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रिमोट वोटिंग एक सराहनीय पहल

रोजगार और शिक्षा के लिए भारत में बहुत से लोग एक जगह से दूसरी जगह आते-जाते रहते हैं. ऐसा देखा जाता है कि काफी लोग दूसरी जगह मतदाता सूची में नाम नहीं डलवाते.

चुनाव में वोट डालने के लिए रिमोट वोटिंग इवीएम एक ऐसी मशीन होगी, जिसमें एक ही मशीन में लगभग 78 विधानसभा या लोकसभा क्षेत्रों के लिए एक ही साथ वोट डाले जा सकेंगे. जिस विधानसभा या लोकसभा क्षेत्र में चुनाव होते हैं, उसमें जो अभी मशीन इस्तेमाल की जाती है, उसमें उसी क्षेत्र के लिए वोट डाले जा सकते हैं, पर रिमोट इवीएम में अलग-अलग क्षेत्रों के लिए कहीं से भी वोट डाले जा सकेंगे.

मान लें कि अगर चुनाव बिहार में हो रहे हैं और यह मशीन दिल्ली में रखी होगी, तो यहां रह रहे लोग उस मशीन से अपने विधानसभा या लोकसभा क्षेत्र के लिए वोट डाल सकते हैं. रोजगार और शिक्षा के लिए भारत में बहुत से लोग एक जगह से दूसरी जगह आते-जाते रहते हैं. ऐसा देखा जाता है कि काफी लोग दूसरी जगह मतदाता सूची में नाम नहीं डलवाते. बहुत से लोग कुछ समय के लिए पलायन करते हैं, तो वे इसकी जरूरत भी नहीं समझते.

एक सामान्य अनुमान है कि हमारे देश की 15-20 प्रतिशत आबादी ऐसे मतदाताओं की है, जो एक जगह से दूसरी जगह आती-जाती है. इसे हम आंतरिक प्रवासी कहते हैं. ऐसे लोगों के वोट डालने की गुंजाइश बहुत कम होती है. अगर उन्हें वोट डालना है, तो उस दिन उन्हें अपने गांव या कस्बे जाना पड़ता है. ऐसा कर पाना सभी के लिए संभव नहीं है.

इस समस्या के समाधान के लिए निर्वाचन आयोग ने रिमोट इवीएम का प्रस्ताव सामने रखा है. अगर यह मशीन कामयाब होती है और इसके इस्तेमाल के लिए राजनीतिक दलों की सहमति बनी, तो मतदान के लिए इच्छुक लोगों के सुविधा हो जायेगी. इस संबंध में एक अहम सवाल तकनीक से जुड़ा है कि क्या ऐसी अच्छी मशीन बनायी जा सकेगी, जिसमें कई क्षेत्रों के लिए एक साथ वोट डाला जा सकता है.

मुझे लगता है कि आज तकनीक का बहुत अधिक विकास हो चुका है और इस तरह की मशीन बनाना कोई मुश्किल काम नहीं होना चाहिए. लेकिन इसमें स्पष्टता की जरूरत है. जब हम इस मशीन से वोट डालेंगे, तो इसकी गिनती कैसे और कहां होगी, यह एक प्रशासनिक चुनौती हो सकती है.

मुझे लगता है कि जनता को इस मशीन पर भरोसा इतनी जल्दी शायद नहीं हो क्योंकि आम मतदाताओं में यह दुविधा रहेगी कि उनका वोट उनके अपने क्षेत्र में गया या नहीं. उसकी गिनती कहां होगी और किसके द्वारा होगी, इसको लेकर भी मतदाताओं में संशय हो सकता है. अभी तो जब हम वोट डालते हैं, उसकी गिनती सामने आ जाती है. इस भरोसे के लिए कुछ समय लग सकता है.

अगर रिमोट इवीएम कामयाब होता है और चुनाव आयोग इसका इस्तेमाल करता है, तो मतदान का प्रतिशत भी बढ़ेगा. कई बार ऐसा होता है कि कुछ मतदाता अपने क्षेत्र में होते हुए भी वोट डालने नहीं जाते हैं. ऐसे मतदाताओं को तो केवल प्रोत्साहित ही किया जा सकता है. यह भी हकीकत है कि बहुत सारे मतदाता वोट डालना चाहते हैं, पर वे ऐसा नहीं कर पाते क्योंकि मतदान के दिन वे अपने मतदान केंद्र पर नहीं होते हैं.

