टाटा समूह का इतिहास और पूर्व के कुछ दशकों की इसकी कहानी तीन हस्तियों – जमशेदजी टाटा, दोराबजी टाटा और जेआरडी टाटा की जीवनी के रूप में भी कही जा सकती है. जमशेदजी को हमेशा उनकी लंबी टोपी और लहरदार सफेद दाढ़ी में एक बुजुर्ग पारसी व्यवसायी और एक ऐसी हस्ती के रूप में याद किया जाएगा, जिसने ‘निजी उद्यम भारत जैसे देश को कैसे रूपांतरित कर सकते हैं’ पर पहला विजन दिया. सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले समूह के चेयरमैन के रूप में जेआरडी को उस व्यक्ति के रूप में याद किया जाएगा, जिसने 21वीं सदी के लिए टाटा और भारतीय उद्योग को तैयार किया था.
प्रभात खबर के लिए ये विशेष लेख टाटा स्टील कॉरपोरेट सर्विसेज के वाइस प्रेसिडेंट चाणक्य चौधरी ने लिखा है…
इन दिग्गजों के मध्य में सर दोराबजी हैं, जिन्होंने वास्तव में 20 वीं शताब्दी के दो भीषण युद्ध के बीच समूह की नींव रखी. आज, समूह के तीन सबसे सुनहरे रत्न – टाटा स्टील, टाटा पॉवर और टाटा केमिकल्स– उनकी दूरदर्शिता और अपने समय की बेजोड़ दृढ़ता के प्रतिफल हैं. लेखक आर एम लाला ने ‘ऑफ क्रिएशन ऑफ वेल्थ ’ नामक अपनी पुस्तक में, जो टाटा ग्रुप की प्रभावशाली औद्योगिक जीवनी है, दोराबजी के जीवन के कुछ बहुत ही रोचक ऐतिहासिक तथ्यों का उल्लेख किया है, जो ‘अपने समय के पुरुष’ की एक छवि के रूप में उनको चित्रित करते हैं. जब एडिसन, फोर्ड और वेस्टिंगहाउस जैसे लोग पश्चिम का निर्माण कर रहे थे.
टाटा हाइड्रो–इलेक्ट्रिक कंपनी (अब टाटा पॉवर) में दोराबजी और उनके सहयोगियों द्वारा विद्युतीकरण के पहले से मिल मालिकों से पुराने बॉयलर खरीदना एक टेक्स्ट बुक केस है, जो दर्शाता है कि किस प्रकार एक बाजार का निर्माण किया जा सकता है. बैंक ऋण के लिए अपनी पूरी व्यक्तिगत संपत्ति 1 करोड़ रुपये में गिरवी रखने की कहानी, जिसने 1920 के दशक की शुरुआत में टाटा स्टील को बचाया था, भारत के आर्थिक इतिहास के निर्णायक क्षण बन गये हैं. संभवत: दोराबजी की छवि को लेकर एक सबसे प्रीतिकर घटना एक बैलगाड़ी में सोडा वाटर के साथ चाय बनाने की कोशिश करते हुए मध्य भारत में लौह-अयस्क की खोज करना है.
डेढ़ सदी से अधिक समय तक केवल 8 लोगों ने 113 बिलियन के टाटा समूह की जिम्मेदारी संभाली है. इनमें से प्रत्येक की विरासत काफी हद तक अद्वितीय रही है और कुछ मामलों में, उल्लेखनीय रूप से साहसिक है. दोराबजी के नेतृत्व में 28 वर्ष न केवल समूह के चेयरमैन के पद के लिए दूसरा सबसे लंबा कार्यकाल है, बल्कि कंपनी के इतिहास की एक महत्वपूर्ण अवधि भी है. लोग आसानी से यह भूल जाते हैं कि जब राजनीतिक नेता देश की आजादी के लिए लड़ रहे थे तब जमशेदजी, दोराबजी और उनके लोग भारत को आयातित स्टील से मुक्त करने की कोशिश कर रहे थे. शायद दोराबजी जैसे नेतृत्वकर्ता के लिए आर्थिक स्वतंत्रता एक देश की स्वतंत्रता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था और अगर वे आज जीवित होते, तो वे वर्तमान सरकार के ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ के अग्रणी चैंपियन में से एक होते.
दोराबजी पेशेवर खेलों के गहन प्रतिबद्ध संरक्षक थे और इस क्षेत्र में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा है. उन्होंने 1920 के एंटवर्प ओलंपिक में चार एथलीटों और दो पहलवानों को भेजा, जो खेल के क्षेत्र में महान योगदान की उनकी फलदायी यात्रा की पहली कड़ी थी. इंटरनेशनल ओलंपिक कमेटी के एक प्रतिष्ठित सदस्य बनने से पहले, उन्होंने इंडियन ओलंपिक काउंसिल के चेयरमैन के रूप में कार्य किया, जिसके दौरान उन्होंने 1924 में पेरिस ओलंपियाड के लिए भारतीय टीम को वित्तपोषित किया. चाहे फुटबॉल हो, हॉकी हो या पेशेवर पर्वतारोहण हो, खेल के क्षेत्र में टाटा स्टील के कार्य दोराबजी द्वारा रखी गयी मजबूत नींव पर ही किए जा रहे हैं.
शायद उनके सभी योगदानों में सबसे बड़ा योगदान ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस’ है– एक सपना, जिसने 1883 में एक पानी के जहाज पर आकार लिया था, जब जेएन टाटा ने स्वामी विवेकानंद से मुलाकात की थी और लगभग दो दशक बाद दोराबजी ने इसे साकार किया.
दोराबजी के जीवन की यात्रा का समापन ऐसे समय हुआ, जब दुनिया महामंदी के बीच थी. इसके बाद के दशक में द्वितीय विश्व युद्ध हुआ और दुनिया पूंजीवाद व साम्यवाद जैसे चरम राजनीतिक/आर्थिक विचारों के बीच विभाजित हो गयी. दोराबजी जैसे नेतृत्वकर्ताओं ने जिस प्रकार के पूंजीवाद को जिया, उसमें इस तरह के द्वैतवाद की गुंजाइश बहुत कम थी. उन्हें अपने पिता के सपने और पैतृक संपत्ति विरासत में मिली थी और अगले कुछ दशकों में अपने पीछे अपनी बनाई विरासत छोड़ गये. सर दोराबजी टाटा को हमेशा उस व्यक्ति के रूप में याद किया जाएगा, जिन्होंने टाटा समूह की नींव रखी थी.
Posted By : Rajneesh Anand