सड़क दुर्घटनाओं की अनदेखी करता समाज
ट्रैफिक नियमों की अनदेखी जैसे हमारे समाज में रची बसी है. रात में तो ट्रैफिक नियमों का कोई अर्थ ही नहीं रह जाता है. नाबालिगों का वाहन चलाना और उल्टी दिशा में वाहन चलाना एक आम बात है.
एक हालिया सरकारी रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2022 में 4.61 लाख से अधिक सड़क दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें 1.68 लाख से अधिक मौतें हुईं और 4.50 लाख से अधिक लोग घायल हुए. यह कोई छोटी संख्या नहीं है. सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा जारी इस रिपोर्ट के अनुसार, हर घंटे 53 सड़क हादसे हुए और हर घंटे 19 लोगों ने जान गंवा दी. कुल 4,61,312 सड़क दुर्घटनाओं में से 1,51,997 यानी 32.9 प्रतिशत हादसे एक्सप्रेसवे एवं राष्ट्रीय राजमार्गों पर हुए. वहीं 1,06,682 यानी 23.1 प्रतिशत हादसे राज्य राजमार्गों पर हुए. रिपोर्ट में कहा गया कि पिछले साल की तुलना में सड़क हादसों की संख्या में 11.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और उनसे होने वाली मृत्यु की दर 9.4 प्रतिशत बढ़ी है. सड़क हादसों में जान गंवाने वाले लोगों में एक बड़ी संख्या सुरक्षात्मक साधनों का इस्तेमाल न करने वालों की रही.
इनमें सबसे अधिक जान गंवायी उन लोगों ने, जो सीट बेल्ट और हेलमेट का इस्तेमाल नहीं कर रहे थे. अगर वे ऐसा कर रहे होते, तो संभवत: उनकी जान बच जाती. सड़क हादसों की सबसे बड़ी वजह ओवरस्पीडिंग है. इसके अलावा लापरवाही से ड्राइविंग, नशे में ड्राइव करना और ट्रैफिक के नियमों को अनदेखा करना भी अन्य कारण हैं. रिपोर्ट के अनुसार, सड़क दुर्घटनाओं का सबसे अधिक शिकार युवा हुए. वर्ष 2022 में 18 से 45 वर्ष के आयु वर्ग के 66.5 फीसदी लोग हादसों का शिकार हुए. सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौत में 18-60 वर्ष के कामकाजी आयु वर्ग के लोगों की संख्या 83.4 प्रतिशत थी. आप अंदाजा लगा सकते हैं कि किसी युवा का किसी हादसे में चले जाना परिवार पर कितना भारी पड़ता होगा.
तमिलनाडु में 2022 में राष्ट्रीय राजमार्गों पर सबसे अधिक 64,105 सड़क दुर्घटनाएं हुईं, जबकि सड़क दुर्घटना में जान गंवाने वालों की संख्या उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 22,595 रही. खबरों के अनुसार, तमिलनाडु इस दिशा में काफी कार्य कर रहा है. घायलों को अस्पताल ले जाने के लिए 13 मिनट के भीतर घटनास्थल पर एंबुलेंस पहुंचाने, दुर्घटना की जगह की समुचित मरम्मत करने और विभिन्न एजेंसियों के बीच बेहतर समन्वय के मामले में तमिलनाडु सरकार ने पहल की है. झारखंड में भी पिछले साल की तुलना में 2022 में 16 फीसदी सड़क हादसे बढ़े हैं. यहां सड़क हादसों से हुई मौत के मामलों में 11 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गयी है. वहीं बिहार में सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों में पिछले वर्ष की तुलना में 16.13 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, जबकि सड़क दुर्घटनाओं में 12.9 बढ़ोतरी हुई है.
समय-समय पर केंद्र और राज्य सरकार समाचार माध्यमों के जरिये जागरूकता फैलाती रही हैं. केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने इस क्षेत्र में सराहनीय कार्य किया है. सीट बेल्ट लगाने और चालक के साथ बैठे व्यक्ति के लिए एक एयर बैग की अनिवार्यता जैसे कई बदलाव हुए हैं. यातायात नियमों को भी कड़ा किया गया है, लेकिन हर शहर, गांव और कस्बे में लोग यातायात नियमों की अनदेखी करते नजर आयेंगे. यही लापरवाही हादसों को जन्म देती है.
