भारत छोड़ रहे हैं अमीर भारतीय, पढ़ें प्रभु चावला का खास लेख
Rich Indians : विश्वसनीय सूत्रों के मुताबिक, बॉलीवुड के अधिकतर शीर्ष अभिनेताओं ने इंग्लैंड, सिंगापुर और दुबई में संपत्ति खरीद ली है और वे भारत में सिर्फ काम के लिए आते हैं. यहां उनके लिए खाली समय होता ही नहीं.
Rich Indians : डोनाल्ड ट्रंप की सहयोगी लॉरा लूमर भले ही भारतीयों को ‘तीसरी दुनिया के आक्रमणकारी’ कहें, लेकिन दुनिया के ज्यादातर देश भारतीयों के लिए लाल कालीन बिछा रहे हैं. धनी भारतीय, जिन्हें पिछले कुछ समय से देश के प्रति मोह नहीं रह गया है, अपना घर और कारोबार समेटकर विदेशी अमीरों के क्लब में जुड़ने के लिए देश छोड़ कर जा रहे हैं. अमीर भारतीयों का दिल अब अपने घर में नहीं लगता. उनके लिए भारत रिएल एस्टेट से ज्यादा कुछ नहीं है, जहां भारी-भरकम टैक्स देना पड़ता है, लेकिन उसकी भरपाई करने वाली सार्वजनिक सुविधाएं नहीं हैं. तेजी से देश से बाहर निकल रहे इस जन समूह के लिए भारत विस्फोट के लिए तैयार एक शहरी ज्वालामुखी है.चाहे वे ग्लैमर की दुनिया के सुपर स्टार हों या खेल की दुनिया के, बगैर स्थायी पता वाले ये धनी भारतीय पश्चिमी देशों और पश्चिम एशिया को अपना स्थायी गंतव्य बना रहे हैं.
अभिनेत्री पत्नी अनुष्का शर्मा और बच्चों के साथ देश से बाहर बसने जा रहे क्रिकेटर विराट कोहली सुपर स्टार्स के समूह में नये नाम हैं. विश्वसनीय सूत्रों के मुताबिक, बॉलीवुड के अधिकतर शीर्ष अभिनेताओं ने इंग्लैंड, सिंगापुर और दुबई में संपत्ति खरीद ली है और वे भारत में सिर्फ काम के लिए आते हैं. यहां उनके लिए खाली समय होता ही नहीं. भारत की कॉरपोरेट दुनिया की शायद ही कोई बड़ी शख्सियत है, जिसका विदेश में अपना घर न हो. हेनली प्राइवेट वेल्थ माइग्रेशन रिपोर्ट, 2024 के अनुसार, इस साल के अंत तक 4,300 करोड़पति देश छोड़ रहे हैं. पिछले साल 5,100 करोड़पतियों ने देश छोड़ा था. यह विडंबनापूर्ण है कि जब भारत पांच ट्रिलियन डॉलर (50 लाख करोड़ रुपये) की जीडीपी के साथ विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है, तब भारत को इस उपलब्धि तक पहुंचाने वाले लोग अपनी मातृभूमि छोड़कर दिल्ली-मुंबई-सिंगापुर-दुबई-लंदन-न्यूयॉर्क के पावर कॉरिडोर का हिस्सा बन रहे हैं. भारत के संभ्रांतों एवं अमीरों के लिए अब संयुक्त अरब अमीरात, थाईलैंड, बाली, लंदन और दक्षिणी फ्रांस के अपने महंगे और आलीशान घरों के बारे में बात करना फैशन हो गया है. साथ ही, वे भारतीय शहरों के खराब जीवन स्तर का रोना भी रोते हैं. मेफेयर, लंदन के सबसे महंगे अपार्टमेंट्स में उन लोगों के फ्लैट्स हैं, जो भारत में टेलीकॉम कंपनियों, एयरलाइंस और स्टील प्लांट्स से जुड़े हैं.
चूंकि तकनीक ने अब पूरी दुनिया को विश्व ग्राम में तब्दील कर दिया है, ऐसे में, भारतीयों के लिए न्यूयॉर्क के ट्रंप टावर से सिंगापुर के टेकेनोलॉजी और फाइनेंशियल पार्क निडर होकर और आराम से अपना विशाल कारोबारी साम्राज्य चलाना आसान है. सच यह है कि दुनिया के विभिन्न शहरों में अमीर भारतीयों के दूसरे घरों का इस्तेमाल ज्यादातर समय-समय पर उन वरिष्ठ कार्यकारी अधिकारियों के साथ समीक्षा बैठकों के लिए होता है, जो कार्बन फुटप्रिंट की परवाह किए बिना भारत से चार्टर्ड विमानों में वहां पहुंचते हैं. इस संदर्भ में जो ज्यादा चिंताजनक है, वह है भारतीयों में अपनी नागरिकता छोड़ने की बढ़ती प्रवृत्ति. इसका अर्थ यह है कि इन लोगों ने अपनी जड़ों से कट जाने का फैसला लिया है और वे नये सामाजिक-सांस्कृतिक इको सिस्टम का हिस्सा बन रहे हैं. पिछले साल विदेशी मामलों के मंत्री ने संसद में जो आंकड़ा पेश किया, उसके अनुसार, 2011 से 16 लाख से अधिक लोगों ने अपनी नागरिकता छोड़ी. पिछले ही साल नागरिकता छोड़ने वालों की संख्या 85,256 से बढ़कर 2,25,620 हो गयी. मंत्री ने यह भी बताया था कि भारतीयों ने कुल 135 देशों की नागरिकता ली. इसका अर्थ यह है कि भारतीय किसी भी कीमत पर देश छोड़ना चाहते हैं, और किसी भी दूसरे देश में बस जाना चाहते हैं.
