनों में स्थिति विकराल हो सकती है.

इसे तभी रोका जा सकता है, जब पानी समुचित मात्रा में रिचार्ज हो, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में पानी का दोहन नियंत्रित हो, संरक्षण हो, भंडारण हो, ताकि वह जमीन के अंदर प्रवेश कर सके. सवाल यह अहम है कि जिस देश में भूतल व सतही विभिन्न माध्यमों से पानी की उपलब्धता 2300 अरब घनमीटर है और जहां नदियों का जाल बिछा है, जहां सालाना औसत बारिश 100 सेमी से भी अधिक होती है, जिससे 4000 अरब घनमीटर पानी मिलता हो, वहां पानी का अकाल क्यों है.

असलियत में बारिश से मिलने वाले पानी में से 47 फीसदी यानी 1869 अरब घनमीटर पानी नदियों में चला जाता है. इसमें से 1132 अरब घनमीटर पानी उपयोग में लाया जा सकता है, पर इसमें से 37 फीसदी उचित भंडारण व संरक्षण के अभाव में समुद्र में बेकार चला जाता है. यदि इसी को रिचार्ज की स्पष्ट नीति के तहत भविष्य में उपयोग की दृष्टि से संरक्षित किया जाए, तो देश में पानी का कोई संकट नहीं होगा.

उल्लेखनीय है कि सदियों से हमारे देश में मनुष्य और प्रकृति के द्वारा जल का संचय होता आया है. इस संबंध में सरकारी तंत्र पर समाज का आश्रित हो जाना संकट का प्रमुख कारण बन गया. इसका परिणाम जल प्रबंधन में सामुदायिक हिस्सेदारी के पतन के रूप में सामने आया और प्रकृति भी विवश हो गयी.

असलियत में यह सब जल संचय के हमारे परंपरागत तौर-तरीकों की अनदेखी, झीलों, तालाबों और कुओं पर अतिक्रमण, नदी और भूजल स्रोतों का प्रदूषण, अत्याधिक पानी वाली फसलों के उत्पादन की बढ़ती चाहत, पानी की बर्बादी, बारिश के जल का उचित संरक्षण न होना, भूजल के अत्याधिक दोहन के चलते भूजल स्तर में भयावह स्तर तक गिरावट, जल प्रबंधन का अभाव, जल संचय व संरक्षण में समाज की भागीदारी का पूर्णतः अभाव,

छोटे शहरों में अधिकांशतः जमीनी सतह का पक्का कर दिया जाना, अनियंत्रित व अनियोजित औद्योगिक विकास तथा विकास के वर्तमान ढांचे की अंधी दौड़ ने हमारी धरती को बंजर बनाने और पाताल के पानी के अत्याधिक दोहन में अहम भूमिका अदा की है. फिर पानी के मामले में मांग में बढ़त और जल उपलब्धता में आये दिन हो रही बेतहाशा कमी के साथ हमारी जीवनशैली में हुआ बदलाव सबसे अहम कारक है. ऐसी स्थिति में वर्षा जल संरक्षण और उसका प्रबंधन ही एकमात्र रास्ता है.

पानी देश और समाज की सबसे बड़ी जरूरत है. आइए, हम भूजल रिचार्ज प्रणाली पर विशेष ध्यान दें और बारिश के जल का संचय कर देश और समाज के हितार्थ अपनी भूमिका का सही मायने में निर्वाह करें. इसमें जल संचय के पारंपरिक तौर-तरीकों के इस्तेमाल की भूमिका अहम होगी, जिसे हम बिसार चुके हैं.

यह सब करने से ही समस्या से छुटकारा मिल सकता है. जीवन जल से ही शुरू होता है और अंत भी उसी से होता है. यह ध्यान देना होगा कि जल संकट की भयावहता में उत्तर और पूर्व में काफी भिन्नता है. भूमिगत जल के प्रदूषण में भी समय के साथ काफी बदलाव आया है. सबसे बड़ी बात यह है कि जर्मनी में राइन नदी की सहयोगी नदी को वहां के लोग पुनर्जीवित कर सकते हैं, तो क्या हम अपनी नदियों को पुनर्जीवन नहीं दे सकते.

यह संकल्प और प्रकृति के साथ जुड़ाव से ही संभव है. आज जरूरत इस बात की है कि हम सभी प्रकृति और प्रकृति प्रदत्त संसाधनों का यथोचित सम्मान कर समाज को नयी दिशा देकर अपने राष्ट्रीय दायित्व का निर्वहन करते हुए जल संकट के निदान में अपना योगदान दें. यही सच्ची राष्ट्र सेवा होगी.

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