सोने की वापसी

अधिक मात्रा में देश में सोना रखने के निर्णय से इंगित होता है कि रिजर्व बैंक अर्थव्यवस्था की स्थिरता को लेकर अपेक्षाकृत अधिक आश्वस्त है.

By संपादकीय | June 2, 2024 10:32 PM

भारतीय रिजर्व बैंक ने ब्रिटिश बैंकों में जमा भारत के स्वर्ण भंडार से सौ टन सोना देश वापस लाया है. साल 1991 के प्रारंभ के बाद से स्थानीय भंडार में जोड़ी गयी यह सबसे बड़ी मात्रा है. खबरों के मुताबिक, आगामी महीनों में बड़ी मात्रा में सोने को देश वापस लाने की संभावना है.

रिजर्व बैंक सोने की बड़ी खरीद भी कर रहा है. पिछले साल 16 टन सोने की खरीद हुई थी और इस वर्ष जनवरी से मार्च के बीच 19 टन सोना खरीदा गया है. यह खरीद 2018 से शुरू हुई है. उससे पहले 2009 में वैश्विक वित्तीय संकट के समय 200 टन सोने की खरीद हुई थी. दुनियाभर के केंद्रीय बैंक हाल के वर्षों में अपनी मुद्रा के उतार-चढ़ाव को नियंत्रित रखने तथा भू-राजनीतिक उथल-पुथल के असर को कम करने के लिए बड़ी मात्रा में सोना खरीद रहे हैं.

इस वर्ष मार्च के अंत तक रिजर्व बैंक के पास 822.10 टन स्वर्ण भंडार था, जिसमें से 408.31 टन देश में रखा गया है. भुगतान सहूलियत और भंडारण आदि विभिन्न कारणों से देश का सोना बैंक ऑफ इंग्लैंड एवं अन्य वित्तीय संस्थाओं के पास जमा किया जाता है. इसके लिए कुछ नियमित शुल्क भी दिया जाता है. माना जा रहा है कि शुल्क की बचत, भंडारण में विविधता तथा विदेश में बढ़ रही सोने की मात्रा में कमी लाने आदि कारणों से रिजर्व बैंक सोना देश में ला रहा है. सोना एक सुरक्षित परिसंपत्ति माना जाता है.

इसे अधिक मात्रा में देश में रखने के निर्णय से यह भी इंगित होता है कि रिजर्व बैंक भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिरता को लेकर अपेक्षाकृत अधिक आश्वस्त है. वर्तमान समय में, जब भारत सबसे अधिक तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है तथा वैश्विक परिदृश्य में उसके महत्व में निरंतर बढ़ोतरी हो रही है, तो अंतरराष्ट्रीय भुगतान गारंटी, कर्ज प्रबंधन या सुरक्षा के लिए बहुत ज्यादा सोना विदेश में रखने की जरूरत नहीं है.

स्वर्ण भंडार के साथ-साथ भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. सोना वापस लाने से यह भी संकेत मिलता है कि रिजर्व बैंक विदेशी मुद्रा भंडार के प्रबंधन में रणनीतिक सोच से प्रेरित है. उल्लेखनीय है कि 1990-91 में अंतरराष्ट्रीय भुगतान को लेकर भारत की वित्तीय स्थिति बेहद नाजुक हो गयी थी.

तब बड़ी मात्रा में सोना विदेश भेजना पड़ा था और उसके आधार पर अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं ने कर्ज मुहैया कराया था. अब लगभग साढ़े तीन दशक बाद हम अपना सोना वापस ला रहे हैं, इसका सीधा अर्थ है कि भारत अपनी आर्थिक एवं वित्तीय क्षमता को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हो चुका है. प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार संजीव सान्याल ने उचित ही कहा है कि सोना वापस लाने का एक विशेष अर्थ है.

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