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चीन को लेकर रक्षा तैयारी में न हो कमी

चीन की हरकतों से साफ पता चलता है कि वह एशिया में अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहता है और इसके लिए वह अपनी ताकत की धौंस दिखाता रहता है.

अरुणाचल प्रदेश में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीनी सैनिकों की आक्रामकता से फिर यह स्पष्ट हुआ है कि चीन लंबे समय तक हमारे लिए गंभीर चुनौती बना रहेगा. हम भले ही वास्तविक नियंत्रण रेखा को एलओएसी बोलते रहें, पर मेरा मानना है कि चीन यह समझता है कि यह रेखा उसके हिसाब से निर्धारित होती है. इस तथ्य का हमें ध्यान रखना पड़ेगा. जो हरकत चीनी सेना ने ढाई साल पहले गलवान में की थी, अरुणाचल प्रदेश में उसे दोहराया गया है.

चीन इस प्रदेश को अक्सर अपना हिस्सा बताता रहा है और शहरों को अपने हिसाब से नामकरण करता है. तिब्बत को कब्जा करने के दौर से चीन की मानसिकता जगजाहिर है. यह उल्लेखनीय है कि हमारे सैनिकों ने पहले की तरह ही चीनियों को मुंहतोड़ जवाब दिया है और उन्हें पीछे हटने पर मजबूर किया है. उसके बाद तुरंत दोनों ओर के सैन्य अधिकारियों की बैठक भी हुई है.

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बताया है कि इस घटना को कूटनीतिक स्तर पर भी उठाया गया है. उन्होंने स्पष्ट कहा है कि चीन को यह संदेश दिया है कि ऐसी हरकतों से बाज आए. भारत हमेशा से कहता रहा है कि बल प्रयोग के द्वारा नियंत्रण रेखा को बदलने की किसी भी एकतरफा कोशिश को स्वीकार नहीं किया जायेगा.

जब यह घटना हुई, तब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग सऊदी अरब के दौरे पर थे. उनकी अनुपस्थिति में उनकी सेना ने अगर यह हरकत की है, तो इसकी जांच होनी चाहिए और दोषी कमांडरों पर कार्रवाई होनी चाहिए. कमांडर स्तर पर होने वाली चर्चा में इसे स्पष्ट किया जाना चाहिए. दोनों सेनाओं के अधिकारियों की वार्ता प्रक्रिया की 17वें चरण की बातचीत होने वाली है.

कुछ समय पहले उत्तराखंड में भारतीय और अमेरिकी सेनाओं का संयुक्त अभ्यास हुआ था. इस पर चीन ने बिना मतलब आपत्ति जतायी थी. उसे भारत ने पूरी तरह खारिज कर दिया था. मेरा मानना है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अगर पूरी तरह से कोई भरोसेमंद सहमति बनती है, तभी इस तरह की समस्याओं का समाधान होगा. तब तक चीन की ओर से ऐसी हरकतें होती रहेंगी. चीन अपनी विस्तारवादी नीति के अनुसार चल रहा है.

इसका एक उदाहरण हमने कुछ साल पहले दोकलाम में देखा था. वहां भूटान के क्षेत्र में चीनी सेना ने हस्तक्षेप की कोशिश की थी. फिलीपींस से उसके क्षेत्रीय विवाद पर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का निर्णय आ चुका है, पर चीन उसे मानने के लिए तैयार नहीं है. साउथ चाइना सी, ईस्ट चाइना सी, ताइवान आदि को लेकर उसके रवैये को दुनिया देख रही है. चीन की सीमाएं 14-15 देशों से लगती हैं, पर क्षेत्रीय मसलों को लेकर उसके लगभग दो दर्जन देशों के साथ विवाद हैं.

चीन की हरकतों से साफ पता चलता है कि वह एशिया में अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहता है और इसके लिए वह अपनी ताकत की धौंस दिखाता रहता है. समुद्री क्षेत्र में उसके जहाज विचरते रहते हैं और डराने की कोशिश करते हैं. जापान के एक द्वीप पर चीन का ऐसा ही रवैया है. दक्षिण कोरिया के साथ भी उसकी तनातनी रहती है. आप कहीं पर भी चीन को देखेंगे, तो पायेंगे कि वह अपनी शक्ति के सहारे दबाव बनाने के प्रयास करता है.

