चीन से लगातार बढ़ता व्यापार असंतुलन देश की एक बड़ी आर्थिक चिंता का कारण बन गया है. इस पर विभिन्न स्तरों पर विचार मंथन हो रहा है. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 23 फरवरी को एशिया इकोनॉमिक डायलॉग में कहा कि चीन से व्यापारिक असंतुलन की गंभीर चुनौती के लिए सिर्फ सरकार ही जिम्मेदार नहीं है, देश का उद्योग-कारोबार भी जिम्मेदार हैं. उन्होंने कल-पुर्जे सहित संसाधनों के विभिन्न स्रोत और मध्यस्थ विकसित करने में प्रभावी भूमिका नहीं निभायी है.
देश की बड़ी कंपनियां शोध एवं नवाचार में भी पीछे हैं. हाल ही में 17 फरवरी को वाणिज्य मंत्रालय ने भारत-चीन व्यापार के अप्रैल 2022 से जनवरी 2023 तक 10 महीनों के आयात-निर्यात के जो आंकड़े जारी किये हैं, उसके मुताबिक इस अवधि में चीन से होने वाले आयात में नौ फीसदी का उछाल आया है. इस अवधि में चीन को किये जाने वाले निर्यात में 34 फीसदी की भारी कमी आयी है.
वित्त वर्ष 2022-23 के पहले 10 महीनों में भारत के कुल आयात में चीन की हिस्सेदारी 13.91 फीसदी है. इस अवधि में भारत ने कुल 83.76 अरब डॉलर का आयात चीन से किया है, जबकि इसी अवधि में भारत ने चीन को केवल 12.20 अरब डॉलर का निर्यात किया है. भारत द्वारा किये जाने वाले निर्यात में चीन की हिस्सेदारी केवल 3.30 फीसदी है.
स्थिति यह है कि इस समय जहां दुनिया के 150 से अधिक देशों में भारत से होने वाले निर्यात में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, वहीं चीन को निर्यात में लगातार कमी होती दिख रही है. पिछले कुछ सालों में चीन और भारत के बीच तनाव बढ़ा है, हिंसक झड़पें भी हुई हैं, फिर भी व्यापार में भारत की चीन पर निर्भरता लगातार बढ़ी है. वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने दिसंबर 2022 में राज्यसभा में कहा कि 2004-05 में भारत और चीन के बीच 1.48 अरब डॉलर का व्यापार घाटा था, जो 2013-14 में 36.21 अरब डॉलर तक पहुंच गया.
इन वर्षों में चीन से आयात भी दस गुना से अधिक हो गया है. इन वर्षों में पूरा देश घटिया चीनी उत्पादों से भर गया और भारत बहुत कुछ चीनी सामानों पर निर्भर होता गया. उल्लेखनीय है कि चीन से आने वाले सामान में विभिन्न उद्योगों के उत्पादन में काम आने वाली चीजें, दवाइयों के कच्चे माल, दवाइयां, इलेक्ट्रिक और इलेक्ट्रॉनिक सामान, पशु या वनस्पति वसा,
अयस्क, लावा और राख, खनिज ईंधन, अकार्बनिक तथा कार्बनिक रसायन, उर्वरक, रंगाई के अर्क, विविध रासायनिक उत्पाद, प्लास्टिक, कागज और पेपरबोर्ड, कपास, कपड़े, जूते, कांच तथा कांच के बने पदार्थ, लोहा और इस्पात, तांबा, परमाणु रिएक्टर, बॉयलर, मशीनरी और यांत्रिक उपकरण, फर्नीचर आदि शामिल हैं.
वर्ष 2014-15 से स्वदेशी उत्पादों को प्रोत्साहित कर चीन से आयात घटाने के प्रयास हुए हैं. चीन की भारत के प्रति आक्रामकता बढ़ने के साथ-साथ प्रधानमंत्री मोदी के भाषणों के माध्यम से देशभर में स्थानीय उत्पादों के उपयोग में वृद्धि हुई है. चीनी सामान के जोरदार बहिष्कार और सरकार द्वारा टिकटॉक सहित विभिन्न चीनी एप पर प्रतिबंध, चीनी सामान के आयात पर नियंत्रण, कई चीनी सामानों पर शुल्क वृद्धि, सरकारी विभागों में यथासंभव स्थानीय उत्पादों के उपयोग को लगातार प्रोत्साहन देने से चीनी सामानों की मांग में कमी दिखायी दी है.
