डॉ. अश्विनी महाजन, एसोसिएट प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय
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11 मई, 1998 को जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में पोखरण में परमाणु परीक्षण हुआ था, उस दिन देश का मस्तक गर्व से ऊंचा हो गया था. इसके बाद भारत परमाणु हथियारों से लैस एक महाशक्ति बन गया. इस परीक्षण के बाद जब अमेरिका ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिया, तो भी भारत सरकार ने प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से अमेरिका से उन प्रतिबंधों को हटाने के लिए नहीं कहा. विषय देश के सम्मान का था. देश को आण्विक महाशक्ति के रूप में स्थापित करने का था. इस ऑपरेशन को ‘स्माइलिंग बुद्धा’ नाम दिया गया था, जिसका संकेत साफ था, भारत के परमाणु शक्ति बनने का अर्थ किसी देश पर आक्रमण करना नहीं, बल्कि विश्व शांति की चाह है. अपनी इस शक्ति का प्रदर्शन करते हुए प्रधानमंत्री वाजपेयी ने भारत की परमाणु शक्ति को ‘न्यूक्लियर डेटरेंट’ यानी आण्विक निवारक कहा था. इसे दूसरे मुल्कों द्वारा आण्विक हथियारों के उपयोग को रोकनेवाली शक्ति के रूप में परिभाषित किया गया. आज के समय में यदि किसी देश के पास आण्विक युद्ध की क्षमता न हो, तो उसे इस डर के साथ जीना पड़ता है कि कहीं दूसरे मुल्क उस पर परमाणु हमला न कर दें.
जब भारत ने परमाणु परीक्षण किया, तो अमेरिका समेत अन्य परमाणु शक्तियों ने भारत की आलोचना की कि उसने शांति भंग करने का काम किया है. घोषित रूप से जिन आठ देशों के पास परमाणु हथियार हैं, उनमें से अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन ‘एनपीटी’ संधि का हिस्सा हैं, जबकि भारत, पाकिस्तान और उत्तर कोरिया तीन ऐसे देश हैं, जिनके पास घोषित रूप से परमाणु हथियार तो हैं, लेकिन वे ‘एनपीटी’ का हिस्सा नहीं हैं. परमाणु हथियारों से लैस एक अन्य देश इस्राइल भी है, जिसने अपने परमाणु कार्यक्रम को गुप्त रखा हुआ है. उपलब्ध सूचना के आधार पर, इस्राइल के पास 90 और अमेरिका के पास 6185 परमाणु हथियार हैं, जबकि रूस के पास 6500, ब्रिटेन के पास 215, फ्रांस के पास 300, चीन के पास 250 और भारत के पास 140 परमाणु हथियार हैं.
उत्तर कोरिया के पास 30 परमाणु हथियार होने की बात कही जाती है. अमेरिका और वे देश, जिनके पास परमाणु हथियारों का भारी जखीरा है, वे दुनिया की थानेदारी करते रहना चाहते हैं. इसलिए, यदि दुनिया का कोई अन्य देश सामरिक दृष्टि से मजबूत हो रहा हो, तो वे विश्व शांति के नाम पर उस पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश करते हैं. 11 मई, 1998 को भारत ने केवल परमाणु परीक्षण ही नहीं किया था, बल्कि इन देशों की हेकड़ी को भी तोड़ डाला था. अमेरिका ने यह कहकर कि भारत ने उसकी मर्जी के खिलाफ परमाणु परीक्षण किया है, भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिया, तो भारत द्वारा उसकी बिल्कुल भी परवाह नहीं की गयी. लगभग छह महीने बाद अमेरिका को अपनी कंपनियों के दबाव में सभी आर्थिक प्रतिबंध वापस लेने पड़ गये. इसके बाद भारत सरकार ने अपने सामरिक हितों के लिए और भी कई कदम उठाये जैसे अंतरिक्ष कार्यक्रम, दूर तक मार करनेवाली मिसाइल का निर्माण आदि. कहा जा सकता है कि मजबूत भारत की तरफ यह पहला कदम था. ऐसा नहीं है कि पोखरण परीक्षण का अवसर 1998 में ही आया. हमारे वैज्ञानिकों ने तो इस परीक्षण की तैयारी बहुत पहले से कर रखी थी, लेकिन शायद वाजपेयी से पहले की सरकारें परीक्षण का साहस नहीं जुटा पायीं.
आज जब एक तरफ अमेरिका और दूसरी तरफ चीन अपनी सामरिक ताकत की धौंस जमा रहे हैं, भारत को अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिए सामरिक दृष्टि से मजबूत होना ही होगा. वाजपेयी ने पोखरण परीक्षण के माध्यम से एक स्वतंत्र सामरिक नीति का साहस दिखाया था. बाद के वर्षों में, कांग्रेस के शासनकाल में अमेरिका के दबाव में हुई परमाणु संधि के कारण सामरिक स्वतंत्रता में शिथिलता भी आयी. हाल के वर्षों में भारत ने सामरिक एवं कूटनीतिक स्वतंत्रता के कई उदाहरण पेश किये हैं. चीन के दबाव के बावजूद आरसीइपी संधि से बाहर आना, चीन की ओबीओआर परियोजना को सिरे से नकारना, अमेरिका के दबाव के बावजूद इ-कॉमर्स, व्यापार संधि और पेटेंट कानून में बदलाव के प्रस्तावों को ठुकरा देना आदि ऐसे फैसले हैं, जो सरकार की इच्छाशक्ति और स्वतंत्र कूटनीति व अर्थनीति को दर्शाते हैं.
11 मई राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस है. यह हमारे लिए संकल्प का दिन है कि हम बिना किसी दबाव के निरंतर अपनी अर्थनीति, कूटनीति और प्रौद्योगिकी नीति को आगे बढ़ाएं. कोरोना कहर के बीच दुनियाभर के देश चीन पर निर्भरता को समाप्त कर स्वावलंबन की तरफ बढ़ने का प्रयत्न कर रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी स्वावलंबन पर जोर दे रहे हैं. इस महामारी के चलते अमेरिका और चीन में तनाव बढ़ने के भी संकेत हैं. ऐसे में हमें अपनी तटस्थता और स्वतंत्रता को बनाये रखते हुए देश हित में बिना किसी दबाव के सामरिक शक्ति का निर्माण करना ही होगा. स्वतंत्र अर्थनीति और कूटनीति के माध्यम से स्वदेशी, स्वावलंबन और आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को प्राप्त करना होगा. सामर्थ्य, उद्यमशीलता, वैज्ञानिक उन्नति और कौशल के आधार पर हमें इस लक्ष्य की ओर बढ़ना होगा. अपनी ताकत के बल पर भारत विश्व का मैन्युफैक्चरिंग हब तो बनेगा ही, हमारे युवाओं को लाभकारी रोजगार भी मिलेगा और कृषि का विकास भी होगा.