बहनों की राखियां, चीन को चेतावनी

बहनों द्वारा खुद से राखियां बनाना एक तरह से चीन को चेतावनी देना ही कहा और समझा जायेगा. यह भाई-बहनों का स्वाभिमान जगानेवाली पहल है.

By संपादकीय | August 3, 2020 12:59 AM

मृदुला सिन्हा, पूर्व राज्यपाल, गोवा

snmridula@gmail.com

पांच वर्ष पूर्व की बात है. अन्य त्योहारों की भांति गोवा के राजभवन में राखी का त्योहार भी मनाने का निश्चय किया गया. पचास बहनों को उनके भाइयों के साथ बुलाया गया. सभी राखियों की सुंदरता पर बातें हो रही थीं. एक-दो को छोड़ कर सब राखियां एक रंग-रूप की थीं. पता चला, वे चीन की किसी कंपनी में बनी राखियां थीं. मन में एक प्रश्न कौंधा था, हमारे घरों में कहां-कहां समा गया है चीन! सर्वप्रथम इलेक्ट्रिक सामान चीन ने भेजना प्रारंभ किया. दीपावली में हमारे घरों को सजाने के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार की लड़ियां, पटाखे सब चाइनामेड! हर त्योहार पर उत्सव के अनुकूल चीन के बनाये सामान से बाजार सज जाता था.

यहां तक कि भगवान गणेश के साथ हमारे अन्य देवी-देवताओं की भी मूर्तियों को बनाने का उसने श्रीगणेश कर दिया. खरीदते समय सबके मन में एक हूक-सी अवश्य उठती थी, लेकिन बाजार भी हमें मजबूर करता था, हम चीन के रंग में रंगते जा रहे थे. कुछ लोगों ने उन समानों को नहीं खरीदने का अभियान चलाया, लेकिन जिन वस्तुओं के हम आदी हो जाते हैं, शीघ्रता से कहां त्यागते हैं? मुझे स्मरण है कि 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद 1964 में मैं मोतिहारी महिला काॅलेज में व्याख्याता हुई. मेरी एक साथिन वीरगंज (नेपाल सीमा) से चाइनीज कलम और टाॅर्च ले आयी थी. मैंने उन्हें लेने से इंकार कर दिया था.

सही बात तो यह है कि दूसरे देशों से आयीं उपभोक्ता सामग्रियों को भेजनेवालों के मनसा के अनुसार चीजें भी सस्ती ही होती हैं. उपभोक्ता उनका उद्देश्य नहीं भांप पाते. मात्र वस्तुओं के मूल्य पर उनका ध्यान जाता है. किसी देश के द्वारा उपभोक्ता सामग्रियां दूसरे देश में भेजने के पीछे आगे चल कर उस देश को गुलाम बनाने की ही मनसा रहती है. इतिहास साक्षी है कि सोने की चिड़िया भारत में सदियों से समुद्र मार्ग, सड़क मार्ग या जंगल मार्ग से आनेवाले आक्रांताओं का मुख्य उद्देश्य अपना सामान बेचना ही होता था.

धीरे-धीरे हमारी जनता के बीच अपनी पैठ बढ़ा कर देश की राजसत्ता हथियाना. बहुत पीछे की बात छोड़ दें, तो सत्रहवीं शताब्दी में इस्ट इंडिया कंपनी के देश में घुसने का उद्देश्य हमें स्मरण है. हमारे देश से कपास ले जाकर मैनचेस्टर में सूती कपड़ा बुन कर हमारे देश में बेचना. सर्वप्रथम हम उनके कपड़े के गुलाम हुए तथा वस्त्र निर्माण में हमारी कलाएं लुप्तप्राय हुईं. बाद में उनकी सत्ता की गुलामी दो सौ सालों तक भुगतनी पड़ी. चीन ने भारत में होजरी का समान भेजना बहुत पहले प्रारंभ किया. अब चीन भारत की सीमा लद्दाख पर भी दस्तक देने लगा है और अब तो वह समुद्र में भी प्रवेश कर गया है.

महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ते हुए विदेशी कपड़े जलाना भी प्रारंभ किया था. उन्होंने सर्वप्रथम घर-घर चरखा चलवाना प्रारंभ किया, ताकि विदेशी कपड़ों का आयात बंद करवाने पर भारतीयों द्वारा चरखा पर काते सूत से बुना कपड़ा मिले. भारत वस्त्र के मामले में आत्मनिर्भर बनेगा. देश में विदेशी कपड़ों के बहिष्कार का आंदोलन प्रारंभ हुआ. ऐसे आंदोलन से स्वाभिमान और देश के प्रति भक्तिभाव बढ़ता है. चीन से कुछ खटपट प्रारंभ हुआ, देशभक्तों ने सर्वप्रथम चीन से आये सामानों का बहिष्कार करने का मुहिम चला दिया है.

इस मुहिम से भारत की जनता तेजी से जुड़ रही है. इसका कारण स्पष्ट है कि कोविड-19 के आतंक से बचने, कोरोना से युद्ध में विजयी होने का व्यक्तिगत, पारिवारिक और राष्ट्रीय अभियान चल रहा है. मन में विश्वास है कि भारत विजय प्राप्त करेगा. अभी भारत जाग्रतावस्था में है. राष्ट्रीय एकता के सूत्र मजबूत हो रहे हैं. प्रधानमंत्री ने ‘वोकल फॉर लोकल’ जैसा नारा दिया है. अपने-अपने घरों में भी मास्क बनाने का आह्वान करने पर घरों में बड़े पैमाने पर मास्क बनाये जा रहे हैं. ऐसे समाचार मिल रहे हैं कि भारत में बहनें भी पूर्व की भांति अपने हाथों से भैया के लिए राखियां बना रही हैं. जिन राखियों के तार-तार में बहनों की उंगलियों की थिरकन और भाई के प्रति प्रेमभाव के कण समाये होंगे.

सर्वप्रथम राखियां तो बन जाएं. भाइयों की कलाइयों पर बंध जाएं. आशा की जा सकती है कि भाई-बहन मिल कर आगे ढेर सारे वे सामान भी अपने हाथों तथा छोटे-छोटे उपकरणों से बना लेंगे, जो चीन से बनकर आते थे. ऐसे ही एक देशव्यापी बड़ा आंदोलन खड़ा होगा. दरअसल, कोरोना से एक बड़ा युद्ध लड़ने के लिए भारतवासी रणक्षेत्र में कूद पड़े हैं. उनमें राष्ट्रभक्ति का भाव जगा है.

आवश्यकता है, उन्हें जगाये रखने की. युद्ध काल में वैसे ही देशवासियों में एकता आ जाती है. बहुत-सी सामाजिक बीमारियों का भी इलाज हो जाता है. बहनों द्वारा अपने हाथों से राखियां बनाना भी एक तरह से चीन को चेतावनी देना ही कहा और समझा जायेगा. यह भाई-बहनों का स्वाभिमान जगानेवाली पहल होगी. देश पर आयी ऐसी विपदाओं के समय मात्र स्वाभिमान जगाने की जरूरत होती है. राष्ट्राभिमान स्वयं जग जाता है. आशा की जा सकती है कि बहनों द्वारा बनायी राखियां भी चीन को सब ओर से इंकार करने में राम द्वारा सेतु निर्माण के समय की भांति गिलहरी की भूमिका निभायेंगी.

(ये लेखिका के निजी विचार हैं.)

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