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इलेक्ट्रॉनिक कचरा प्रबंधन के लिए हों गंभीर प्रयास

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की मानें, तो 2021-22 में देश में 16 लाख टन से अधिक ई-कचरा उत्पन्न हुआ. इसमें मुश्किल से 30 प्रतिशत ई-कचरे का भी निस्तारण नहीं हो पा रहा है.

भारत डिजिटल अर्थव्यवस्था की ओर तेजी से बढ़ रहा है. सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी आधारित सेवाएं लोगों के जीवन को आसान बना रही है. पर अर्थव्यवस्था का डिजिटल अवतार इलेक्ट्रॉनिक कचरे की शक्ल में एक नयी चुनौती लेकर आया है. घरों में इस्तेमाल होनेवाले कूलर, एयर कंडीशनर, वाशिंग मशीन जैसी वस्तुओं के अलावा मोबाइल, लैपटॉप, डिजिटल घड़ी तय समय के बाद ई-कचरा में परिवर्तित हो जाते हैं. इससे पहले की भारत ई-कचरे का बड़ा डंपिंग ग्राउंड बन जाए, समय रहते इसके निस्तारण की व्यवस्था बनानी होगी.

ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर की रिपोर्ट के अनुसार, 2019 में लगभग 53.6 मिलियन मीट्रिक टन ई-कचरा दुनियाभर में उत्पन्न हुआ. इस दशक के अंत तक यह 74 मिलियन टन के स्तर पर पहुंच जायेगा. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की मानें, तो 2021-22 में देश में 16 लाख टन से अधिक ई-कचरा उत्पन्न हुआ. इसमें मुश्किल से 30 प्रतिशत ई-कचरे का भी निस्तारण नहीं हो पा रहा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक, ई-कचरा दूसरे प्रदूषक घटकों की अपेक्षा बेहद घातक है. इसमें सीसा, पारा, कैडमियम जैसे विषैले तत्व पाये जाते हैं, जो सांस की बीमारी और कैंसर पैदा करने की वजह बनते हैं. देश में एक अप्रैल, 2023 से ई-अपशिष्ट प्रबंधन के नये नियम लागू हैं. हालांकि, अभी इसका सफल क्रियान्वयन बाकी है. एक आम उपभोक्ता घर में खराब हो चुकी इलेक्ट्रॉनिक वस्तु को अमूमन कबाड़ी वाले को देता है. पर पुनर्चक्रण इकाई तक ई-कचरे का बहुत कम हिस्सा पहुंचता है, क्योंकि देश में पुनर्चक्रण केंद्र की कमी है. महानगरों और राज्यों की राजधानी में भी पुनर्चक्रण संयंत्र गिने-चुने ही हैं.

ई-कचरा जिस तेजी से बढ़ रहा है, बेहतर होगा कि ठोस और गीले कचरे की तरह ई-कचरा संग्रह की व्यवस्था हो. इसकी पूरी जिम्मेदारी केवल सरकार और स्थानीय निकाय के भरोसे नहीं छोड़ी जा सकती. इलेक्ट्रॉनिक साजो-सामान बनाने और बेचने वाली कंपनियां भी इसके संग्रहण प्रक्रिया को मजबूती दें. ई-अपशिष्ट प्रबंधन से जुड़ी संस्था ‘करो संभव’ के संस्थापक, प्रांशु सिंघल के अनुसार, ई-कचरे में सोना, चांदी, निकेल, कोबाल्ट, पैलेडियम, प्लेटिनम जैसी महंगी धातुओं के अलावा कई हानिकारक तत्व भी होते हैं. वर्तमान पुनर्चक्रण व्यवस्था का पूरा जोर केवल महंगी धातुओं को प्राप्त करने पर है. इससे ई-अपशिष्ट प्रबंधन के लक्ष्य धूमिल होंगे. बेहतर होगा कि ई-कचरे में मौजूद हानिकारक तत्वों को पर्यावरण को दूषित करने से रोका जाए. इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं से सजावटी वस्तुएं बनाने के चलन पर भी रोक लगनी चाहिए. इलेक्ट्रॉनिक सामान के कचरे में तब्दील होने की अवधि को बढ़ाने के लिए वस्तुओं की डिजाइनिंग को टिकाऊ बनाने पर भी ध्यान देना चाहिए. इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशन यूनियन के मुताबिक, इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएं जितनी पर्यावरण अनुकूल होंगी, पुनर्चक्रण उतना ही आसान होगा.

केंद्रीय उपभोक्ता मंत्रालय राइट टू रिपेयर के जरिये इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के पुन: प्रयोग (रियूज) को बढ़ावा दे रहा है. इसके लिए कंपनियों और ब्रांडों को उपभोक्ताओं के साथ वस्तुओं की मरम्मत से जुड़ी विस्तृत जानकारी साझा करने को कहा गया है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व व्यवस्था शुरू किया है. इसमें सीपीसीबी के पोर्टल पर निर्माताओं को ई-कचरा संग्रह, पुनर्चक्रण और प्रसंस्करण की जानकारी देनी होती है. हालांकि ई-अपशिष्ट प्रबंधन नियमों के कमजोर क्रियान्वयन की वजह से कंपनियों और ब्रांडों की जिम्मेदारी तय नहीं हो पाती. देश में ई-कचरा संग्रह में कबाड़ीवाले की अहम भूमिका है, इसलिए उन्हें सामाजिक और स्वास्थ्य सुरक्षा दिये जाने की जरूरत है. इससे वे ई-कचरा एकत्र करते हुए स्वयं और पर्यावरण दोनों को सुरक्षित रख सकेंगे.

इस दिशा में इकोवर्क इंटरनेशनल ने साझा कार्यस्थल का नवाचार पेश किया है. इसमें ई-कचरा निस्तारण से जुड़े लोग एक छत के नीचे पृथक्करण की सुविधा हासिल करते हैं. बेल्जियम स्थित वेस्ट इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक इक्विपमेंट फोरम (वीफोरम) की पहल पर ई-कचरे के निस्तारण से जुड़ी सर्वोत्तम प्रथाएं विकसित की जा रही हैं. ई-कचरे के प्रबंधन पर काम कर रहे भारत समेत 50 देशों की संस्थाएं वीफोरम के सदस्य हैं. वीफोरम की पहल पर हर वर्ष 14 अक्तूबर को ई-अपशिष्ट दिवस मनाया जाता है. इस वर्ष इसका थीम है, ‘आप कुछ भी रिसाइकिल कर सकते हैं, प्लग, बैटरी या फिर केबल.’

पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने ई-कचरे को लाइफ मिशन में शामिल कर एक सराहनीय पहल की है. विनिर्माण क्षेत्र में भी कच्चे माल के पुन: प्रयोग को बढ़ावा देने की पहल होनी चाहिए. पुन:प्रयोग किये जाने वाले कच्चे माल पर रियायत से चक्रीय अर्थव्यवस्था मजबूत होगी. जरूरत है कि इलेक्ट्रॉनिक कचरे के निस्तारण में सभी अपनी जवाबदेही समझें. पर ई-कचरा प्रबंधन के ठोस नियमन और व्यवस्था की उपलब्धता के बिना यह संभव नहीं होगा.

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