भूमिका का विस्तार

केंद्रीय संस्थानों के कामकाज का दायरा बढ़ाने से शोध एवं अनुसंधान तथा पेटेंट के मामले में निश्चित रूप से तेजी आयेगी.

By संपादकीय | May 2, 2024 10:59 PM
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स्वास्थ्य सेवा में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के अंतर्गत आने वाले चार राष्ट्रीय शोध संस्थानों की भूमिका बढ़ाने का सराहनीय निर्णय लिया गया है. प्रदर्शन मूल्यांकन समिति के परामर्श के आधार पर केंद्र सरकार ने इन संस्थानों का नाम बदल दिया है ताकि उनके दायित्व का दायरा बढ़ सके.

इनके कामकाज में डाटा साइंस, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तथा एंटी-माइक्रोबियल प्रतिरोध जैसे क्षेत्रों को शामिल किया गया है. वर्ष 2005 में स्थापित नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल स्टैटिस्टिक्स अब नेशनल इंस्टिट्यूट फॉर रिसर्च इन डिजिटल हेल्थ एंड डाटा साइंस के नाम से जाना जायेगा. साल 1980 में बना नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ पैथोलॉजी का नाम नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ चाइल्ड हेल्थ एंड डेवलपमेंट रिसर्च कर दिया गया है. नेशनल एड्स रिसर्च इंस्टिट्यूट, जो 1992 में स्थापित हुआ था, के नाम में वायरलॉजी जोड़ा गया है.

अब यह संस्थान एड्स के अलावा अन्य संक्रमणों पर भी शोध कर सकेगा. उल्लेखनीय है कि पहले से ही इस क्षेत्र में नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वायरलॉजी कार्यरत है. संक्रामक बीमारियों के प्रसार को देखते हुए यह आवश्यक था कि इस संबंध में शोध एवं अनुसंधान को और विस्तार मिले. साथ ही, एड्स को रोकने में बड़ी प्रगति हुई है. वर्ष 1979 में बने नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ कॉलरा एंड इंटेरिक डिजीजेज को नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ बैक्टीरियल इन्फेक्शंस बना दिया गया है. हैजा कभी बड़ी चुनौती हुआ करता था, पर आज इसके लिए टीका और प्रभावी उपचार उपलब्ध है.

इस पृष्ठभूमि में मौजूदा संस्थानों के दायित्व को बढ़ाकर वर्तमान और भावी स्वास्थ्य समस्याओं के अध्ययन एवं उपचार को शामिल करना आवश्यक था. आज स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और विभिन्न प्रकार के डिजिटल तकनीकों की भूमिका निरंतर बढ़ रही है. इसके साथ ही डाटा साइंस का विस्तार भी तेजी से हो रहा है. शोध संस्थाओं, मेडिकल कॉलेजों, दवा कंपनियों आदि के सम्मिलित प्रयास से भारत टीका और दवा निर्माण के क्षेत्र में अग्रणी देश बन चुका है. अनेक बीमारियों का उन्मूलन किया जा चुका है.

कोरोना महामारी के दौर में चिकित्सा और उपचार में पूर्ववर्ती अनुभव बड़े कारगर साबित हुए थे. स्वास्थ्य मिशन के तहत मेडिकल कॉलेजों की संख्या बढ़ाने के साथ-साथ वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों को भी बढ़ावा दिया जा रहा है. शोध एवं अनुसंधान तथा पेटेंट के मामले में भी प्रगति हो रही है. केंद्रीय संस्थानों के कामकाज का दायरा बढ़ाने से इसमें निश्चित रूप से तेजी आयेगी.

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