संतोषजनक निवेश
लॉकडाउन की अवधि में हुए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से इंगित होता है कि वृद्धि दर में कमी के बावजूद हमारी अर्थव्यवस्था के भविष्य पर निवेशकों का भरोसा बहाल है.
कोरोना काल में वैश्विक स्तर पर आर्थिक गतिविधियों में गिरावट आयी है और अर्थव्यवस्थाओं पर मंदी का ग्रहण मंडरा रहा है. भारत भी नकारात्मक प्रभावों से अछूता नहीं है, लेकिन सरकार की कोशिशों से विदेशी निवेश संतोषजनक गति से बढ़ रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक संबोधन में यह उत्साहवर्द्धक जानकारी दी है कि संक्रमण का प्रसार रोकने के लिए लगाये गये लॉकडाउन की अवधि में देश में बीस अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हुआ है.
इससे इंगित होता है कि वृद्धि दर में कमी के बावजूद हमारी अर्थव्यवस्था के अच्छे भविष्य पर निवेशकों का भरोसा बहाल है. यह निवेश इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अप्रैल में बड़े पैमाने पर निवेश गिरने से कई तरह की आशंकाएं पैदा हो रही थीं. केंद्र सरकार द्वारा जारी व्यापक राहत पैकेज तथा संक्रमण को रोकने के प्रयासों ने भी निवेशकों के विश्वास को बढ़ाया है. जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी ने रेखांकित किया है, साल-दर-साल विदेशी निवेश की मात्रा में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हो रही है. वित्त वर्ष 2019-20 में 74 अरब डॉलर का निवेश प्राप्त हुआ था, जो 2018-19 से 20 फीसदी ज्यादा था.
व्यापार एवं विकास से संबंधित संयुक्त राष्ट्र की समिति द्वारा पिछले महीने जारी अपनी रिपोर्ट के अनुसार, 2019 में सबसे अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पानेवाले देशों की सूची में भारत नौवें स्थान पर था. साल 2018 में भारत 12वें पायदान पर था. इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कोरोना महामारी के दौरान भी भारत निवेश आकर्षित कर रहा है और दक्षिण एशियाई अर्थव्यवस्थाओं में सबसे मजबूत स्थिति में है. कोरोना संकट से उबरने तथा भारत को समृद्ध बनाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने आत्मनिर्भरता का मंत्र देते हुए स्थानीय स्तर पर उत्पादन व उपभोग को बढ़ाने का आह्वान किया है.
हालिया संबोधन में भी उन्होंने इस बात पर जोर दिया है कि आपदाओं जैसे बाहरी झटकों का सामना करने के लिए उत्पादन की घरेलू क्षमता बढ़ाना, वित्तीय प्रणाली के स्वास्थ्य को बहाल करना तथा अपने अंतरराष्ट्रीय व्यापार में विविधता लाना जरूरी है. आर्थिक सुधारों, नियमन में बदलाव तथा अहम कानूनी पहलों के कारण व्यापार सुगमता के मामले में भारत का प्रदर्शन लगातार बेहतर हो रहा है.
मौजूदा संकट के अनुभवों तथा वैश्विक वाणिज्य व व्यापार की संरचना में परिवर्तन का लाभ उठाते हुए भारत एक बड़ी आर्थिक उपस्थिति बनने की क्षमता रखता है. संसाधनों और श्रम की उपलब्धता के साथ भारतीय बाजार का आकार भी बहुत बड़ा है. यदि समुचित निवेश का प्रवाह बरकरार रहता है, तो निर्यात के मोर्चे पर भी अच्छा प्रदर्शन हो सकता है. बीते कुछ महीनों में आर्थिक व वित्तीय गतिविधियों के लगभग ठप होने तथा कोरोना पर काबू पाने और उससे पैदा हुई समस्याओं के समाधान के खर्च के कारण पूंजी की जरूरत बढ़ गयी है. उम्मीद है कि इस पूंजी के आमद का सिलसिला आगे भी बना रहेगा.