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मूल्य स्थिरता पर रिजर्व बैंक का जोर

समस्या यह है कि खाद्य मुद्रास्फीति घटने का नाम नहीं ले रही है. इस मुद्रास्फीति में सबसे बड़ा कारक सब्जियों के दाम हैं. पिछले साल मौसम की गड़बड़ी के कारण खेती के उत्पादन पर नकारात्मक असर पड़ा था.

By Abhijeet Mukhopadhyay | April 22, 2024 7:42 AM
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भारतीय रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति समिति की बैठक में मुद्रास्फीति से जुड़ी चिंताओं के कारण आधारभूत ब्याज दर (रेपो रेट) 6.5 प्रतिशत में कोई बदलाव नहीं किया है. केंद्रीय बैंक का मानना है कि मुद्रास्फीति के लक्ष्य को हासिल करने के लिए इसे जारी रखना जरूरी है तथा मूल्य स्थिरता से अर्थव्यवस्था की गति बनाये रखने में बड़ी मदद मिलेगी. रिजर्व बैंक से इसी तरह के निर्णय की अपेक्षा भी थी. हमारे देश में घरेलू स्तर पर गैर-खाद्य और गैर-तेल मुद्रास्फीति में बीते एक-डेढ़ साल में कोई खास बढ़ोतरी नहीं हुई है. कुछ चीजों में मुद्रास्फीति घटी भी है.

लेकिन समस्या यह है कि खाद्य मुद्रास्फीति घटने का नाम नहीं ले रही है. इस मुद्रास्फीति में सबसे बड़ा कारक सब्जियों के दाम हैं. पिछले साल मौसम की गड़बड़ी के कारण खेती के उत्पादन पर नकारात्मक असर पड़ा था. इसके चलते महंगाई में वृद्धि स्वाभाविक थी. इस साल मानसून के सामान्य रहने का अनुमान है, लेकिन साथ में अत्यधिक लू और गर्म हवाओं के चलने की आशंका भी जतायी जा रही है. अगर ऐसा होता है, तो कुछ फसलों पर इसका असर जरूर पड़ेगा. ऐसे में रिजर्व बैंक ने इंतजार करने का फैसला लिया है.


रिजर्व बैंक के इस निर्णय का दूसरा प्रमुख पहलू है तेल के दामों को लेकर अनिश्चितता. पश्चिम एशिया में जो संकट अभी है, वह कभी भी कोई भी रूप ले सकता है. अभी ही कच्चे तेल के दामों में बढ़ोतरी का रुझान है. लाल सागर में समुद्री यातायात बाधित होने से आपूर्ति शृंखला में मुश्किलें बढ़ी हैं. अगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल महंगा होता है, तो हमारा आयात खर्च भी बढ़ेगा और घरेलू बाजार में भी दाम बढ़ेंगे.

इस आयाम को भी रिजर्व बैंक ने मद्देनजर रखा है. पिछले साल अमेरिका और यूरोप के बाजारों में मांग बढ़ी थी, लेकिन वैश्विक मांग के मामले में चीन एक महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्था है. पिछले साल वहां मांग में कमी देखी गयी, जिसके कारण कई वस्तुओं- स्टील, खनिज, सीमेंट, लोहा, तेल आदि- के दामों में कमी हुई या ठहराव हुआ. लेकिन ऐसा हमेशा तो चल नहीं सकता. अगर चीन की खरीद में थोड़ा भी सुधार आया, तो मुद्रास्फीति पर असर पड़ेगा.

अभी चीन की आर्थिक वृद्धि के जो आंकड़े आये हैं, वे अनुमानों से कहीं अधिक हैं. यह स्थिति बनी रही, तो चीन से मांग भी बढ़ेगी.
भारत समेत तमाम देशों में केंद्रीय बैंकों का आज के दौर में मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखना महत्वपूर्ण काम हो गया है. ये बैंक इसलिए ब्याज दर बढ़ाते हैं कि उद्योग हों, परिवार हों या व्यक्ति हो, कर्ज कम लेंगे, जिससे बाजार में अपेक्षाकृत कम पैसा आयेगा और उससे दामों में गिरावट आयेगी.

हालांकि इस समझ के आलोचक भी हैं, पर अभी केंद्रीय बैंक इसी दृष्टिकोण से काम कर रहे हैं. हमारे देश में कानूनी तौर पर मुद्रास्फीति को चार प्रतिशत से दो प्रतिशत अधिक या कम रहने पर माना जाता है कि मुद्रास्फीति नियंत्रण में है. इस हिसाब से मुख्य लक्ष्य उसे चार प्रतिशत के स्तर पर लाना है, जो अभी तक नहीं हो पाया है. अमेरिका में यह अनुमान लगाया जा रहा था कि मुद्रास्फीति को भी नियंत्रित किया जायेगा और अर्थव्यवस्था पर भी उसका कोई विशेष असर नहीं होगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ है.

इसका कारण यह है कि मुद्रास्फीति एक खास स्तर पर जाकर ठिठक सी गयी है. भारत में भी ऐसा हुआ है, मुद्रास्फीति में कुछ कमी आयी है, पर वह चार प्रतिशत के स्तर से बहुत ऊपर है. उल्लेखनीय है कि विभिन्न कारणों से दुनियाभर के केंद्रीय बैंक अमेरिका के फेडरल रिजर्व का अनुसरण करते हैं. वहां भी ब्याज दरों में कटौती नहीं की गयी है. दोनों बैंकों के ब्याज दर में जो अंतर होता है, उसी के आधार पर निवेशक पैसा लगाने का निर्णय लेते हैं.

अगर उन्हें लगेगा कि अमेरिका में ब्याज दर भारत से बेहतर है, तो वे यहां के बाजार से पैसा निकालकर अमेरिका में निवेश कर देंगे क्योंकि उन्हें वहां अधिक मुनाफा होगा. ऐसे निवेशक मुख्य रूप से शेयर बाजार, प्रतिभूति और मनी मार्केट में पैसा लगाते हैं. इस कारण भी रिजर्व बैंक को फेडरल दर के हिसाब से अपनी दर तय करना पड़ता है.


रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति के एक सदस्य प्रो जयंत वर्मा ने रेपो रेट घटाने के पक्ष में वोट दिया है. उनका मानना है कि मुद्रास्फीति को लेकर वैसी गंभीर आशंका नहीं है, इसलिए दर में कुछ कटौती की जानी चाहिए. उन्होंने यह भी कहा है कि अधिक ब्याज दर से आर्थिक वृद्धि पर नकारात्मक असर पड़ रहा है. बहरहाल, बहुमत से समिति ने निर्णय कर लिया है और अगले कुछ महीनों तक इसमें बदलाव की संभावना नहीं है.

समिति की अगली बैठक पांच से सात जून के बीच होगी. ऐसा लगता है कि अक्टूबर में ही इस संबंध में कोई निर्णय लिया जायेगा. तब तक मानसून और मौसम के मिजाज का पता भी चल जायेगा तथा संभवत: पश्चिम एशिया में भी मामला कुछ सामान्य हो जायेगा. लेकिन अभी खाद्य और तेल की मुद्रास्फीति को लेकर कुछ भी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है. मुद्रास्फीति को लेकर रिजर्व बैंक की चिंता पूरी तरह से सही है. साथ ही, कोई भी कटौती अमेरिकी फेडरल रिजर्व के रुख पर भी निर्भर करेगी.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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