19.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

खुदरा निवेशकों को मिले सुरक्षा

निवेशक जागरूकता और चिटफंड योजनाओं की समीक्षा के लिए एक संस्थागत प्रणाली विकसित करने की दरकार है.

वरुण गांधी, सांसद, भाजपा

fvg001@gmail.com

खुदरा निवेशकों ने पिछले तीन हफ्तों में 15 लाख करोड़ रुपये गंवा दिये. इस नुकसान की वजह कमोडिटी की कीमतों में वृद्धि, सुस्त अर्थव्यवस्था और यूक्रेन संकट है. कई निवेशकों ने पहली बार बाजार में अपनी बचत को लगाया था, पर उन्हें निराशा हाथ लगी. यह भी दिखा कि खुदरा निवेशकों को बाजार की अस्थिरता को लेकर समझ कम है. सामाजिक सुरक्षा की कमी जैसा मुद्दा भी है. हमें देखना-समझना होगा कि हमारे युवा निवेशक कैसे निवेश करते हैं.

कई अपनी बचत को म्युचुअल फंड और इक्विटी में लगाते हैं, जबकि अन्य आकर्षक बचत योजनाओं का रुख करते हैं जिसमें धोखाधड़ी की आशंका रहती है. इक्विटी को ही लें, तो सूचीबद्ध शीर्ष कॉरपोरेट ने भी चमक गंवायी है. नयी फर्म आइपीओ के जरिये खुदरा निवेशकों को मोटी कमाई की पेशकश करती हैं, पर ऐसी फर्म अब सार्वजनिक निर्गम के अधिक मूल्य निर्धारण के लिए कुख्यात हैं. इसमें पेटीएम का मामला तो खासा चर्चित रहा.

बाजार को लेकर दिखे उत्साह ने कॉरपोरेट गवर्नेंस की चुनौतियों को छिपाया है. एनएसई की अनियमितताओं (गैर-प्रासंगिक व्यक्ति से व्यापार योजना, बोर्ड मीटिंग एजेंडा जैसे अहम मामलों पर एनएसई के पूर्व प्रमुख का ई-मेल के जरिये इनपुट लेना) ने एक गहरी संस्थागत सड़ांध को उजागर किया है. इस बीच, सेबी ने अपने पहले के अनिवार्य रुख को वापस लिया है, जिसमें शीर्ष 500 सूचीबद्ध फर्मों को अध्यक्ष और एमडी की भूमिका को अलग करने की बात कही गयी थी.

यह नियामकीय कब्जे का नया संकेत है. शीर्ष 500 फर्मों में से 300 प्रमोटर-संचालित हैं. ऐसे में ये फर्म दोनों भूमिकाओं को साथ निभाना जारी रखती हैं, जिससे बोर्ड की जिम्मेदारियों और दायित्वों के बीच हितों का स्वाभाविक टकराव होता है. हालिया एबीजे शिपयार्ड घोटाले में 28 बैंकों के 22,842 करोड़ रुपये के कर्ज का डूबना दिखाता है कि बैंकिंग एनपीए का संकट गहराता जा रहा है. सूचीबद्ध फर्मों से इस्तीफा देने वाले स्वतंत्र निदेशकों की बढ़ी संख्या दिखाती है कि कई फर्म धोखाधड़ी में लिप्त हैं.

हमारे पास निवेशक संरक्षण के लिए विनियमन के दायरे और वास्तविक फंडिंग सीमित हैं. एनएसई के पास 594 करोड़ रुपये का निवेशक सुरक्षा कोष था (केवल ब्रोकर के दिवालिया होने पर पैसा गंवाने वाले निवेशकों को वापस करने के लिए), जबकि बीएसई के पास 31 मार्च, 2020 तक यह कोष 784 करोड़ रुपये का था. निवेशक सुरक्षा तंत्र को मजबूत करने के साथ, सेबी को अपने कॉरपोरेट प्रशासन मानदंडों की समीक्षा की सख्त जरूरत है.

नयी निवेश योजनाओं में कई निवेशकों के पैसे डूबे हैं. एक आंकड़े के मुताबिक, पांच लाख भारतीयों ने मल्टीलेवल मार्केटिंग (एमएलएम) योजनाओं में मई और जून 2021 के महज दो महीने में 150 करोड़ रुपये गंवा दिये. पावरबैंक और ऐजप्लान जैसे एप के जरिये ये धोखाधड़ी हुई. दिसंबर में गूगल प्ले स्टोर से ऐसे 400 अनधिकृत डिजिटल ऋण देने वाले एप्स हटाये गये थे. इसी महीने पता चला कि लाखों निवेशकों ने चिटफंड धोखाधड़ी मामले में (एग्री गोल्ड फार्म एस्टेट्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के साथ) 6,300 करोड़ रुपये गंवा दिये.

