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Maharashtra elections : वित्तीय दृष्टिकोण से महाराष्ट्र का नतीजा, पढ़ें अजीत रानाडे का आलेख

Maharashtra elections : भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन- महायुति- ने पिछले सप्ताह विधानसभा चुनाव में 288 में से 234 सीटें जीतकर शानदार सफलता दर्ज की. यह महाराष्ट्र के मतदाताओं की भी प्रचंड जीत और उदार निर्णय है, जिन्होंने महायुति को कुल वोटों में से 49 प्रतिशत वोट दिया है. यह उतना ही मजबूत चुनावी जनादेश है, जितना कि चाहिए था.

Maharashtra elections : देश के आर्थिक उत्पादन में 14 प्रतिशत के साथ महाराष्ट्र की सबसे बड़ी हिस्सेदारी है. इसकी राजधानी मुंबई देश की वाणिज्यिक और वित्तीय राजधानी भी है. इस शहर से देश कॉरपोरेट और व्यक्तिगत आय सहित प्रत्यक्ष करों का एक बड़ा हिस्सा एकत्र करता है. मुंबई का रियल एस्टेट सोने से भी ज्यादा मूल्यवान है. राज्य का जवाहरलाल नेहरू बंदरगाह देश का सबसे व्यस्त कंटेनर बंदरगाह है, जो सभी कंटेनरीकृत कार्गो का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा संभालता है, और देश में कुल टन भार के मामले में शीर्ष पांच बंदरगाहों में से एक है. यह समर्पित माल गलियारों से निर्बाध रूप से जुड़ा हुआ है. इसलिए यह भारत के निर्यात के लिए महत्वपूर्ण है. यहां कई सड़क मार्ग, मेट्रो और अन्य बुनियादी ढांचा परियोजनाएं चल रही हैं, जो महाराष्ट्र की आर्थिक शक्ति बढ़ायेंगी. वास्तव में, इसकी मंशा अगले कुछ वर्षों में भारत की पहली एक ट्रिलियन डॉलर की अर्ध-संप्रभु अर्थव्यवस्था बनने की है. इसलिए स्वाभाविक रूप से महाराष्ट्र में सरकार बनाना किसी भी राजनीतिक दल के लिए एक बड़ा पुरस्कार है.

महायुति ने जीते 234 सीट

भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन- महायुति- ने पिछले सप्ताह विधानसभा चुनाव में 288 में से 234 सीटें जीतकर शानदार सफलता दर्ज की. यह महाराष्ट्र के मतदाताओं की भी प्रचंड जीत और उदार निर्णय है, जिन्होंने महायुति को कुल वोटों में से 49 प्रतिशत वोट दिया है. यह उतना ही मजबूत चुनावी जनादेश है, जितना कि चाहिए था. अब कोई भी छोटी पार्टी गठबंधन सरकार बनाने के लिए मोल-भाव नहीं कर सकती है. यह राजनीतिक स्थिरता के लिए अच्छा है. यह जीत इसलिए भी उल्लेखनीय है, क्योंकि यह भाजपा के नेतृत्व वाली महायुति के जून में हुए लोकसभा चुनाव में अत्यंत खराब प्रदर्शन के बमुश्किल पांच महीने बाद मिली है.

इस प्रकार, सत्ता-विरोधी कारक, मराठवाड़ा और विदर्भ के क्षेत्रों में किसान संकट, कपास और सोयाबीन जैसी नकदी फसलों के दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे गिरने और भ्रष्टाचार की धारणा के बावजूद, महायुति ने आश्चर्यजनक जीत दर्ज की है, जिसका राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रभाव पड़ेगा और राज्य में राजनीतिक परिवर्तन भी होंगे. प्रत्येक चुनावी नतीजे की भविष्यवाणी और फिर उसका विश्लेषण गहन बहस व सिद्धांत निर्माण का विषय है और यह अंतहीन है. हालांकि कोई भी सिद्धांत या स्पष्टीकरण पर्याप्त नहीं है. यहां तक कि एग्जिट पोल भी बुरी तरह गलत साबित हुए हैं. यह स्पष्ट है कि जो चीज मतदाताओं को प्रेरित या उत्साहित करती है वह स्पष्ट और सरल व्याख्याओं का विषय नहीं है. मतदाताओं की प्राथमिकता का निर्धारण पूरी तरह से आर्थिक नहीं होता, न ही संकीर्ण स्वार्थ से प्रेरित होता है. यह मतपेटी पर विशुद्ध रूप से एक भावनात्मक प्रतिक्रिया हो सकती है. धर्म आधारित प्रचार और जातिगत पहचान के बढ़ते प्रभाव के साथ, यह समझना लगभग असंभव हो गया है कि जीत का निर्णायक कारक क्या रहा है.