मैं यह समझता हूं कि इस समय चीन यह सोचता है कि वह दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, सैन्य दृष्टि से भी मजबूत हो रहा है तथा तकनीक के क्षेत्र में महाशक्ति बनने के लिए प्रयासरत है, तो वह सारी दुनिया को निर्देशित कर सकता है. अभी कुछ दिन पहले भारतीय नौसेना के प्रमुख ने भी कहा था कि हिंद महासागर में चीनी सेना की गतिविधियां बढ़ रही हैं, जिन पर हमारी नजर है.

चीन की ऊर्जा जरूरतों का बड़ा हिस्सा मध्य-पूर्व से आता है. अभी चीनी राष्ट्रपति सऊदी अरब गये थे, जहां उन्होंने सारे अरब देशों के नेताओं से मुलाकात भी की. चीन की कोशिश है कि अरब से आने वाले जहाजों के लिए हिंद महासागर से रास्ता बनाए. साउथ चाइना सी और ईस्ट चाइना सी में तो एक तरह से उसका आधिपत्य है.

इसी क्रम में अमेरिका हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी रणनीति पर चल रहा है, जिसमें भारत की अहम भूमिका है. भारत का कहना है कि इस क्षेत्र में शांति और स्थायित्व रहे तथा किसी एक देश का वर्चस्व न हो. चीन पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह क्षेत्र को विकसित कर रहा है और आर्थिक गलियारा भी बना रहा है. वह अरब सागर पर भी निगाह टिकाये हुए है. हिंद महासागर में अपने विस्तार के क्रम में वह श्रीलंका में बंदरगाह और अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर बना रहा है. बांग्लादेश और जिबूती में भी परियोजनाएं चल रही हैं. जिबूती में बड़ा सैन्य ठिकाना बनाने की उसकी योजना है.

हाल के समय में चीनी जहाज कथित सामुद्रिक शोध के बहाने जासूसी के काम में भी लगे हैं. ऐसे ही एक जहाज को श्रीलंका में ठहरने को लेकर भारत ने आपत्ति जतायी थी. तो, चीन खाड़ी देशों, पूर्वी अफ्रीका के देशों तथा दक्षिण एशिया के देशों के जरिये एक बड़ा सामुद्रिक नेटवर्क खड़ा करने की दिशा में काम कर रहा है. इस चुनौती का सामना करने के लिए भारत ने ‘सागर’ रणनीति बनायी है, जिसमें समूचे क्षेत्र के साझा विकास का उद्देश्य है. इसमें कई देशों का सहयोग लिया जा रहा है.

हालांकि भारत ने अपने स्तर पर और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीनी वर्चस्व और आक्रामकता को रोकने के अनेक प्रयास किये हैं, लेकिन हमारे पास इसके सिवा और कोई विकल्प नहीं है कि हम अपने को सैन्य स्तर पर और अर्थव्यवस्था के स्तर पर अधिक से अधिक विकसित करें. हमें ऐसे मित्र देशों का साथ भी लेना चाहिए, जो हमारे साथ हमेशा खड़े हों, लेकिन इसके भू-राजनीतिक आयामों को भी ध्यान में रखना होगा तथा किसी देश के साथ को लेकर पूरी तरह आश्वस्त नहीं होना चाहिए.

हम उनके ऊपर पूरी तरह से निर्भर नहीं रह सकते क्योंकि सभी के अपने हित भी होते हैं. यूक्रेन और अन्य कुछ मामलों में हम ऐसा होते हुए देखा भी रहे हैं. भारत एक स्थापित शक्ति, बड़ी अर्थव्यवस्था और सबसे बड़ा लोकतंत्र है और दुनिया उसे पूरा सम्मान भी देती है. हमें स्वयं पर भरोसा करना होगा.

भारत को अपने पड़ोसी देशों से अच्छे संबंध स्थापित करने चाहिए. संबंधों में दरार का चीन लाभ उठाता है. हमें अपने आत्मनिर्भर योजना में तेजी लाने की जरूरत है. हमें आधुनिक तकनीक और सैनिक साजो-सामान को किसी अन्य देश से तुरंत लेने से भी संकोच नहीं करना चाहिए. रक्षा तैयारियों में िकसी भी तरह की कोताही नहीं हो़ (बातचीत पर आधारित).

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