प्रभात खबर के बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल संस्करणों में ऐसा कोई दिन नहीं जाता, जिसमें हम किसी बड़े सड़क हादसे की खबर न छापते हों. एक बड़ी समस्या घायलों को अस्पताल तक पहुंचाने की है. लोग पुलिस की पूछताछ से बचने के लिए घायलों की अनदेखी कर देते हैं. नतीजतन, घायलों की मौत हो जाती है. यदि घायल व्यक्ति समय से अस्पताल पहुंच जाए, तो जान बचायी जा सकती है. कई राज्य सरकारों ने घायलों की सहायता के लिए लोगों को प्रोत्साहित करने की योजनाएं भी शुरू की हैं. बिहार और झारखंड में भी ऐसी योजनाएं हैं. झारखंड सरकार ने घायलों की सहायता के लिए लोगों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से ‘नेक आदमी’ नीति चला रही है.
इसके तहत घायलों को दुर्घटना के प्रथम घंटे में अस्पताल पहुंचाने में मदद देने वाले व्यक्ति को ‘नेक आदमी’ का तमगा देते हुए सम्मानित किया जाता है और इनाम भी दिया जाता है. यह भी ध्यान रखा जाता है कि ऐसे व्यक्ति को पुलिस पूछताछ के नाम पर तंग न किया जाए. बिहार सरकार की गुड सेमेटेरियन योजना में घायलों को अस्पताल पहुंचाने वाले लोगों को पांच हजार रुपये, प्रशस्ति पत्र और अंगवस्त्र से सम्मानित किया जाता है. ऐसे 919 लोगों को सम्मानित किया जा चुका है. बिहार सरकार ने तो अब प्रोत्साहन राशि पांच हजार से बढ़ा कर 10 हजार रुपये कर दी है.
जहां-तहां सड़क किनारे खड़े वाहन भी अक्सर हादसों को जन्म देते हैं. दूर से यह नहीं पता चल पाता है कि वाहन चल रहा है कि रुका हुआ है. सर्दी के मौसम में जब दिखाई देना कम हो जाता है, तो यह समस्या और गंभीर हो जाती है. जब तक आगे वाले वाहन के करीब गाड़ी पहुंचती है, तब तक देर हो जाती है और लोग बेवजह मारे जाते हैं. पूरे देश में ऐसे सड़क हादसे होते हैं और हम अब तक इस समस्या का समाधान नहीं ढूंढ पाये हैं. इसके अलावा तेज गति से वाहन चलाना, सीट बेल्ट का इस्तेमाल न करना, वाहन चलाने के दौरान मोबाइल पर बात करना, शराब पीकर वाहन चलाना, मोटर साइकिल चालक और सवारी का हेलमेट नहीं लगाना कई बार हादसों का कारण बनता है. हादसे की एक अन्य वजह है- गलत दिशा में वाहन चलाना. अपने अनुभव के आधार पर मैं कह सकता हूं कि उत्तर भारत में यह समस्या आम है कि लोग गलत दिशा में वाहन चलाते हैं और कई बार सामने से आ रहे वाहन से उनकी गाड़ी टकरा जाती है.
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि दुनियाभर में सबसे अधिक सड़क हादसे भारत में होते हैं. उसके बाद चीन और अमेरिका का स्थान है. इसकी रोकथाम के लिए हम समुचित उपाय नहीं कर रहे हैं. ट्रैफिक नियमों की अनदेखी करना जैसे हमारे समाज में रची-बसी है. रात में तो ट्रैफिक नियमों का कोई अर्थ ही नहीं रह जाता है. नाबालिगों का वाहन चलाना और उल्टी दिशा में वाहन चलाना एक आम बात है. अक्सर देखा गया है कि मां-बाप बच्चों को स्कूटी तो पकड़ा देते हैं, लेकिन उन्हें हेलमेट पहनने और यातायात नियमों का कड़ाई से पालन करने का निर्देश नहीं देते. हमें यह जान लेना जरूरी है कि सड़क दुर्घटनाओं के कारण एक तो बेवजह जानें जाती हैं, दूसरे इसका अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ता है. सड़क हादसा केवल कानून व्यवस्था भर का मामला नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक समस्या भी है. यदि सड़क हादसों से बचना है, तो हम सभी को यातायात नियमों का पालन करना होगा.