ऐसे मतदाताओं के लिए रिमोट वोटिंग मशीन बहुत उपयोगी होगी तथा इससे मतदान प्रतिशत में भी बढ़ोतरी होगी. हालांकि अभी भी लोकसभा चुनाव में ज्यादा से ज्यादा 67 प्रतिशत टर्नआउट हुआ है यानी 33 प्रतिशत मतदाता अभी भी वोट नहीं डाल रहे हैं, लेकिन इसकी तुलना हम बीते दस-बीस साल से करें, तो इसमें वृद्धि हुई है. लंबे समय तक मतदान प्रतिशत 60 फीसदी से नीचे रहा था. लोगों की भागीदारी बढ़ी है.

विधानसभा के चुनाव में भी इसी तरह के रुझान हैं. बड़े राज्यों में अभी भी संतोषजनक टर्नआउट नहीं है. मतदाताओं को जागरूक करने के लिए निर्वाचन आयोग ने बीते एक-डेढ़ दशक में बहुत प्रयास किया है. आयोग की ओर से इस बारे में अध्ययन भी हुए हैं कि मतदान नहीं करने वाले लोग किन जगहों पर हैं और उनके मतदान नहीं करने की वजहें क्या है. रिमोट इवीएम से मतदान में 10-15 फीसदी का इजाफा हो सकता है. इस लिहाज से भी इस मशीन का प्रस्ताव अच्छी पहल है.

इवीएम को लेकर शुरू में मतदाताओं के मन में कुछ दुविधाएं थीं. लोगों को लगता था कि जिस पार्टी या प्रत्याशी को उन्होंने वोट दिया है, उसे वह वोट मिला है या नहीं. उसका दुविधा का समाधान वीवीपैट के रूप में किया गया. आप वोट डालते हैं, तो आपके सामने पर्ची आ जाती है. अब यह मांग की जा रही है कि वीवीपैट से जो पर्ची निकलती है, उसकी गिनती हो.

अभी यह व्यवस्था है कि कुछ मतदान केंद्रों की पर्चियों की गिनती की जाती है और इवीएम के वोटों से उसका मिलान किया जाता है. अगर सारे वीवीपैट की पर्चियों की गिनती होगी, तो इसका मतलब है कि वह गणना भी बैलेट पेपर की गिनती की तरह ही हो जायेगी. संदेह निवारण के लिए इसका दायरा कुछ बढ़ाया जा सकता है. आज अगर दो प्रतिशत की गिनती होती है, तो उसे पांच या दस प्रतिशत किया जा सकता है. इस संबंध में भी आयोग ने पहलें की है, पर कुछ लोगों के मन में अभी भी सवाल हैं और वे सवाल रिमोट वोटिंग मशीन पर भी उठाये जा सकते हैं.

रिमोट वोटिंग मशीन लाने के साथ-साथ उन दुविधाओं का निवारण भी किया जाना चाहिए. इससे मशीन में लोगों का भरोसा बढ़ेगा. साथ ही, मैं यह भी कहना चाहूंगा कि किसी भी बड़े कार्यक्रम को करने के लिए अगर आप हर पहलू को पहले दुरुस्त कर लेना चाहते हैं, तो फिर वह कार्यक्रम ही नहीं हो पायेगा. उदाहरण के लिए, एक दफ्तर में कई विभाग होता हैं, जिसमें कुछ अच्छे होते हैं और कुछ कमतर होते हैं. अब अच्छे विभागों की बेहतरी की कोशिश आप इसलिए तो नहीं रोका सकते हैं कि कुछ विभाग कमतर हैं.

उन्हें भी ठीक किया जाना चाहिए, पर अच्छी पहलों को रोका नहीं जाना चाहिए. मेरा मानना है कि हर किसी को संतुष्ट कर पाना संभव नहीं होता. अगर बैलेट पेपर से चुनाव होने लगें, तो क्या हर मतदाता संतुष्ट हो जायेगा? सो, इवीएम से जुड़ी दुविधाओं को दूर किया जाना चाहिए और रिमोट वोटिंग मशीन को भी लाया जाना चाहिए. इसके इस्तेमाल के क्रम में जो मुश्किलें आयेंगी, उन्हें दूर करते जाना होगा. आशा है कि हम जल्दी ही रिमोट इवीएम का इस्तेमाल कर सकेंगे.

जब इवीएम लाया गया था, उस समय और आज उस पर भरोसे में बड़ा अंतर है. इवीएम में तकनीकी गड़बड़ी की शिकायतें भी न के बराबर हो गयी हैं. इसी प्रकार रिमोट वोटिंग मशीन भी समय के साथ बेहतर होती जायेगी, ऐसा मेरा विश्वास है. सबसे अहम बात यह है कि इसके इस्तेमाल से चुनाव जैसी महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भागीदारी का विस्तार होगा.

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