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दुष्प्रभाव की जानकारी

रोगियों एवं उनके परिजनों को दवा के साथ मिली जानकारी को ठीक से पढ़ना चाहिए और कोई संशय हो, तो चिकित्सक से पूछना चाहिए.

दवाओं के दुष्प्रभाव के बारे में जानकारी देने की जिम्मेदारी चिकित्सकों की नहीं है. दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक हालिया फैसले में कहा है कि ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1945 के अनुसार प्रावधान है कि दवा निर्माता और उसके एजेंट दवा के साथ उसके साइड इफेक्ट्स की जानकारी मुहैया करायेंगे. फार्मेसी प्रैक्टिस रेगुलेशंस, 2015 के तहत यह नियमन किया गया है कि दवाओं के दुष्प्रभाव के रोगी को बताना दवा विक्रेता की जिम्मेदारी भी है.

अदालत का यह फैसला एक जनहित याचिका को खारिज करते हुए आया है, जिसमें यह मांग की गयी थी कि चिकित्सकों को अलग पर्ची पर क्षेत्रीय भाषा में लिखकर मरीजों को दवाओं के दुष्प्रभाव की जानकारी देने का प्रावधान होना चाहिए. याचिका में यह भी कहा गया था कि रोगी दवा के डिब्बे में उपलब्ध करायी गयी पर्ची पर ध्यान नहीं देते. न्यायालय ने कहा कि यह कानून विधायिका द्वारा बनाया गया है और इसमें जानकारी देने के लिए दवा निर्माता और विक्रेता को जिम्मेदारी दी गयी है. इस प्रावधान में बदलाव करने का कोई निर्णय देना न्यायपालिका द्वारा कानून बनाने जैसा होगा.

उल्लेखनीय है कि संविधान के अनुसार कानून बनाने या मौजूदा कानून में संशोधन का अधिकार केवल विधायिका यानी संसद के दोनों सदनों, विधानसभाओं तथा विधान परिषदों को है. दवा के दुष्प्रभावों की बात करें, तो यह एक गंभीर समस्या है और सभी पक्षों को इस पर समुचित ध्यान देना चाहिए. यदि आवश्यक हो, तो कानूनी प्रावधानों में संशोधन किया जाना चाहिए. वैसे अनेक अस्पतालों में, खासकर बड़ी बीमारियों के मामलों में, डॉक्टर मरीज की एलर्जी और अन्य स्थितियों की जांच कराते हैं या रोगी से पूछते हैं.

इस आधार पर वे दवाएं लिखते हैं. यदि रोगी को कुछ दिन में दवाओं से परेशानी हो रही हो, तो उसे तुरंत अपने चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए. निश्चित रूप से रोगी को अधिकाधिक सूचना उपलब्ध कराना अच्छी बात है तथा इसके लिए समुचित नियमन एवं व्यवस्था करना भी आवश्यक है, परंतु इसके साथ यह भी जरूरी है कि लोगों में जागरूकता बढ़े. रोगियों एवं उनके परिजनों को दवा के साथ मिली जानकारी को ठीक से पढ़ना चाहिए और कोई संशय हो, तो चिकित्सक से पूछना चाहिए.

यह स्वीकार किया जाना चाहिए कि आम तौर पर अधिकतर लोग बैंक, बीमा, निवेश के बारे में जानकारियों की पर्ची को ठीक से नहीं पढ़ते हैं. कोई समस्या आने पर उन्हें पता चलता है कि यह तो पर्ची में लिखा हुआ था. सामानों के साथ आने वाले दस्तावेजों पर भी अमूमन ध्यान नहीं दिया जाता है. मरीज के हित पहले से कहीं अधिक सुरक्षित हैं. पर नयी चुनौतियां भी आती रहती हैं, जिनके समाधान के प्रास होते रहने चाहिए.

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