Air Pollution : राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में गंभीर वायु प्रदूषण के बीच सर्वोच्च न्यायालय ने दिवाली के दौरान पटाखों के इस्तेमाल और पराली जलाने के मामलों में हुई वृद्धि पर सख्त टिप्पणी करते हुए दिल्ली में पूरे साल पटाखों पर प्रतिबंध लगाने के लिए कहा है, जिसे स्थिति की गंभीरता देखते हुए समझा जा सकता है. शीर्ष अदालत दिल्ली में वायु प्रदूषण के संबंध में एक मामले की सुनवाई कर रही थी और पराली जलाने की समस्या के खिलाफ पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में संबंधित प्राधिकार की ओर से की गयी कार्रवाई की जांच कर रही थी.
अदालत ने पाया कि दिवाली के दौरान पराली जलाने के मामले भी बढ़ गये थे, लेकिन पंजाब और हरियाणा की सरकारों ने दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं की. इस पर नाराजगी जताते हुए उसने कहा कि पराली जलाये जाने पर मुकदमा दर्ज न करने का स्पष्टीकरण राज्यों को देना होगा. दोनों राज्य सरकारों को उसने तीन सप्ताहों के भीतर हलफनामा दाखिल करने के लिए कहा है. इस पर 12 दिसंबर को वह सुनवाई करेगी. दिल्ली में दिवाली के समय पटाखों के इस्तेमाल पर भी शीर्ष अदालत ने सख्ती दिखायी.
अदालत ने ठीक ही कहा कि संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत प्रदूषण मुक्त स्वच्छ हवा में रहना हर नागरिक का मौलिक अधिकार है. पटाखों का इस्तेमाल नागरिकों के स्वास्थ्य के मौलिक अधिकार को प्रभावित करता है. शीर्ष अदालत ने पटाखों पर प्रतिबंध लागू करने में विफल रहने और सिर्फ कच्चा माल जब्त करने के लिए दिल्ली पुलिस को तो फटकार लगायी ही, दशहरे के दो दिन बाद पटाखों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने के दिल्ली सरकार के आदेश पर भी हैरानी जतायी. अदालत ने दिल्ली की पड़ोसी राज्य सरकारों से भी पटाखों के निर्माण, बिक्री, भंडारण और इस्तेमाल पर प्रतिबंधित करने पर जवाब देने के लिए कहा है.
दिल्ली सरकार को पूरे साल तक पटाखे को प्रतिबंधित करने का फैसला लेने के लिए कहने पर जब उसने सभी हितधारकों से सलाह लेने की बात कही, तो अदालत ने 25 नवंबर तक फैसला ले लेने के लिए कहा है. अदालत ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर को पटाखा बैन पर स्पेशल टास्क फोर्स का गठन करने के निर्देश देने के साथ पटाखों की ऑनलाइन सेल बंद करने के लिए भी कहा है. दरअसल यह चलन ही हो गया है कि दिवाली के समय गंभीर वायु प्रदूषण के बीच राजधानी दिल्ली और पड़ोसी राज्यों में पटाखों पर रोक सिर्फ कागजों पर होती है. पटाखों की आड़ में अवैध रूप से पराली जलाने के मामले भी बढ़ जाते हैं. शीर्ष अदालत की सख्ती से ही इन सब पर अंकुश लग सकता है.