वैश्विक स्तर पर खाद की बढ़ी कीमतों को देखते हुए केंद्र सरकार ने फॉस्फेट और पोटाश वाले खादों के लिए 51,875 करोड़ रुपये के अतिरिक्त अनुदान की घोषणा की है. रबी फसलों की बुवाई में इन खादों का इस्तेमाल होता है. यह इसलिए भी बड़ी राहत है क्योंकि इस साल के शुरू में तापमान बढ़ने से गेहूं की पैदावार पर असर पड़ा था और बाद में कमजोर मानसून एवं बेमौसम की बरसात से खरीफ फसलें प्रभावित हुई थीं. जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न इन समस्याओं से किसानों को नुकसान उठाना पड़ा है.
विभिन्न घरेलू और बाहरी वजहों से खेती की लागत भी बढ़ी है. रूस-यूक्रेन युद्ध से खाद के दाम बहुत बढ़ गये हैं. न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी के बाद खाद अनुदान में वृद्धि से किसान फसल की बुवाई आसानी से कर सकेंगे तथा पैदावार के मूल्य के बारे में भी आश्वस्त रह सकते हैं. जाड़े के मौसम में लगायी जाने वाली फसलों की पैदावार का हिस्सा भारत के सालाना खाद्य उत्पादन में लगभग आधा है. इसलिए देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए गेहूं, दलहन, मोटे अनाज, सब्जियों और तेलहन की पर्याप्त उपज आवश्यक है.
उल्लेखनीय है कि भारत समेत दुनिया के कई देशों में खाद्य पदार्थों की महंगाई बहुत अधिक है तथा अनेक देश खाद्य संकट का भी सामना कर रहे हैं. हमारे देश में महंगाई अवश्य है, लेकिन बाजार में खाद्य पदार्थों की कमी नहीं है तथा सरकारी गोदाम में भी समुचित भंडार है. यह इसीलिए हो सका है क्योंकि हमारे किसानों ने कृषि उत्पादों की मात्रा में कमी नहीं होने दी है. सरकारी भंडार में अनाज होने के कारण कोरोना के शुरुआती दौर से अब तक लगभग अस्सी करोड़ गरीब लोगों को मुफ्त राशन मुहैया कराया जा रहा है.
खेती बेहतर करने के उद्देश्य से सरकार पोषण आधारित अनुदान योजना चला रही है. इस नीति के तहत फसल के लिए जरूरी पोषण के आधार पर प्रति किलो खाद पर अनुदान की दर निर्धारित की जाती है. वर्तमान वित्त वर्ष में खाद सब्सिडी पर 2.5 लाख करोड़ रुपये का खर्च अनुमानित किया गया था, लेकिन लगभग 52 हजार करोड़ रुपये की राशि के साथ यह आंकड़ा तीन लाख करोड़ रुपये से अधिक हो जायेगा. यह अतिरिक्त आवंटन पिछले रबी के मौसम में दी गयी 28,655 करोड़ रुपये की अनुदान राशि से भी अधिक है.
वृद्धि है. रूस-यूक्रेन युद्ध के अलावा इस बढ़ोतरी की वजहों में तेल का महंगा होना तथा महामारी के चलते आपूर्ति में अवरोध आना जैसे कारक भी हैं. हमें बड़ी मात्रा में खाद को विदेशों से आयात करना पड़ता है. आशा है कि किसान इस आवंटन का पूरा लाभ उठा सकेंगे.