इस बीच क्रिप्टो-मुद्रा, जो विशाल अनियमित क्षेत्र है, ने नयी चुनौती पेश की है. बिटकनेक्ट के संस्थापक सतीश कुंभाणी 2.4 बिलियन डॉलर की वैश्विक पोंजी योजना को व्यवस्थित करने और न्यूयॉर्क में संयुक्त राज्य जूरी द्वारा आरोपी ठहराये जाने के बाद भारत से भाग गये. अगस्त, 2017 से नोएडा में 15,000 करोड़ रुपये का बाइक बॉट घोटाला हुआ. इसमें संजय भाटी ने एक योजना के माध्यम से 2,00,000 से अधिक निवेशकों को 15,000 करोड़ से अधिक का धोखा दिया.

कहने को तो धोखाधड़ी से बचाने के लिए नियामकीय ढांचा है, पर यह निष्प्रभावी है. निवेशक जागरूकता और चिटफंड योजनाओं की समीक्षा के लिए एक संस्थागत प्रणाली विकसित करने की दरकार है. इस तरह की प्रणाली योजना को पहले से सत्यापित करेगी और भुगतान एकत्र करने के लिए एक मध्यस्थ मंच के रूप में काम करेगी. आधार, यूपीआई और जीएसटी के बीच एकीकरण ऐसी प्रणाली को पुख्ता करने में मदद कर सकती है. बैंक खातों में भी धोखाधड़ी के मामले बढ़े हैं.

आरबीआई का आंकड़ा है कि अप्रैल, 2021 से सितंबर, 2021 के बीच 36,342 करोड़ रुपये के 4,071 बैंकिंग धोखाधड़ी के मामले सामने आये हैं. इनमें इंटरनेट और कार्ड से जुड़े लेनदेन के मामले 34.6 फीसदी थे. एक एप के हालिया मामले को ही लें, जहां सैकड़ों भारतीयों के नाम पर बेहिसाब ऋण मिले. घोटालेबाजों ने पैन और आधार कार्ड के विवरण का उपयोग किया. इस समस्या के समाधान के लिए पीएसयू बैंकों को महत्वपूर्ण स्वायत्ता प्रदान करने और आरबीआई के सख्त केवाईसी मानदंडों को अनिवार्य करने की जरूरत है. यह भी कि हमें व्यावसायिक हितों वाले लोगों पर बैंकों (सहकारिता सहित) के बोर्ड में शामिल होने पर सख्त प्रतिबंध लगाना चाहिए.

ऐसे लोग जिन्होंने सेवानिवृत्ति के लिए सरकार पर भरोसा रखा है, असुरक्षा वे भी महसूस कर रहे हैं. कर्मचारी भविष्य निधि संगठन खातों से अवैध धन निकासी के मामले बढ़ने लगे हैं. सीबीआई ने ऐसे मामलों में 18.97 करोड़ रुपये के घोटाले के आरोप में ईपीएफओ के 18 अधिकारियों को पकड़ा है. ईपीएफओ के कामकाज में ज्यादा पारदर्शिता, कर्मचारियों के हित और सुरक्षा के लिए इसे नये सिरे से सुदृढ़ करने की जरूरत है.

गबन और धोखे के ऐसे तमाम मामलों को देखते हुए खुदरा निवेशकों की हिफाजत के लिए ठोस पहल जरूरी है. निवेशकों की जागरूकता और उनकी सुरक्षा के लिए संस्थागत उपायों का दायरा और तंत्र फिलहाल खासा कमजोर है. खुदरा निवेशकों के निवेश के लिए अपेक्षाकृत कम जोखिम वाले विकल्पों को और बढ़ाना होगा. यह कहना ज्यादा मुनासिब होगा कि हमें बुनियादी तौर पर आधुनिक बैंकिंग ढांचे की जरूरत है, जो इस तरह के धोखों को रोकने में कारगर हो. खुदरा निवेशकों को सुरक्षा की आवश्यकता है और राज्य को इसे प्राथमिकता के साथ मुहैया कराना चाहिए.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें