मौजूदा दौर में भले ही मीडिया दैत्याकार हो गया हो तथा उसमें कई बुराइयां आ गयी हों, हमें यह मानने से गुरेज नहीं होना चाहिए कि देशभक्ति का अप्रतिम पैरोकार और वाहक मीडिया भी है. बहुत कम लोगों को पता होगा कि देश के एकीकरण का शिल्पकार भारत में आजाद मीडिया की बुनियाद रखने का भी मिस्त्री था. आजादी के समय भारत में ऑल इंडिया रेडियो के नाम से रेडियो था तथा कुछ अखबार-पत्रिकाएं थीं. तब सिर्फ नौ ही रेडियो स्टेशन थे. बंटवारे के बाद दिल्ली, मद्रास, बंबई, कलकत्ता, लखनऊ और त्रिचिरापल्ली जहां भारत को मिले, वहीं पेशावर, लाहौर और ढाका स्टेशन पाकिस्तान को मिले.
इनके अलावा रजवाड़ों में भी कुल पांच रेडियो स्टेशन काम कर रहे थे. सरदार पटेल पहले सूचना और प्रसारण मंत्री भी थे, लिहाजा उन्होंने रेडियो के तेज विकास की योजना भी बनायी. इसके तहत जालंधर, जम्मू, पटना, कटक, गुवाहाटी, नागपुर, विजयवाड़ा, श्रीनगर, इलाहाबाद, अहमदाबाद, धारवाड़ और कोझिकोड में रेडियो स्टेशन स्थापित हुए. चार नवंबर, 1948 को नागपुर रेडियो स्टेशन का उद्घाटन करते वक्त सरदार पटेल का यह कहना कि रेडियो देश की एकता और विकास में अहम भूमिका निभायेगा, मीडिया को लेकर उनकी सोच को ही जाहिर कर रहा था.
इस मौके पर सरदार ने प्रबुद्ध लोगों से अपील की थी कि आम लोगों को रेडियो के प्रति सहज बनाने के लिए कोशिश की जाए. पटेल को पता था कि अंतरराष्ट्रीय राजनय में विदेश प्रसारण अपनी भूमिका निभायेगा. इसलिए उन्होंने विदेशी भाषाओं में रेडियो प्रसारण की भी योजना बनायी. यह सरदार पटेल की ही सोच थी कि उनके निधन के पहले तक छह रेडियो स्टेशनों वाला ऑल इंडिया रेडियो 1950 तक 21 केंद्रों से प्रसारण करने लगा था.
आजादी के पहले भारत में भले ही यूपीआई जैसी एक-दो एजेंसियां थीं, लेकिन विदेशी एजेंसियों जितनी उनकी धाक और पहुंच नहीं थी. पटेल को अंदाजा था कि आजाद भारत के स्वतंत्र प्रेस के लिए किफायती और भारतीय समाचार एजेंसियों की किफायती अखबारों तक पहुंच जरूरी होगी. इसके लिए उन्होंने 21 सितंबर, 1948 को प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया का गठन करवाया. उसके पहले तक वह ब्रिटिश समाचार एजेंसी रायटर की एजेंसी थी.
रायटर से समझौते के नाम पर एक तरह से उन्होंने पीटीआई को पूरी तरह देशी एजेंसी बना दिया ताकि भारतीय अखबारों की विदेशी खबरों तक आसानी से पहुंच हो सके. ऑल इंडिया रेडियो का आकाशवाणी नाम 1957 में हुआ, लेकिन उसे भारतीय संस्कृति और परंपरा के मुताबिक ढालने के लिए प्रेरित पटेल ने ही किया. उन दिनों नाटक भी रेडियो पर प्रसारित होते थे.
उस दौर में अच्छे घरों की महिलाएं नाटकों में स्त्री पात्रों की भूमिका निभाने के लिए कम ही आती थीं, लिहाजा ज्यादातर स्त्री पात्रों की भूमिकाएं निभाने के लिए रेड लाइट एरिया की महिलाएं बुलायी जाती थीं. लेखक मुद्रा राक्षस की आत्मकथा ‘नारकीय’ के मुताबिक, सरदार पटेल के सूचना और प्रसारण मंत्री रहते वक्त इन महिलाओं पर सवाल उठे, तो उन महिलाओं के रेडियो स्टेशनों पर आने पर रोक लगा दी गयी.
पटेल हिंदी के घोर समर्थक थे. राजभाषा विभाग अब भी गृह मंत्रालय के तहत आता है. उनका भी गांधी जी की तरह मानना था कि हिंदी ही आजाद भारत की राष्ट्रभाषा हो सकती है और देश को एक सूत्र में पिरो सकती है. भाषाविद कैलाश चंद्र भाटिया और मोतीलाल चतुर्वेदी ने लिखा है कि हिंदी को राष्ट्रभाषा के तौर पर स्थापित करने की दिशा में गांधी जी द्वारा स्थापित वर्धा हिंदी प्रचार सभा बहुत महत्वपूर्ण कदम साबित हुई.
इसी के तहत सरदार पटेल ने मई, 1936 में हिंदी वर्ग का श्रीगणेश किया और काठियावाड़ राष्ट्रभाषा प्रचार समिति नामक संस्था की स्थापना की. इस तरह सौराष्ट्र के विभिन्न संस्थाओं के जरिये हिंदी का प्रचार-प्रसार बढ़ा. डॉ हीरालाल बाछोतिया ने अपनी पुस्तक ‘राजभाषा हिंदी और उसका विकास’ में उल्लेख किया है कि 1940 में कांग्रेस के कराची अधिवेशन के अध्यक्ष सरदार पटेल थे और उन्होंने अपना अध्यक्षीय भाषण पहले हिंदी में ही दिया था. उन्होंने जहां आजाद भारत में आजाद मीडिया की नींव रखी, वहीं उन्होंने राष्ट्रभाषा की ताकत को भी रेखांकित किया.