दूरद्रष्टा और प्रेरणादायक थे रतन टाटा
भारत के सभी कारोबारियों को रतन टाटा से प्रेरणा लेनी चाहिए. सदियों में जन्म लेती हैं रतन टाटा जैसी शख्सियतें.
टाटा ग्रुप के अध्यक्ष पद को छोड़ने के बाद वे स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे सामाजिक और परोपकारी कार्यों पर अधिक फोकस कर रहे थे. हाल के बरसों में भारत के हर प्रधानमंत्री ने रतन टाटा से विकास से जुड़े सवालों पर सलाह ली है. उन्हें यह मुकाम इसलिए नहीं मिला था कि वे टाटा ग्रुप के चेयरमैन थे. उन्हें यह सम्मान इसलिए मिलता था क्योंकि वे एक विश्व नागरिक बन चुके थे. वे टाटा ग्रुप को एक दर्जन से अधिक देशों में ले गये थे.
रतन टाटा एक दूरदर्शी उद्योगपति और परोपकारी इंसान तो थे ही, उन्होंने एन चंद्रशेखरन को टाटा ग्रुप का चेयरमैन बनाकर साबित किया था कि मेरिट से बढ़कर कुछ नहीं हो सकता. वे चाहते तो टाटा ग्रुप की कमान अपने परिवार के किसी सदस्य को सौंप सकते थे. उन्होंने साइरस मिस्त्री को टाटा ग्रुप के चेयरमैन पद पर इसलिए नहीं रहने दिया क्योंकि मिस्त्री टाटा ग्रुप के परोपकार से जुड़े कामों के लिए पैसा देने में बहुत उदार रवैया नहीं अपना रहे थे. साइरस मिस्त्री टाटा ग्रुप के प्रमुख सिर्फ इसलिए बन गये थे क्योंकि उनके परिवार के स्वामित्व वाले ग्रुप शापुरजी पालनजी की टाटा ग्रुप में सर्वाधिक शेयर होल्डिंग थी. उनके हटने के बाद एन चंद्रशेखरन टाटा ग्रुप के पहले गैर-पारसी अध्यक्ष हैं. रतन टाटा केवल एक सफल व्यवसायी नहीं थे, बल्कि उन्होंने अपने वरिष्ठों द्वारा स्थापित मूल्यों और परंपराओं को भी आगे बढ़ाया. उन्होंने अपने समूह को एक ऐसी विरासत में बदल दिया, जिसका भविष्य प्रकाशमान है. वे जमशेदजी टाटा और जेआरडी टाटा के सच्चे वारिस के रूप में हमेशा याद किये जायेंगे. रतन टाटा 1990 से 2012 तक टाटा ग्रुप के अध्यक्ष रहे. फिर अक्तूबर 2016 से लेकर फरवरी 2017 तक उस जिम्मेदारी को संभाला. वे अंत तक टाटा ग्रुप के मानद चेयरमैन रहे. उन्होंने रोजमर्रा के कामकाज से अपने को अलग कर लिया था. पर टाटा ग्रुप अपने अहम फैसले लेते हुए उनके अनुभव का लाभ तो उठाता ही था.
अनुभव का कोई विकल्प भी नहीं होता है. माना जाता है कि टाटा ग्रुप ने एयर इंडिया का अधिग्रहण रतन टाटा की सलाह पर ही किया था. वे चाहते थे कि उनका समूह एयर इंडिया का अधिग्रहण कर ले. आखिर एयर इंडिया पहले टाटा समूह के पास ही थी. इसलिए टाटा ग्रुप उसे लेकर भावनात्मक रूप से भी जुड़ा हुआ था. रतन टाटा उन इंसानों में से नहीं थे, जो अपनी कुर्सी से चिपके रहना पसंद करते हैं. उन्होंने वक्त रहते ही टाटा ग्रुप में अपने संभावित उत्तराधिकारियों को तैयार करना शुरू दिया था. यह तो सबको पता है कि हर व्यक्ति के सक्रिय करियर की आखिरकार एक उम्र है. उसके बाद तो उसे पद छोड़ना ही है. इसलिए बेहतर है कि किसी कंपनी का प्रमोटर, प्रमुख या किसी संस्थान में जिम्मेदार पद पर आसीन शख्स अपना एक या एक से अधिक उत्तराधिकारी तैयार कर ले. बेहतर उत्तराधिकारी मिलने से किसी कंपनी या संस्थान की बढ़ातरी प्रभावित नहीं होती. देखिए, धनकुबेर तो हर दौर में होते रहेंगे और नये धनवान भी बनते रहेंगे. पर रतन टाटा जैसे विरले ही होते हैं. टाटा ग्रुप के अध्यक्ष पद को छोड़ने के बाद वे स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे सामाजिक और परोपकारी कार्यों पर अधिक फोकस कर रहे थे. हाल के बरसों में भारत के हर प्रधानमंत्री ने रतन टाटा से विकास से जुड़े सवालों पर सलाह ली है. उन्हें यह मुकाम इसलिए नहीं मिला था कि वे टाटा ग्रुप के चेयरमैन थे. उन्हें यह सम्मान इसलिए मिलता था क्योंकि वे एक विश्व नागरिक बन चुके थे. वे टाटा ग्रुप को एक दर्जन से अधिक देशों में ले गये थे.
