कोरोना पर विजय का संकल्प

अवधेश कुमार, वरिष्ठ पत्रकार निस्संदेह, पूरा देश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबोधन की प्रतीक्षा कर रहा था. हालांकि लॉकडाउन का विस्तार होगा, इसे लेकर किसी को भी संदेह नहीं था, क्योंकि प्रधानमंत्री के साथ बैठक में ज्यादातर मुख्यमंत्रियों ने भी इसकी मांग की थी. एक भी राज्य ने लॉकडाउन का विरोध नहीं किया था. सात […]

By अवधेश कुमार | April 15, 2020 10:06 AM
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अवधेश कुमार, वरिष्ठ पत्रकार

निस्संदेह, पूरा देश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबोधन की प्रतीक्षा कर रहा था. हालांकि लॉकडाउन का विस्तार होगा, इसे लेकर किसी को भी संदेह नहीं था, क्योंकि प्रधानमंत्री के साथ बैठक में ज्यादातर मुख्यमंत्रियों ने भी इसकी मांग की थी. एक भी राज्य ने लॉकडाउन का विरोध नहीं किया था. सात राज्यों ने तो पहले ही 30 अप्रैल तक अपने यहां लॉकडाउन बढ़ाने की घोषणा कर दी थी. जैसा प्रधानमंत्री ने कहा, नागरिकों की तरफ से भी यही सुझाव आ रहा था. तमाम प्रयासों के बावजूद कोरोना जिस तरह फैल रहा है, उसने पूरे विश्व को पहले से कहीं ज्यादा चिंतित और सतर्क कर दिया है. आज विश्व की भयावहता को देखते हुए हमारे सामने प्रश्न यही था- कोरोना के खिलाफ लड़ाई आगे कैसे बढ़े और इस पर नियंत्रण कैसे हो? वैश्विक अनुभव यही है कि कोविड-19 से बचाव ही विकल्प है और उसके लिए लॉकडाउन एकमात्र अस्त्र है.

हालांकि भारत की स्थिति आज भी प्रमुख देशों से काफी बेहतर है, किंतु संक्रमितों एवं मृतकों की संख्या बढ़ रही है. ऐसे में कोई जोखिम मोल नहीं लिया जा सकता था. विचार करने, कदम उठाने तथा लोगों से संवाद करने की प्रधानमंत्री मोदी की अपनी शैली है. वे कोई कदम उठाने के पहले लोगों के साथ अपने को जोड़ते हैं, उनको सामान्य भाषा में समझाते हैं कि ऐसा करना क्यों अपरिहार्य है तथा कैसे देश के हित में है, फिर बिंदुवार लोगों के लिए कुछ कर्तव्य इंगित करते हैं. निराशा की स्थिति में भी वे आशाजनक तथ्यों के साथ लोगों का आत्मविश्वास बनाये रखने की कोशिश करते हैं. सबसे बढ़कर यह कि वे अपनी सोच को विश्व मानवता के हित तक हमेशा विस्तारित करते हैं. यही उन्होंने कोरोना से संबंधित अपने चारों संबोधनों में किया है. आम आदमी की कठिनाइयों तथा इस बीच पड़ने वाले पर्व-त्यौहारों की चर्चा कर उन्होंने यही बताया कि उनके अंदर इन सबकी चिंता है, पर उपाय कोई दूसरा नहीं है.

महामारी से देश में चिंता को दूर करने के लिए उन्होंने वे सारे तथ्य बताये कि कैसे समय रहते कदम उठाकर अपने देश को संभाल कर रखा है, जिसमें एक-एक व्यक्ति का योगदान है. यानी आप सब यदि अनुशासन और संयम का पालन नहीं करते, तो भारत को सुरक्षित रखना संभव नहीं होता. महीना-डेढ़ महीना पहले कई देश संक्रमण के मामले में भारत के बराबर खड़े थे. आज उन देशों में भारत की तुलना में कोरोना के मामले 25 से 30 गुणा ज्यादा हैं तथा हजारों की मृत्यु हो चुकी है. वैश्विक आंकड़ों को देखते हुए उनका यह कहना बिल्कुल सच है कि इंटिग्रेटेड एप्रोच न अपनाया होता, समय पर तेज फैसले न लिये होते, तो आज भारत की स्थिति क्या होती, इसकी कल्पना से ही रोएं खड़े हो जाते हैं. इसकी देश को आर्थिक कीमत चुकानी पड़ रही है, सारी वैश्विक संस्थाएं भारत के विकास दर में भारी गिरावट का आंकड़ा दे रही हैं. लेकिन किसी देश की पहली प्राथमिकता वहां के नागरिकों की जीवन रक्षा है. प्रधानमंत्री मोदी ने देशवासियों के लिए सप्तपदी के रूप में जो सूत्र दिया, वह पूरे संबोधन की आत्मा थी. उसका पूरी तरह पालन किया जाये, जो संभव है, तो हम निश्चय ही कोरोना पर विजय प्राप्त करेंगे.

