उच्च मुद्रास्फीति और बढ़ती आर्थिक चुनौतियां
Recessio In Global Economy : एक और पहलू जो विनिर्माण क्षेत्र के विकास के लिए महत्वपूर्ण है, वह है कौशल की कमी. इस साल के शुरू में ताइवान के विदेश मंत्री ने भारत को आगाह किया था कि अगर वह सेमीकंडक्टर निर्माण में निवेश आकर्षित करना चाहता है, तो उसे कुशल इंजीनियरों की कमी को दूर करना चाहिए.
Recessio In Global Economy : सरकार और अन्य स्रोतों से हाल में आये अनेक आंकड़े सामने आये हैं, जो अर्थव्यवस्था में मंदी की ओर इशारा कर रहे हैं. यह चक्रीय मंदी है या नहीं, यह तो समय ही बतायेगा. क्या यह वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी से संबंधित है? अगर यह चक्रीय यानी अस्थायी है, तो छह महीने बाद इसमें तेजी आनी चाहिए. पर त्योहार के मौसम में अर्थव्यवस्था में मंदी आना, भले ही यह चक्रीय हो, चिंताजनक है. कैलेंडर वर्ष की अंतिम तिमाही में त्योहारी उत्साह और उपभोक्ता खर्च के कारण अर्थव्यवस्था को आम तौर पर बढ़ावा मिलता है. ऐसा अभी नहीं दिख रहा है. सरकार की ओर से जो आंकड़े आये हैं, वे औद्योगिक उत्पादन, निर्यात, कर संग्रह, खासकर वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) से जुड़े हैं. फिर भारतीय रिजर्व बैंक का डेटा और आकलन है, जिसने हाल में अपनी मौद्रिक नीति बैठक में ब्याज दरों में कटौती नहीं करने का फैसला किया. रिजर्व बैंक एक भावना सर्वेक्षण करता है और हर तिमाही में इसे जारी करता है. यह सर्वेक्षण अर्थव्यवस्था के भविष्य की दिशा का संकेत देता है. निजी स्रोतों, जैसे खरीद प्रबंधक सूचकांक (पीएमआइ) और कंपनियों के तिमाही परिणाम, के आंकड़े भी हैं.
विकास दर में लगातार गिरावट
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आइआइपी) अगस्त में नीचे चला गया. विकास दर लगातार तीन महीनों से नीचे जा रही थी. अगस्त का आंकड़ा (-0.1) लगभग दो वर्षों में सबसे कम है. बेमौसम बारिश से खनन गतिविधि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा, लेकिन विनिर्माण मंदी पर ध्यान देना जरूरी है. वाहनों की बिक्री सितंबर में 19 प्रतिशत गिर गयी, जबकि उसी समय त्यौहार का मौसम शुरू हुआ. इसी से संबंधित सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स की तमिलनाडु फैक्टरी में दो महीने तक चली हड़ताल है. यह कारखाना भारत में सैमसंग की बिक्री में लगभग 20 हजार करोड़ रुपये का योगदान देता है और यह निवेश आकर्षित करने का अहम उदाहरण है. सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) में विनिर्माण क्षेत्र का हिस्सा लगभग 16 प्रतिशत पर ठिठका हुआ है और ‘मेक इन इंडिया’ जैसी मजबूत पहल के बावजूद इसमें ज्यादा बढ़ोतरी नहीं हुई है. ऐसा लगता था कि चीन से हट रहीं या दूसरी जगहों पर भी निवेश करने का प्रयास कर रहीं कई पश्चिमी कंपनियां भारत की ओर आकर्षित हो सकती हैं. पर बड़े पैमाने पर ऐसा नहीं हुआ है. सेमीकंडक्टर कॉम्प्लेक्स स्थापित करने की भारत की योजनाओं समेत ग्रीन हाइड्रोजन और इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए पहल महत्वाकांक्षी हैं, पर जमीन पर वास्तविक प्रगति उत्साहजनक नहीं है.