रतन टाटा अपने जीवन के हर पल को सार्थक बनाने में जुटे रहे. बेशक मानव जीवन क्षणभंगुर हो, फिर भी उसे इंसान को अपने सत्कर्म से सार्थक बनाना चाहिए. अंधकार का साम्राज्य चाहे जितना बड़ा हो कि सूर्य भी उसे दूर न कर सके, पर एक कोने में पड़ा हुआ छोटा सा दीपक भी अपने अंत समय तक अंधेरे से मुकाबला करता रहता है. अब देखिए कि फूलों का जीवन कितना छोटा सा होता है, पर वे सुगंध देने के धर्म का निर्वाह करते हैं. रतन टाटा ने अपने को फूलों और दीपक जैसा जाने-अनजाने बना लिया था. वे सदैव बेहतर कर्म करते रहना चाहते थे. उनका करियर बेदाग रहा है. उनके ग्रुप की किसी कंपनी पर कभी किसी तरह का आरोप नहीं लगा. उन पर कभी किसी बैंक या अन्य वित्तीय संस्थान से धन लेने के बाद उसे वापस न करने का आरोप नहीं लगा. रतन टाटा ने केवल एक विशाल औद्योगिक साम्राज्य का विस्तार ही नहीं किया, देश के आर्थिक और सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभायी. उनकी दूरदृष्टि, नेतृत्व और सामाजिक उत्तरदायित्व ने उन्हें एक महान उद्योगपति के रूप में स्थापित किया. रतन टाटा की सबसे बड़ी विशेषता उनकी दूरदृष्टि और नवोन्मेष की क्षमता थी. उन्होंने टाटा समूह को 21वीं सदी के लिए तैयार किया, नये क्षेत्रों में प्रवेश किया और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा की. उन्होंने टाटा मोटर्स को दुनिया में सबसे बड़ी कार निर्माताओं में से एक बनाया, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज को एक वैश्विक आइटी दिग्गज में बदला और टाटा स्काई को देश के प्रमुख डीटीएच सेवा प्रदाताओं में से एक बनाया.
रतन टाटा एक प्रेरणादायक लीडर थे, जिन्होंने अपने कर्मचारियों को प्रेरित कर और उनके प्रति सम्मान दिखाकर एक सकारात्मक कार्य संस्कृति का निर्माण किया. उन्होंने लोगों को सशक्त बनाया. उनके नेतृत्व में टाटा समूह एक मजबूत ब्रांड बनकर उभरा. उन्होंने अपनी निष्ठा, पारदर्शिता और नैतिक मूल्यों के साथ दुनियाभर में विश्वास और सम्मान अर्जित किया है. उनकी सत्यनिष्ठा ने उन्हें एक आदर्श व्यक्ति बनाया. वे एक महान उद्योगपति थे, जिनका समाज, देश और दुनिया पर गहरा प्रभाव पड़ा. उनकी दृष्टि, नेतृत्व, सामाजिक उत्तरदायित्व और नैतिक मूल्य उन्हें एक आदर्श व्यक्ति और एक प्रभावशाली नेता के रूप में स्थापित करते हैं. रतन टाटा खूब पढ़ने-लिखने वाले शख्स थे. मुंबई के कोलाबा स्थित उनके बंगले में खासी समृद्ध लाइब्रेरी है. उसमें तमाम विषयों की ढेरों किताबें हैं. उन्हें बागवानी का भी गजब का शौक था. वे सुबह-शाम कर्मियों से बंगले में लगे पेड़-पौधों की सेहत पर बात करते और उन्हें निर्देश देते. रतन टाटा जब किसी मंच से बोलते थे, तो सबको सुनना पड़ता था. वे एक संत पुरुष थे. उनका जीवन बेहद सादगी भरा रहा. भारत के सभी कारोबारियों को रतन टाटा से प्रेरणा लेनी चाहिए. सदियों में जन्म लेती हैं रतन टाटा जैसी शख्सियतें.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)