Misbehavior With Medical Personnel :चिकित्साकर्मियों के साथ दुर्व्यवहार की घटनाओं में वृद्धि चिंताजनक है. एक हालिया सर्वे में रेखांकित किया गया है कि देश में आधे से अधिक चिकित्साकर्मी अपने काम करने की जगह को असुरक्षित मानते हैं. लगभग 78 प्रतिशत कर्मियों ने बताया कि उन्हें काम करते समय धमकियां दी गयीं. ऐसा सरकारी मेडिकल कॉलेजों में अधिक है. यह सर्वेक्षण दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल और एम्स के विशेषज्ञों के नेतृत्व में किया गया है.
सर्वे में पाया गया है कि भारतीय स्वास्थ्य सेवा परिदृश्य में सुरक्षा के समुचित उपाय नहीं हैं. यह जगजाहिर तथ्य है कि हमारे अस्पतालों में संसाधनों की कमी है. वहां बहुत से कामकाजी लोगों के लिए उठने, बैठने और लेटने की निर्धारित जगह भी नहीं होती. सुरक्षाकर्मी या तो कम हैं या अप्रशिक्षित हैं या फिर वे अप्रभावी साबित होते हैं. आपातकालीन अलार्म भी ठीक से काम नहीं करते. बहुत कम ऐसे संस्थान हैं, जहां आने वाले लोगों की जांच की समुचित व्यवस्था है. राज्यों के अधीन आने वाले अस्पतालों की तुलना में केंद्र सरकार के संस्थानों की स्थिति कुछ बेहतर है, पर निजी संस्थानों में उनसे भी अच्छी स्थिति है.
सर्वे में शामिल लगभग 80 प्रतिशत लोगों को यह नहीं पता है कि आपात स्थिति में किससे संपर्क किया जाना चाहिए. अधिकतर संस्थानों में सुरक्षा से संबंधित चिंताओं और शिकायतों के निवारण की समुचित प्रक्रिया तक नहीं है. हमारे देश में मेडिकल कॉलेजों के अस्पताल या अन्य सरकारी अस्पताल संसाधनों की कमी से जूझते रहते हैं. चिकित्साकर्मियों की संख्या भी पर्याप्त नहीं होती और रोगियों की भीड़ लगी रहती है. मरीजों के परिजनों को इन बातों का अहसास होना चाहिए कि वही स्वास्थ्यकर्मी रोगियों का इलाज करेंगे, जिनके साथ वे दुर्व्यवहार कर रहे हैं. बीते अगस्त में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने आंदोलनरत रेजिडेंट डॉक्टरों की मांग पर अस्पतालों में अतिरिक्त सुरक्षा मुहैया कराने के निर्देश जारी किये थे.
कोलकाता में एक डॉक्टर के बलात्कार और हत्या के बाद सुरक्षा को लेकर चर्चा तो हुई है और उपायों का आश्वासन भी दिया गया है, पर असली बात है कि उपायों को अमल में लाया जाए. स्वास्थ्य सेवा से जुड़े लोगों के साथ-साथ लोगों को अधिक संवेदनशील होने की आवश्यकता है. हालांकि केंद्र सरकार ने चिकित्साकर्मियों की सुरक्षा को लेकर कोई कानून लाने की संभावना को नकार दिया है, लेकिन राज्यों में ऐसे कानून पहले से हैं. यह भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि हिंसक आचरण का साया समाज के हर क्षेत्र पर है और वह घना होता जा रहा है. केवल कानून या नियमों से इस समस्या का समाधान नहीं हो सकता है. संवेदनशीलता और संसाधन भी आवश्यक हैं.