सप्तपदी का हमारे यहां शास्त्रीय महत्व है. इसमें शरीर और मन पर नियंत्रण के लिए योग भी है. उसमें अनुशासन की सीख है, तो बुजुर्गों की देखभाल एवं घर में बने मास्क पहनने की अपील भी. उसमें यदि व्यवसायों एवं उद्योगों में काम करनेवालों के प्रति नियोजकों से संवेदनशीलता बरतने का फिर आग्रह है, तो गरीबों का ध्यान रखने के लिए संपूर्ण देश को प्रेरित करने का भाव भी. इसका सीधा संदेश यही है कि सरकारों को जो करना है, वे करेंगी, लेकिन बगैर समाज के सहयोग के कोरोना महामारी से लड़ाई तथा सामाजिक-आर्थिक समस्याओं से निपटना संभव नहीं होगा. बावजूद इसके हमारे सामने कई प्रश्न खड़े हो रहे हैं. क्या इसी तरह पूरा लॉकडाउन लागू रहेगा? इसमें कुछ छूट मिलने की संभावना है? तीन मई को यह खत्म हो जायेगा या इसे फिर बढ़ाने की नौबत आयेगी? इनका उत्तर भविष्य की स्थिति पर निर्भर करेगा. पहले 21 दिन और अब 19 दिन, यानी कुल मिलाकर 40 दिन होते हैं. प्रधानमंत्री के संबोधन से यह संकेत मिलता है कि जिन क्षेत्रों में स्थिति बिल्कुल नियंत्रण में दिखेगी, वहां कुछ गतिविधियों की सीमित छूट मिल सकती है. अगले एक सप्ताह यानी 20 अप्रैल तक हर थाने, जिले, राज्य में स्थिति की समीक्षा की जायेगी. प्रधानमंत्री ने बिल्कुल साफ कहा कि एक भी मरीज का बढ़ना या किसी की मौत होना हमारे लिए चिंता बढ़ाने का कारण बनेगा.

इस तरह भविष्य की एक मोटा-मोटी तस्वीर साफ हो गयी है. हर भारतवासी का दायित्व बढ़ गया है कि आत्मानुशासन, संयम और सतर्कता से लॉकडाउन तथा अन्य निर्देशों का पालन करे. लोगों में आत्मविश्वास बनाये रखने के लिए कुछ प्रगतियों की चर्चा लगातार करनी होती है. उदाहरण के लिए, राशन और दवा के भंडार पर्याप्त हैं. इससे दूकानों पर भीड़ को रोकने यानी सोशल डिस्टेंसिंग के पालन में सहयोग मिलता है. वैसे कोरोना से संघर्ष में भारत ने आरंभ से अभी तक कई सोपान लांघे हैं, जैसे- लैबों, बिस्तरों और अस्पतालों की संख्या का लगातार बढ़ना. इसका मतलब यह है कि हम प्रकोप रोकने के सारे यत्न करते हुए भी प्रतिकूल स्थितियों से निपटने के लिए भी तैयार हैं.

प्रधानमंत्री ने जिस विजय की उम्मीद की बात की, उसके कुछ अन्य संकेत भी हैं. संक्रमण 27 राज्यों और 7 केंद्र शासित प्रदेशों में अवश्य फैला है, लेकिन इनमें शीर्ष चार राज्यों/ केंद्र शासित – महाराष्ट्र, दिल्ली, तमिलनाडु और राजस्थान- में ही कुल संक्रमितों के करीब 60 प्रतिशत हैं. पिछले दो सप्ताह से ज्यादा समय से 15 राज्यों के 25 जिलों में कोरोना के नये मामले नहीं आये हैं. लेकिन भारत का चरित्र केवल अपने देश तक सीमित नहीं हो सकता. उसमें विश्व की चिंता तथा उसके लिए कुछ करने का संकल्प भी सन्निहित है. सार्क और जी-20 की बैठक बुलाने की पहल तथा उसमें प्रधानमंत्री द्वारा रखी गयी बातों तथा लिये गये निर्णयों से भारत का वैश्विक सरोकार सामने आया है. युवा वैज्ञानिकों से कोरोना वैक्सीन बनाने की दिशा में काम करने के प्रधानमंत्री के अनुरोध में भारत समेत पूरी मानवता की चिंता झलकती है. (ये लेखक के निजी विचार हैं)

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