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दूरंदेशी सोच का परिणाम है नये मुख्यमंत्रियों का चयन

पिछड़े वर्ग में कई जातियों के मतदाताओं का समर्थन प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के साथ रहा है. भाजपा का प्रयास है कि यादव समेत अन्य जातियों को भी साथ लाया जाए. आदिवासी समुदाय तो भाजपा के पीछे लामबंद हुआ ही है. मुख्यमंत्रियों के साथ-साथ उप मुख्यमंत्रियों के चयन में इस कारण की बड़ी भूमिका है.

मध्य प्रदेश में मोहन यादव, छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय और राजस्थान में भजन लाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाने के भाजपा के निर्णय ने एक बार फिर राजनीतिक विश्लेषकों तथा लोगों को चौंका दिया है. वैसे भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के लगभग सभी फैसले चौंकाने वाले होते हैं. यह भी रेखांकित किया जाना चाहिए कि भाजपा नेतृत्व ने चुनाव में मध्य प्रदेश में निवर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, छत्तीसगढ़ में पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह और राजस्थान में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया को मुख्यमंत्री पद के लिए चेहरा नहीं बनाया था. शिवराज सिंह चौहान लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे और अपने कल्याणकारी योजनाओं के कारण लोकप्रिय भी रहे, उन्हें भाजपा ने चुनाव अभियान के प्रारंभ में पीछे ही रखा था. जब नेतृत्व को अहसास हुआ कि चौहान की लोकप्रियता है, विशेष रूप से महिलाओं में, तब उन्हें आखिरी दिनों में आगे किया गया. उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाने का अनुमान तो लगाया जा रहा था, पर जब भाजपा को भारी बहुमत हासिल हुआ, तब सबने कहा कि इस जीत का एक बड़ा कारण लाडली बहना योजना थी और चौहान ने प्रचार में खूब मेहनत भी की थी. ऐसा लग रहा था कि लोकसभा चुनाव में भाजपा किसी तरह का जोखिम नहीं चाहेगी, इसलिए चौहान ही मुख्यमंत्री बनेंगे. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. इसी तरह राजस्थान में वसुंधरा राजे को पार्टी ने न तो चेहरा बनाया और न ही प्रचार में आगे रखा. छत्तीसगढ़ में भी रमन सिंह को अंतिम दिनों में प्रचार में सक्रिय किया गया था. भजन लाल शर्मा के मुख्यमंत्री बनाये जाने से पार्टी के परंपरागत सवर्ण वोट को भी संतुष्टि मिलेगी.

इन निर्णयों से यही संकेत मिलता है कि पार्टी नेतृत्व नये चेहरों को आगे लाना चाहता है और उसे पूरा भरोसा है कि लोकसभा चुनाव में जीतने के लिए प्रधानमंत्री मोदी का चेहरा पर्याप्त होगा. यह भी स्पष्ट दिख रहा है कि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व ऐसे नेताओं को राज्यों की बागडोर दे रहा है, जो नेतृत्व की बात सुनेंगे और साथ मिलकर काम करेंगे. दूसरा कारक यह है कि भाजपा चाहती है कि आदिवासी समुदाय और पिछड़ी जातियों में एक ठोस संदेश जाए और वे भाजपा के पक्ष में लामबंद हों. तीनों उत्तर भारतीय राज्यों में आदिवासी समुदाय ने जमकर भाजपा को वोट दिया है. आगामी लोकसभा चुनाव में पिछड़ी जातियां एक महत्वपूर्ण कारक होंगी. उत्तर प्रदेश के चुनाव के दौरान एक बहुत वरिष्ठ भाजपा नेता से मैंने कहा था कि जाट आपसे दूर हो रहा है, किसानों का समर्थन कम हो रहा है, तो इस पर उन्होंने जवाब दिया कि वे जाट समुदाय को लेकर चिंतित नहीं हैं और उनकी प्राथमिकताओं में पिछड़ी जातियों में पार्टी का जनाधार बढ़ाना प्रमुख है. विपक्ष के ‘इंडिया’ गठबंधन ने जाति जनगणना को अपना केंद्रीय मुद्दा बनाया है. जाति जनगणना का सीधा मतलब पिछड़ों वर्गों का सशक्तीकरण है. गठबंधन इस बात पर जोर दे रहा है कि संख्या के हिसाब से पिछड़ी जातियों को आरक्षण मिलना चाहिए. पिछड़े वर्ग में कई जातियों के मतदाताओं का समर्थन प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के साथ रहा है. भाजपा का प्रयास है कि यादव समेत अन्य जातियों को भी साथ लाया जाए. आदिवासी समुदाय तो भाजपा के पीछे लामबंद हुआ ही है. मुख्यमंत्रियों के साथ-साथ उप मुख्यमंत्रियों के चयन में इस कारण की बड़ी भूमिका है.

मिजोरम और तेलंगाना के चुनाव परिणाम भी कम नाटकीय नहीं रहे. मिजोरम में लालदुहोमा की जोराम पीपुल्स मूवमेंट ने अपने पहले ही चुनाव में शानदार बहुमत हासिल किया है. कयास लगाया जा रहा था कि राज्य में गठबंधन वाली ही कोई सरकार बनेगी. मिजो नेशनल फ्रंट ने मणिपुर में हिंसा को लेकर भाजपा से दूरी बना ली थी. लोगों ने वहां कांग्रेस समेत किसी पर भरोसा नहीं किया और नयी पार्टी को सरकार बनाने का जनादेश दे दिया. तेलंगाना में भारत राष्ट्र समिति ने कल्याणकारी योजनाओं के जरिये अपनी पैठ बनायी थी और पहले उसका कोई विकल्प नहीं दिख रहा था. करीब आठ-नौ माह पहले मैं तेलंगाना गयी थी. उस समय लोग समिति और भाजपा के बीच मुकाबला होने का अनुमान लगा रहे थे. कांग्रेस कहीं से भी के चंद्रशेखर राव को चुनौती देती नहीं दिख रही थी. पर कांग्रेस बड़ी तेजी से उभरी. इसमें राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की भूमिका तो है, पर पार्टी संगठन और रेवंत रेड्डी की मेहनत से परिणाम कांग्रेस के पक्ष में आया.

पहले राज्य में कांग्रेस के पास कोई बड़ा चेहरा नहीं था, लेकिन रेवंत रेड्डी अपनी लगन से उस जगह को भरने में सफल रहे. राव से नाराजगी के अनेक कारण थे- वंशवाद, भ्रष्टाचार, मिलने में मुश्किल और दंभ. वे राजधानी से एक घंटे की दूरी पर स्थित अपने राजसी फार्महाउस में रहते थे. मैंने देखा कि सुरक्षा बंदोबस्त के कारण उस सड़क पर आप चल नहीं सकते. लोग नाराज थे, पर उनके सामने ठोस विकल्प नहीं था. जब कांग्रेस ने अपनी दावेदारी रखी, तो लोगों ने उसे स्वीकार किया क्योंकि उन्हें भरोसा हुआ कि कांग्रेस चुनाव जीत सकती है. रेवंत रेड्डी ने एक अच्छा अभियान चलाया.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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