माझी लड़की बहिन योजना का मतदाताओं पर जबरदस्त प्रभाव

हालांकि, कोई इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि राज्य के चुनावों से बमुश्किल तीन महीने पहले शुरू की गयी माझी लड़की बहिन (मेरी प्यारी बहन) योजना का मतदाताओं पर जबरदस्त प्रभाव पड़ा है. आदर्श आचार संहिता लागू होने से बहुत पहले इसे विधानसभा द्वारा पारित कर दिया गया था. परंतु कुछ हद तक इसे जल्दबाजी में लागू किये जाने के कारण पात्रता की जांच उतनी पुख्ता तरीके से नहीं हो पायी, जितनी की आवश्यकता थी. परिणामस्वरूप, अब दो करोड़, पचास लाख महिलाओं को प्रत्यक्ष नकद लाभ के रूप में 1,500 रुपये प्रतिमाह मिलते हैं. महायुति के चुनावी घोषणापत्र के अनुसार, चुनाव के बाद यह राशि 2,100 रुपये हो जायेगी. इससे सरकारी खजाने पर कुल अतिरिक्त बोझ लगभग 63,000 करोड़ प्रतिवर्ष का होगा, जो राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना या राज्य में लाभार्थियों के लिए मुफ्त खाद्यान्न योजना पर खर्च की गयी राशि से अधिक बैठेगा. पहले से ही महाराष्ट्र की वित्तीय स्थिति ऐसी है कि यहां 67 प्रतिशत व्यय ‘राजस्व मदों’ पर होता है जिसमें वेतन, पेंशन और पिछले ऋण पर ब्याज भुगतान शामिल हैं. अगले वर्ष तक यह ऋण बढ़कर 7.8 लाख करोड़ हो जायेगा, जिससे अकेले वार्षिक ब्याज भुगतान का बोझ लगभग 50,000 करोड़ हो जायेगा.

अतिरिक्त ऋण के बोझ का प्रबंधन संभव


भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने विगत मई में सरकार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में बढ़ते कर्ज के बोझ को लेकर आगाह भी किया था. लड़की बहिन योजना के बिना भी राज्य को पिछले ऋणों के पुनर्भुगतान की योजना बनानी होगी जो अगले सात वर्षों में देय होगी. यह राशि 2.75 लाख करोड़ है, जिसके लिए अब से हर वर्ष लगभग 40,000 करोड़ का प्रावधान किया जाना है. यदि राज्य की विकास दर (और इस कारण कर राजस्व) बढ़ती है, तो इस सभी अतिरिक्त ऋण के बोझ का प्रबंधन संभव है. परंतु, कम से कम इस वर्ष विकास दर 5.5 प्रतिशत रहने की उम्मीद है, जो राष्ट्रीय जीडीपी विकास दर से कम है. यह एक ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था हासिल करने के लिए आवश्यक 12 प्रतिशत से भी काफी कम है.


जिस राज्य में 2019 में राजस्व अधिशेष था, वहां अब राजस्व घाटा 0.5 प्रतिशत और राजकोषीय घाटा राज्य के सकल घरेलू उत्पाद का 2.6 प्रतिशत होने का अनुमान है. कुल ऋण राज्य की जीडीपी के 20 प्रतिशत के आसपास पहुंच रहा है, जिसे राज्यों और केंद्र सरकार के संयुक्त वित्तीय जिम्मेदारी ढांचे के तहत अधिकतम सीमा माना जाता है. राजकोषीय दृष्टिकोण से प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण योजना के अल्पकालिक लाभों के कारण करदाता पर भविष्य में बोझ बढ़ेगा. लड़की बहिन (एलबी) योजना ने दूसरी योजनाओं को समाप्त नहीं किया है.

लोकलुभावनवाद के नुकसान

शून्य बिजली बिल और किसानों के लिए 15,000 रुपये, छात्रों के लिए 10,000 रुपये जैसी कई और रियायतें यहां दी जा रही हैं. एलबी योजना एक सफल फॉर्मूला रहा है जिसका इस्तेमाल झारखंड में भी किया गया और यह कम से कम एक दर्जन अन्य राज्यों में चल रहा है. परंतु इसका राजकोषीय स्थिति और इसके नतीजतन विकास, मुद्रास्फीति और ब्याज दरों के साथ-साथ भविष्य के कर बोझ पर क्या असर पड़ेगा, इसकी बारीक पड़ताल नहीं की जाती है. जनमत पर नजदीकी दृष्टि रखने के लिए जिम्मेदार राजकोषीय नेतृत्व की आवश्यकता है, जो दीर्घकालिक टिकाऊ विकास पर ध्यान दे. अन्यथा, लोकलुभावनवाद राजकोष को निचले स्तर पर ले जायेगा. जिससे भविष्य की सार्वभौमिक बुनियादी आय और बिना शर्त नकद हस्तांतरण योजना का रास्ता संकट में पड़ जायेगा.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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