भारत में इंटरनेट की सुस्त रफ्तार
डिजिटल खाई के गंभीर सामाजिक प्रभाव हैं. तकनीक तक पहुंच हासिल करने में अक्षमता मौजूदा सामाजिक बहिष्करण को बढ़ा सकती है और व्यक्तियों को आवश्यक संसाधनों से वंचित कर सकती है.
आज इंटरनेट के बिना जीवन की कल्पना असंभव है. सूचना, मनोरंजन, व्यापार और शिक्षा के बाजार को इंटरनेट ने और अधिक विस्तार दिया है. इंटरनेट ने जीवन को सुविधाजनक बनाने में महती भूमिका अदा की है. साथ ही, यह समाज में क्रांतिकारी बदलाव का वाहक भी बना है. हालांकि यह भी विडंबना है कि अब भी एक तबके तक इंटरनेट की पहुंच नहीं है. गरीबी, तकनीकी साक्षरता का अभाव तथा इलेक्ट्रॉनिक गैजेट खरीदने में असमर्थता की वजह से इस तबके के लिए इंटरनेट विलासिता की वस्तु है.
भारत में इंटरनेट की वृद्धि दर लगभग स्थिर हो गयी है. भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के आंकड़ों के अनुसार, यह 2016 से 2020 तक दो अंकों की वृद्धि दर के मुकाबले 2021 में गिरकर लगभग चार फीसदी तक आ गयी है. जून, 2022 को समाप्त तिमाही में इंटरनेट ग्राहकों की वृद्धि 2022 के कुल महीनों की तुलना में एक फीसदी से भी कम थी.
यदि यही तुलना 2021 की समान तिमाही से करें, तो यह एक फीसदी से भी कम थी. जानकार इसकी वजह स्मार्टफोन की महंगाई मान रहे हैं. यानी कम आय वर्ग के लोग मोबाइल नहीं खरीद पा रहे हैं और इंटरनेट से नहीं जुड़ पा रहे हैं. इंटरनेट प्रसार में यह सुस्ती निश्चित रूप से चिंताजनक है, क्योंकि बैंकिंग, राशन, पढ़ाई, कमाई, स्वास्थ्य और रोजमर्रा की जरूरतों से जुड़ी कई योजनाओं को लगभग ऑनलाइन बना दिया गया है, लेकिन भारत में अब भी आबादी के एक बड़े हिस्से के पास इंटरनेट कनेक्शन नहीं है, जिससे इन सेवाओं का लाभ लिया जा सके.
ट्राई के अनुसार, जुलाई, 2022 के अंत तक भारत में 80 करोड़ से कुछ ज्यादा इंटरनेट सब्सक्रिप्शन थे. इनमें से कई मामलों में एक ही व्यक्ति के पास एक से ज्यादा इंटरनेट सब्सक्रिप्शन रहे होंगे. विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, भारत की जनसंख्या 141 करोड़ का आंकड़ा पार कर चुकी है, यानी अब भी भारत में करोड़ों लोग इंटरनेट की पहुंच से दूर हैं.
ऐसे में सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए बहुत से लोगों को दूसरों की या इंटरनेट कैफे की मदद लेनी पड़ती है. इस स्थिति में सरकार को सोचना होगा कि सरकारी स्कीमों का डिजिटलाइजेशन कहीं लोगों को सुविधाओं का लाभ देने के बजाय उन्हें लाभ से वंचित रखने वाला न बन जाए. इंटरनेट तक पहुंच के मामले में दूसरी चुनौतियां भी हैं. सरकार भले ही हर गांव तक बिजली पहुंचाने का दावा करती हो, लेकिन अभी भी कई परिवारों तक बिजली की पहुंच नहीं है और ऐसी स्थिति में इंटरनेट की उपलब्धता मुश्किल ही लगती है.
कोरोना काल में भी डिजिटल शिक्षा को लेकर काफी बातें हुई थीं, लेकिन आंकड़े उन बातों से मेल नहीं खाते. जहां 2016 से 2020 तक इंटरनेट प्रसार में दोहरे अंकों में बढ़ोतरी हुई, वहीं 2020 में यह चार फीसदी रही और उसके बाद से एक फीसदी से भी कम है. ऐसे में जहां तमाम इंटरनेट आधारित गतिविधियों के चलते इंटरनेट का प्रसार बढ़ना चाहिए था, वह और सिकुड़ता दिख रहा है. यानी ऐसे तमाम लोग इस दौरान प्रक्रिया से कटे रहे, जिनके पास इंटरनेट नहीं था.
वहीं सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआइइ) के जनवरी, 2018 से लेकर दिसंबर, 2021 तक के घरेलू सर्वेक्षण के आधार पर तैयार रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय राज्यों में इंटरनेट की सबसे ज्यादा पहुंच महाराष्ट्र में है. इसके बाद नंबर आता है गोवा और केरल का. बिहार इस फेहरिस्त में काफी पीछे है. उसके बाद छत्तीसगढ़ और झारखंड हैं. एनएसएसओ के 2017-18 के डेटा के मुताबिक किसी भी पाठ्यक्रम में नामांकित हुए छात्रों में से सिर्फ नौ फीसदी छात्रों के पास इंटरनेट और कंप्यूटर था.
इनमें 25 फीसदी छात्र ऐसे थे, जिनके पास किसी भी जरिये से (न मोबाइल, न कंप्यूटर) इंटरनेट की सुविधा नहीं थी. संयुक्त राष्ट्र के ई-भागीदारी सूचकांक (2022) में दुनिया के 193 देशों में भारत 105वें पायदान पर है. ई-पार्टिसिपेशन इंडेक्स का अर्थ है कि किसी भी देश में ऑनलाइन सेवाओं का प्रचार-प्रसार, लोगों तक उसकी आसान पहुंच और उसे इस्तेमाल किये जाने का आंकड़ा क्या है. इस लिहाज से देखें, तो डिजिटल इंडिया के तमाम दावों के बावजूद भारत इस मामले में अभी बहुत पीछे है.
डिजिटल खाई के गंभीर सामाजिक प्रभाव हैं. तकनीक तक पहुंच हासिल करने में अक्षमता मौजूदा सामाजिक बहिष्करण को बढ़ा सकती है और व्यक्तियों को आवश्यक संसाधनों से वंचित कर सकती है. डिजिटल तकनीक और इंटरनेट पर बढ़ती निर्भरता को देखते हुए डिजिटल खाई शिक्षा, स्वास्थ्य, गतिशीलता, सुरक्षा, वित्तीय समावेशन और जीवन के अन्य सभी कल्पनीय पहलुओं को प्रभावित करती है.
डिजिटल साक्षरता बढ़ाने के लिए नेशनल डिजिटल साक्षरता मिशन और प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान जैसी कई सरकारी पहलें हुई हैं, पर इन्हें बढ़ाने की जरूरत है. पहुंच बढ़ाने के लिए मौजूदा डिजिटल बुनियादी ढांचे में सुधार करना भी अहम है. साथ ही, वंचित समूहों को तकनीक अपनाने के लिए प्रेरित करने और ऐसा बदलाव संभव बनाने के लिए डिजिटल कौशल प्रदान करने की जरूरत है.