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रक्षा में आत्मनिर्भरता

वर्तमान चुनौतियों को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो आत्मनिर्भरता का संकल्प लिया है, उसे पूरा करने में रक्षा मंत्रालय का यह निर्णय बहुत सहायक होगा.

भारत रक्षा से संबंधित साजो-सामान और हथियारों की खरीद के लिए बड़े उत्पादक देशों पर निर्भर है. परमाणु बम और अत्याधुनिक उपकरणों से लैस आक्रामक पड़ोसियों तथा भू-राजनीतिक परिस्थितियों की वजह से हमें अपनी रक्षा क्षमता को निरंतर बढ़ाना पड़ता है. इस कारण भारत दुनिया के शीर्ष के आयातक देशों में है, लेकिन अब केंद्र सरकार ने इस स्थिति में बदलाव के लिए ठोस उपाय करना शुरू कर दिया है. कुछ साल पहले ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम की शुरुआत के साथ ही आवश्यक उपकरणों और हथियारों का निर्माण देश में ही करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था. रक्षा मंत्रालय ने उत्पादन और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए ठोस नीतिगत पहल की है.

इसके तहत अगले पांच सालों में 1.75 हजार करोड़ रुपये का टर्नओवर हासिल करने का इरादा है, जिसमें 35 हजार करोड़ रुपये का निर्यात भी शामिल है. अन्य देशों से हथियारों की खरीद के साथ कई तरह की मुश्किलें हैं. सामरिक गुटों में बसे देश और निर्माता कंपनियां अपने उत्पादों को बेचने के लिए कई तरह के पैंतरे आजमाते हैं. इससे खरीद में अक्सर देरी भी होती है. चूंकि उत्पाद बाहर का होता है, तो उसकी मरम्मत तथा कल-पूर्जों के लिए भी दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है.

कई बार तकनीक के हस्तांतरण और खरीदी गयी चीज में सुविधानुसार बदलाव पर भी शर्तें लदी होती हैं. इन कारणों से खर्च भी बढ़ता है तथा क्षमता भी प्रभावित होती है. राष्ट्रीय सुरक्षा के मसले के साथ सूचनाओं की गोपनीयता का सवाल भी बहुत अहम है. यदि हथियारों और उपकरणों को देश के भीतर तैयार किया जायेगा, तो उनके बारे में दूसरों की जानकारी सीमित होगी तथा उन्हें हम अपनी जरूरतों के हिसाब से बना सकेंगे. इस पहलकदमी से देश की उत्पादन क्षमता को भी बड़ी मजबूती मिलेगी तथा शोध और रोजगार का दायरा भी बढ़ेगा.

कोरोना वायरस के संक्रमण से जूझ रही दुनिया की बदलती आर्थिकी में भारत की ठोस स्थिति को कायम रखने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो आत्मनिर्भरता का संकल्प लिया है, उसे पूरा करने में रक्षा मंत्रालय का यह निर्णय बहुत सहायक होगा तथा पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लक्ष्य को भी बड़ा आधार मिलेगा. हमारे देश में रक्षा उद्योग का मौजूदा आकार 80 हजार करोड़ रुपये के आसपास है, जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र की हिस्सेदारी लगभग 80 फीसदी है.

आर्थिक और नीतिगत सुधार के निरंतर प्रयासों के तहत रक्षा समेत विभिन्न क्षेत्रों में निजी क्षेत्र की भागीदारी और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का रास्ता खुला है. इस प्रस्ताव में भी ऐसे जरूरी प्रावधान हैं. छोटे व मझोले उद्यमों, और स्टार्टअप का शामिल किया जाना तथा घरेलू डिजाइन व अनुसंधान को प्रोत्साहित करने के प्रावधान स्वागतयोग्य हैं. आशा है कि इस नीति को अमल में लाने की पूरजोर कोशिशें होंगी.

Post by : Pritish Sahay

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