कौशल की कमी
एक और पहलू जो विनिर्माण क्षेत्र के विकास के लिए महत्वपूर्ण है, वह है कौशल की कमी. इस साल के शुरू में ताइवान के विदेश मंत्री ने भारत को आगाह किया था कि अगर वह सेमीकंडक्टर निर्माण में निवेश आकर्षित करना चाहता है, तो उसे कुशल इंजीनियरों की कमी को दूर करना चाहिए. ताइवान इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण में भारत की मदद करने का इच्छुक है, पर बुनियादी ढांचे और उच्च आयात शुल्क जैसी बाधाओं को दूर करना होगा. विडंबना यह है कि भारत में आवश्यक कौशल की कमी है, 25 से 30 आयु वर्ग के लगभग 30 प्रतिशत कॉलेज स्नातक बेरोजगार हैं. इसका मतलब है कि कॉलेज की शिक्षा उन्हें उद्योग या रोजगार के लिए तैयार नहीं कर रही है. यह शिक्षा पाठ्यक्रम की स्थिति और शैक्षणिक संस्थानों की भूमिका पर एक गंभीर टिप्पणी है. कमजोरी की ओर इशारा करने वाला दूसरा आंकड़ा अगस्त में वस्तु निर्यात में गिरावट है, जो 34.7 अरब डॉलर पर आ गया है. इससे व्यापार घाटा बढ़ गया है. डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट आयी है, जिससे घाटे और मुद्रास्फीति के बारे में चिताएं बढ़ रही हैं. क्रय प्रबंधक सूचकांक सितंबर में 56.5 के साथ आठ महीने के निचले स्तर पर था, जो अगस्त में 57.5 था. यह भविष्य में संभावित तेजी का सूचक है.
जीडीपी की तुलना में धीमी गति से बढ़ रहा जीएसटी
जीएसटी संग्रहण में रुझान भी अर्थव्यवस्था में मंदी की ओर इशारा करता है. सितंबर में 1.73 लाख करोड़ रुपये का संग्रहण हुआ, जो अगस्त में 1.75 लाख करोड़ रुपये रहा था. सितंबर का संग्रहण पिछले साल की तुलना में बमुश्किल 6.5 प्रतिशत अधिक था. रिफंड के बाद सितंबर का कुल संग्रह 1.53 लाख करोड़ रुपये था, जो एक साल पहले की तुलना में लगभग 3.9 प्रतिशत अधिक था. चूंकि जीएसटी एक लेन-देन कर है, इसलिए नॉमिनल जीडीपी की वृद्धि के साथ इसका तालमेल होता है, जो लगभग 10 प्रतिशत या उससे अधिक (मुद्रास्फीति और वॉल्यूम वृद्धि के कारण) बढ़ रहा है. यदि जीएसटी नॉमिनल जीडीपी की तुलना में धीमी गति से बढ़ रहा है, तो निश्चित ही यह चिंताजनक है. इस चिंता को और बढ़ाने वाली खबर यह है कि जीएसटी काउंसिल जीएसटी दरों में वृद्धि पर विचार कर सकती है, ताकि क्षतिपूर्ति उपकर को हटाने से होने वाली कमी को पूरा किया जा सके. राज्य सरकारों को राज्य बिक्री कर लगाने के अधिकार को छोड़ने के कारण होने वाले अनुमानित नुकसान की भरपाई के लिए उपकर लगाया गया है.
मंदी के संकेत मिल रहे
इस प्रकार, अर्थव्यवस्था में मंदी के संकेत विभिन्न क्षेत्रों से मिल रहे हैं. यहां तक कि विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार 12 से घटकर 11 प्रतिशत रह गया है और कृषि क्षेत्र में रोजगार 2018-19 में 43 प्रतिशत से बढ़कर अब 46 प्रतिशत हो गया है यानी 6.8 करोड़ श्रमिकों की वृद्धि हुई है. लेकिन कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों में वापस जाने वाले श्रमिकों का मतलब है कि उन्हें विनिर्माण और सेवाओं की तुलना में कम वेतन और कम उत्पादकता वाली नौकरियां मिलेंगी. इसका अर्थ कम क्रय शक्ति और इसलिए कम उपभोक्ता खर्च हो सकता है. हमें उपभोक्ता खर्च के साथ-साथ घरेलू आय में वृद्धि के लिए विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार में तेजी से वृद्धि करने की आवश्यकता है. यह सच है कि भारतीय अर्थव्यवस्था अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से तेजी से बढ़ रही है. पर ध्यान रखें कि अमेरिका की तीन प्रतिशत की वृद्धि दर भारत की 30 प्रतिशत की दर के समान है. अमेरिका में अभी तक मंदी का अनुभव भी नहीं हुआ है. इसलिए, भारत की मंदी को वैश्विक घटना के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. हमें यूक्रेन और मध्य-पूर्व में युद्धों, तेल की बढ़ती कीमतों और मुद्रास्फीति के प्रभावों के बारे में भी चिंता करने की जरूरत है. रिजर्व बैंक को भी आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए ब्याज दरों में कमी करनी चाहिए थी, लेकिन उसने मुद्रास्फीति की चिंता के कारण ऐसा नहीं किया. अगले छह महीने अर्थव्यवस्था के लिए चुनौतीपूर्ण दिखते हैं क्योंकि यह धीमी होती गति और उच्च मुद्रास्फीति की दोहरी चुनौतियों के बीच आगे बढ़ रही है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)