युद्ध का हो समाधान

अंतरराष्ट्रीय नियमों और संयुक्त राष्ट्र चार्टर सिद्धांत के अनुरूप कोशिशों को यह मानते हुए तेज करना होगा कि संवाद के जरिये समाधान हर वक्त मुनासिब होता है.

By संपादकीय | March 16, 2022 12:57 PM

तीन हफ्तों से रूस और यूक्रेन के बीच जारी लड़ाई से कई निर्दोषों की जान चली गयी है और लाखों बेघर हुए हैं. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोप सबसे बड़े शरणार्थी संकट में घिर गया है. रूसी सैन्य कार्रवाई से यूक्रेन के हवाई अड्डे, सड़कें, स्कूल, अस्पताल मलबे में तब्दील हो रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र ने चेताया है कि अगर यह युद्ध नहीं थमा तो मानव जीवन इसके असर से नहीं बच पायेगा.

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने अपील की है कि युद्ध को शीघ्र रोकने के लिए भारत और अन्य देश रचनात्मक भूमिका निभायें. टकराव रोकने के लिए शांति और कूटनीतिक पहल से बेहतर कोई अन्य विकल्प नहीं है. इसमें भारत, चीन, फ्रांस, जर्मनी, इजरायल और तुर्की जैसे देश प्रभावी मध्यस्थ बन सकते हैं.

अभी तक भारत का दृष्टिकोण तटस्थ ही रहा है. भारत रूसी सैन्य कार्रवाई के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र में लाये गये प्रस्तावों के लिए मतदान से परहेज करता रहा है. हालांकि, भारत ने संवाद का मार्ग अपनाने का आह्वान किया है. सुरक्षा परिषद में भारत के उप स्थायी प्रतिनिधि आर रवींद्र ने दोहराया है कि अंतरराष्ट्रीय नियमों, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का हर हाल में अनुपालन हो.

वार्ता से मौजूदा संघर्ष को तत्काल रोका जा सकता है. इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूसी राष्ट्रपति पुतिन और यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की से अलग-अलग वार्ता कर चुके हैं. उन्होंने संवाद और कूटनीति की राह को बेहतर बताया है, जिससे आसानी से समाधान की मंजिल तक पहुंचा जा सकता है. इस बीच 27 देशों के गुट यूरोपीय समूह ने मॉस्को के खिलाफ कुछ अन्य प्रतिबंधों घोषणा की है.

साथ ही वैश्विक वित्तीय लेनदेन की प्रमुख प्रणाली स्विफ्ट से बेलारूस के तीन बैंकों को बाहर कर दिया गया है. हालांकि, शीर्ष प्रतिनिधि स्तर पर रूस और यूक्रेन के बीच जारी वार्ता पर दुनिया की नजर बनी हुई है. उम्मीद है कि जल्द ही सकारात्मक नतीजे आयेंगे.

संकट और संघर्ष की इस घड़ी में सेनाएं ही जोखिम का सामना नहीं करती, बल्कि महिलाओं और बच्चों का भी जीवन दांव पर होता है. म्यांमार और अफगानिस्तान से लेकर साहेल और हैती तक महिलाएं और लड़कियां हिंसा की सबसे बड़ी कीमत चुका रही हैं. इस सूची में यूक्रेन का भी शामिल होना दुर्भाग्यपूर्ण है.

युद्ध की तपिश में यूक्रेनी महिलाओं और लड़कियों की जिंदगी, उम्मीद और भविष्य बर्बाद हो रहे हैं. तेल और गेहूं के दो प्रमुख उत्पादक देशों के जंग में जूझने से खाद्य संकट की भी चिंताएं हैं और दुनियाभर में जरूरी सामाग्रियों की आपूर्ति बाधित होने की आशंका मंडराने लगी है.

इस त्रासदी को तत्काल रोकने और शांति बहाली के लिए महत्तम प्रयास आवश्यक हैं. अंतरराष्ट्रीय नियमों और संयुक्त राष्ट्र चार्टर सिद्धांत के अनुरूप कोशिशों को यह मानते हुए तेज करना होगा कि संवाद के जरिये होनेवाला समाधान हर वक्त मुनासिब होता है.

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