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कोरोना काल में टीबी का गंभीर खतरा

रॉबर्ट कोच ने करीब 140 साल पहले ट्यूबरकुलोसिस (टीबी) बैक्टीरिया की खोज की थी. इंसान द्वारा खोजी गयी यह उन शुरुआती बीमारियों में से एक है, जिसके कारक स्पष्ट हैं. संक्रमण रोग होने से टीबी मौत का अहम कारण बनती है

डॉ संजना मोहन, डॉ अर्पिता अमीन, डॉ गार्गी गोयल editor@thebillionpress.org

रॉबर्ट कोच ने करीब 140 साल पहले ट्यूबरकुलोसिस (टीबी) बैक्टीरिया की खोज की थी. इंसान द्वारा खोजी गयी यह उन शुरुआती बीमारियों में से एक है, जिसके कारक स्पष्ट हैं. संक्रमण रोग होने से टीबी मौत का अहम कारण बनती है. सालाना एक करोड़ से अधिक लोग टीबी से संक्रमित होते हैं और 10 लाख से अधिक मौतें होती हैं. भारत पर टीबी का सबसे अधिक बोझ है. करीब 25 प्रतिशत मामले अकेले भारत से होते हैं और मौतें भी यहीं सबसे ज्यादा होती हैं.

बीते कुछ वर्षों में भारत में टीबी उन्मूलन कार्यक्रमों पर विशेष जोर दिया गया है. इलाज के नये तरीके, पोषण सहायता हेतु वित्तीय प्रोत्साहन और निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ी है. साथ ही आंकड़ों का व्यापक प्रबंधन हुआ है. इससे लोगों में जागरूकता भी आयी है. हालांकि, कोविड महामारी ने कई सफल प्रयासों पर पानी फेर दिया है.

महामारी के दौरान भारत में मार्च से मई, 2020 के बीच टीबी के नये मामलों के दर्ज होने में कमी आयी है. इंडियन जर्नल ऑफ ट्यूबरकुलोसिस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, आठ हफ्ते के लॉकडाउन(25 मार्च से 19 मई, 2020 तक) के दौरान टीबी मामलों की जांच में, लॉकडाउन से आठ हफ्ते पहले(25 जनवरी से 24 मार्च, 2020 तक) के मुकाबले 59 प्रतिशत की गिरावट आयी. इन आंकड़ों की तुलना पिछले वर्ष की इसी अवधि(25 मार्च से 19 मई, 2019) से करें, तो यह गिरावट 62 प्रतिशत रही. ‘निक्षय’ वेबसाइट पर दर्ज आंकड़ों के आधार पर इनकी गणना की गयी है. ‘निक्षय’ भारत के राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम की केस आधारित इलेक्ट्रॉनिक टीबी अधिसूचना प्रणाली है.

शोधकर्ताओं, डॉ अनुराग भार्गव और डॉ हेमंत दीपक शेवडे ने लिखा है- ‘आठ हफ्ते के दौरान जांच प्रक्रिया में आयी 59 प्रतिशत की गिरावट के मद्देनजर 87,711 अतिरिक्त टीबीजनित मौतों (19.5 प्रतिशत की बढ़त) का अनुमान है, इस प्रकार 2020 में टीबी से कुल 5,37,411 मौतें अनुमानित हैं.’ वर्ष 2015 में टीबी से सर्वाधिक 5,17,000 मौतें हुई थीं. उसके बाद से इसमें हर साल गिरावट आयी है. हालांकि, नये अनुमान से स्पष्ट है कि 2020 में मौतों का आंकड़ा 2015 को पार कर जायेगा. हमने देखा है कि अभी भी टीबी के मामले समुचित तरीके से दर्ज नहीं हो रहे हैं. जून से सितंबर, 2020 की अवधि में दर्ज मामले बीते वर्ष की इसी अवधि में दर्ज मामलों की तुलना में 67 प्रतिशत ही हैं. यानी लॉकडाउन में ढील देने के बावजूद ज्यादा बदलाव नहीं आया है.