समृद्ध भारतीय परिवार एंटिगुआ और बारबुडा जैसे कैरेबियन देशों तथा स्पेन के अलावा यूनान तथा संयुक्त अरब अमीरात द्वारा नागरिकता के लिए ऑफर किए जाने वाले ‘गोल्डन वीजा’ के प्रति भी आकर्षित हो रहे हैं. देश में ऐसी अनेक फर्में पनप गयी हैं, जिनकी एकमात्र विशेषज्ञता बाहर जाने की इच्छा रखने वाले युवा उद्यमियों के लिए विदेश में आलीशान घरों और मुनाफे वाले ऐसे कारोबार की व्यवस्था करना है, जिसमें समस्याएं कम से कम हों. इन एजेंसियों ने उदार विदेशी योजनाओं के तहत ऐसे आकर्षक तौर-तरीके निकाले हैं, जिसमें बाहर जाने को इच्छुक हर भारतीय दुनिया में कहीं भी सालाना 2,50,000 डॉलर निवेश कर सकता है. आश्चर्यजनक यह है कि इन एजेंसियों ने बेहद सफलतापूर्वक भारत सरकार की आकर्षक ‘ईज ऑफ डुइंग बिजनेस’ पहल को बेअसर कर दिया है.
भारतीयों के देश से बाहर निकलने के पीछे आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और प्रशासनिक कारण हैं. सालाना 6.5 फीसदी की आर्थिक विकास दर हासिल करने के बावजूद भारत अपने नागरिकों के लिए बेहतर गुणवत्ता वाला जीवन नहीं मुहैया कर पा रहा है. पिछले एक दशक में अपने यहां एक लाख किलोमीटर से अधिक राष्ट्रीय राजमार्ग जोड़े गये हैं. इस दौरान देश में सौ से अधिक नये हवाई अड्डे निर्मित हुए हैं. विश्वविद्यालयों, मेडिकल कॉलेजों, शोध संस्थानों, नये स्टार्ट अप्स और यूनिकॉर्न्स की संख्या भी काफी बढ़ी है. लेकिन ये उपलब्धियां देश छोड़ कर जाने वालों की सोच नहीं बदल पा रहीं. लगभग 1.40 अरब लोगों के देश में से कुछ लाख लोगों का देश छोड़कर जाना बड़ा मुद्दा बेशक न हो, लेकिन यह भारत की छवि के लिए ठीक नहीं.
दयनीय नागरिक सुविधाएं, ध्वस्त हो चुकी कानून-व्यवस्था, दमघोंटू प्रदूषण और जटिल टैक्स ढांचा देश से बाहर निकल जाने के मुख्य कारण हैं. लगभग सभी शहरों में अवैध निर्माण और अतिक्रमण हैं. लोगों को मसजिदों और मंदिरों से तेज आवाज सुनायी पड़ती है, और पुलिस अदालत के निर्देश का अनुपालन तक नहीं करवा पाती. स्वच्छता की प्रधानमंत्री की अपील को अंदर ही अंदर बेअसर कर दिया गया. चूंकि शासक अपना वोट बैंक बचाने के लिए प्रतिस्पर्धी शोर में डूबे हैं, ऐसे में, कानून का पालन करने वाले आम नागरिकों को खामियाजा भुगतना पड़ रहा है. चूंकि पहचान और सुविधाओं की राजनीति ही राष्ट्रीय राजनीति को निर्देशित कर रही है, ऐसे में, बेहतर शासन की सदिच्छा को नुकसान पहुंच रहा है. इसके साथ सुस्त न्यायिक व्यवस्था और एकाधिक टैक्स प्राधिकारों को जोड़ लें, तो आगे बढ़ने की इच्छा रखने वाले भारतीयों के लिए यह देश रहने के लिए मुश्किल स्थान बनता जा रहा है. इकबाल का गीत, ‘सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तां हमारा’ अतीत का सपना है. भारतीय सत्ता व्यवस्था के लिए विकसित और सुरक्षित भारत की प्रतिभा और संपत्ति को बनाये रखना एक बड़ी चुनौती है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)