निश्चित ही, प्रधानमंत्री मोदी द्वारा बार-बार स्थानीय अर्थव्यवस्था का समर्थन करने और वोकल फॉर लोकल मुहिम के प्रसार से स्थानीय उत्पादों की खरीद को बढ़ावा मिला है. यह महत्वपूर्ण है कि आत्मनिर्भर भारत अभियान में 24 सेक्टरों में मैनुफैक्चरिंग को प्राथमिकता के साथ बढ़ाया जा रहा है. चीन से आयातित दवाई, रसायन और अन्य कच्चे माल का विकल्प तैयार करने के लिए पिछले दो वर्ष में सरकार ने प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआइ) स्कीम के तहत 14 उद्योगों को करीब दो लाख करोड़ रुपये आवंटित किये हैं.
वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, पीएलआई स्कीम की सफलता के कारण 2022-23 में अप्रैल-अगस्त के दौरान फॉर्मा उत्पादों के आयात में पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में 40 फीसदी की कमी आयी है और निर्यात में पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि के मुकाबले करीब 3.47 फीसदी की वृद्धि हुई है. पहले देश में लगभग सारे स्मार्ट फोन चीन से मंगाये जाते थे, पर पीएलआइ स्कीम की बदौलत आज देश में मोबाइल सेक्टर की 200 निर्माता कंपनियां हैं.
निश्चित रूप से चीनी उत्पादों को टक्कर देने और व्यापार घाटा को कम करने के लिए एक ओर सरकार द्वारा अधिक कारगर प्रयास करने होंगे, तो वहीं दूसरी ओर देश के उद्योग-कारोबार क्षेत्र के द्वारा भी चीन से प्रतिस्पर्धा करने के प्रयास करने होंगे. आर्थिक शोध संस्थान ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव की एक टिप्पणी में कहा गया है कि नियामकीय और आंतरिक बाजार बाधाओं के कारण चीन के लिए भारतीय निर्यात प्रभावित हो रहा है.
भारत को बाजार पहुंच के मुद्दों को प्राथमिकता के आधार पर चीन के साथ उठाना चाहिए. चीन से आयात के लिए भी भारत समान नियमों को लागू करने पर विचार कर सकता है. शोध संस्थान ने कहा कि चीन सीमा शुल्क के अलावा भारत जैसे देशों से आयात के नियमन के लिए चार प्रमुख बाधाओं का इस्तेमाल करता है. इसमें नियामकीय, आंतरिक बाजार, व्यापार रक्षा और राजनीतिक उपाय शामिल हैं. इस संस्थान ने कहा कि उत्पादों की गुणवत्ता और मानक समस्या नहीं हैं, क्योंकि अमेरिका और यूरोप सहित 150 से अधिक देशों को भारत निर्यात करता है.
उम्मीद है कि जिस तरह भारतीय खिलौना उद्योग ने चीन से आयात में भारी कमी कर देश और दुनिया को अचंभित किया है, उसी तरह उद्योग-कारोबार के अन्य क्षेत्रों में भी चीन से आयात घटाने और चीन को निर्यात बढ़ाने के नये अध्याय लिखे जायेंगे. फिर से देश के करोड़ों लोग स्वदेशी उत्पादों के उपयोग के नये संकल्प के साथ आगे बढ़ेंगे.
साथ ही, देश के बाजार में चीन के वर्चस्व को तोड़ने के लिए उद्यमी और कारोबारी शोध और नवाचार को अपनाते हुए, चीनी कच्चे माल और चीन से संबंधित अन्य आयातित सामानों के स्थानीय विकल्प प्रस्तुत करने की डगर पर आगे बढ़ेंगे. साथ ही, देश के उद्योग-कारोबार जगत के द्वारा प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआइ) का अधिकतम लाभ लेते हुए इसके कारगर क्रियान्वयन से चीन से आयात का प्रभुत्व कम करने के लिए अधिकतम प्रयास किये जायेंगे. इससे चीन से आयात कम होंगे, चीन को निर्यात बढ़ेगा और चीन से व्यापार घाटे में कमी लायी जा सकेगी. इस प्रकार, चीन पर भारतीय बाजार की निर्भरता कम हो सकेगी.