इस बीमारी की तीव्रता और गंभीरता पोषण की स्थिति पर निर्भर है. रोजगार छिनने और खाद्य सुरक्षा नहीं होने से लोगों के पोषण पर बुरा प्रभाव पड़ा है. इससे हालात गंभीर होंगे और टीबी से मौतों में भी बढ़ोतरी होगी. हालांकि, दूसरा तर्क भी है कि कोविड संक्रमण को रोकने के लिए सामाजिक दूरी, मास्क के इस्तेमाल और खांसी से बचाव जैसे उपायों के कारण टीबी का फैलाव रुका है, जिससे मामले कम हुए हैं. ऐसे तर्कों से टीबी के खिलाफ हमारी लड़ाई जटिल हो सकती है. फिजिशियन के तौर पर हमने जमीनी हकीकत देखी है कि कैसे जांच तथा टीबी प्रबंधन और स्वास्थ्य देखभाल में कमी आयी है. इससे खासकर ग्रामीणों इलाकों में टीबी की गंभीरता बढ़ेगी.

देश के ज्यादातर हिस्सों में लेबोरेटरी तथा रेडियोलॉजी सर्विसेज जैसी बाह्य स्वास्थ्य सेवाएं बंद रहीं. लैब टेक्नीशियन कोविड टेस्टिंग में व्यस्त रहे. मरीजों को केंद्र तक पहुंचने से रोका गया और उनकी जांच नहीं हो पायी. इससे टीबी मरीजों का इलाज नहीं हो पाया. यातायात सुविधाएं बाधित होने से मरीज स्वास्थ्य केंद्रों तक नहीं पहुंच पाये और रोजगार छिनने और दुश्वारियों के कारण वे प्राइवेट अस्पतालों में इलाज वहन नहीं कर सकते.

हर दिन बीतने के साथ बिना इलाज के मरीजों की संख्या बढ़ रही है और इलाज से महरूम होने से बीमारी अधिक खतरनाक होती जा रही है. टीबी नियंत्रण पर दोबारा ध्यान केंद्रित करने के लिए कुछ अहम कदम उठाने की आवश्यकता है.दोबारा और तेजी से शुरू हो टीबी की जांच तथा इलाजः कोविड की जांच और इलाज के साथ-साथ टीबी के लिए भी स्पष्ट रणनीति बनाने की जरूरत है. टीबी की जांच और इलाज के लिए पीएचसी तथा सीएचसी पर हफ्ते में कुछ दिन निर्धारित किये जायें. यातायात समस्याओं, नकदी की कमी जैसी दिक्कतों के मद्देनजर लार के नमूनों को लेकर जांच के लिए भेजा जा सकता है. साथ ही एक्स-रे सुविधा के लिए मोबाइल वैन का इस्तेमाल किया जा सकता है.

पौष्टिक खाद्य पदार्थों के सेवन को बढ़ावाः टीबी के मरीजों में आधे से अधिक पुरुष होते हैं, जो कि परिवार में आमदनी का अहम जरिया हैं. उनके बीमार होने से आमदनी और पौष्टिक खान-पान की दिक्कत बढ़ जाती है. टीबी मरीजों में कुपोषण सबसे गंभीर समस्या है. साल 2019 में हमने जिन टीबी मरीजों का इलाज किया, उनमें 93 प्रतिशत कुपोषित थे, 61 प्रतिशत तो अतिगंभीर कुपोषित थे. पोषण हेतु टीबी मरीजों को 500 रुपये प्रतिमाह देने की पहल सराहनीय है. पीडीएस को और व्यापक बनाने की जरूरत है, ताकि लोगों को पौष्टिक अनाज, दाल और तेल आदि प्रदान किया जा सके.

उपयुक्त आजीविका विकल्प बनाया जायेः चूंकि, टीबी से उबरने के बाद भी इस बीमारी से कई मरीजों के फेफड़ों को काफी नुकसान पहुंचता है, जिससे उनके काम करने की संभावना कम हो जाती है. ऐसे लोगों के लिए आजीविका के अन्य उपायों पर गौर करने की जरूरत है. उन्हें मनरेगा के तहत उनके घर के समीप ही रोजगार उपलब्ध कराया जा सकता है. किचन गार्डेन और मुर्गीपालन आदि के माध्यम से इन मरीजों के लिए अच्छी आमदनी के साथ-साथ पौष्टिक खाद्यान्न की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सकती है.

(सभी लेखिकाएं चिकित्सक हैं और स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी हैं.)

Posted by: Pritish Sahay

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