कोविड-19 महामारी के दौर में हम पर्यावरण दिवस मना रहे हैं, यह अवसर स्टील इंडस्ट्री के लिए बहुत ही अहम है. इस मौके पर टाटा स्टील के संजीव पॉल, वाइस प्रेसिडेंट (सेफ्टी, हेल्थ ऐंड सस्टेनेबिलिटी) विस्तार से इंडस्ट्री से जुड़ी चुनौतियों और जिम्मेदारियों के बारे में बता रहे हैं, पढ़ें उनका यह खास आलेख.
आज हम वैश्विक महामारी कोविड-19 के प्रभाव में हैं, दो महीने से ज्यादा का वक्त हो चुका है पूरा देश लॉकडाउन में है. हालांकि अब अनलॉक 1 की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और जिंदगी रफ्तार पकड़ने लगी है. लॉकडाउन के दौरान महामारी के खतरे ने हर किसी को अलग-अलग अंशों में प्रभावित किया है, ऐसे में एक सामान्य चीज सबमें नजर आयी है, वह है कमजोर होने की भावना या यूं कहें कि लोग एक असुरक्षा की भावना को महसूस कर रहे हैं, जिसमें उनके अंदर अनिष्ट की आशंका घर कर गयी है.
आज पांच जून को हम विश्व पर्यावरण दिवस भी मना रहे हैं. कोविड-19 के दौर में यह हमारा पहला इवेंट है. कोविड -19 अब जीवन की वास्तवकिता बन गया है और हम अब अपने जीवन में सामान्य होते जा रहे हैं. भ्रम और अनिश्चितता के बीच यह भी महत्वपूर्ण है कि हम सस्टेनेबिलिटी यानी स्थिरता के बड़े संदर्भ में चुनौतियों का सामना करें. धरती पर स्थिरता कायम करने के लिए हमारे सामूहिक प्रयास संभवत: उस कमजोरी के अनुभव के प्रति हमारा विकल्प है जिसे हम कोविड -19 के दौर में पिछले कुछ महीनों से अनुभव कर रहे हैं.
धरती पर जीवन को बनाये रखने वाली सभी महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधियों में स्टील निर्माण का बहुत ही विशेष स्थान है. अयस्कों और कोयले के उत्खनन से लेकर जिम्मेदार निर्माण, उपभोग और तैयार उत्पादों के पुनर्चक्रण (रिसाइकलिंग) तक, स्टील एक स्थिर आर्थिक प्रणाली बनाने में निर्णायक भूमिका निभाता है, जो लाखों लोगों के जीवन और आजीविका का निर्वाह करता है.
सस्टेनेबिलटी यानी स्थिरता के दृष्टिकोण से भारतीय स्टील उद्योग धीरे-धीरे ही सही, लेकिन तेजी से बदल रहा है. संसाधन-प्रबल उद्योग के रूप में, भारत में स्टील उद्योग ने ऊर्जा की खपत कम करने, कुशल जल प्रबंधन और सर्कुलर अर्थव्यवस्था के बुनियादी सिद्धांतों को अपनाने के मामले में वैश्विक मानकों के साथ खुद को श्रेणीबद्ध कर लिया है. स्टील उन कुछ औद्योगिक उत्पादों में से एक है, जो पूरी तरह से रिसाइकिल योग्य है, जिससे यह बड़े पैमाने पर स्थिरता कार्यक्रमों (सस्टेनेबल प्रोग्राम्स) को लागू करने के लिए एक आदर्श उम्मीद बन जाता है. यह उद्योग भी प्राकृतिक संसाधनों की बचत, जैसे–वैश्विक अभ्यासों का चैंपियन बनने की तैयारी कर रहा है.
पिछले कुछ वर्षों में, बेहतर व अभिनव प्रक्रियाओं में कार्बन कुशल प्रौद्योगिकियों को अपना कर स्टील निर्माण को और अधिक कार्बन और ऊर्जा कुशल बनाने के लिए काफी प्रयास किये गये हैं. इसके अलावा, इस उद्योग ने ‘जीरो एफ्लुएंट डिस्चार्ज’ जैसे सर्वोत्तम वैश्विक अभ्यासों को भी अपनाया है, जो विनिर्माण प्रक्रिया के भीतर पानी के निरंतर रिसाइक्लिंग की सुविधा प्रदान करता है. ‘गो ग्रीन’ के लिए अपने निरंतर और प्रतिबद्ध प्रयासों के परिणामस्वरूप, बड़े भारतीय स्टील उत्पादकों को वर्ल्डस्टील के वार्षिक ‘सस्टेनेबल चैंपियंस’ में गिना जाने लगा है.
दुनिया के सबसे पुराने और सबसे बड़े स्टील (इस्पात) निर्माताओं में से एक के रूप में टाटा स्टील ने सोच-समझकर अपने संचालन के मूल में सस्टेनेबिलिटी का एजेंडा रखा है. एक सस्टेनेबल कारोबारी माहौल बनाने के वृहत एजेंडे के तहत टाटा स्टील ने जैव विविधता को अपने कारोबार संचालन का एक अति आवश्यक तत्व बना कर इसका सृजन किया है और इसमें उत्कृष्टता को कायम रखा है. टाटा स्टील ने 2016 में अपनी जैव विविधता नीति शुरू की. यह नीति हर रणनीतिक और परिचालन संबंधी निर्णय लेने में जैव विविधता को शामिल करने के लिए दिशानिर्देश प्रदान करती है.
इसकी शुरुआत के लिए कंपनी ने अपने कारोबारी इकोसिस्टम में जैव विविधता को एकीकृत करने के लिए 2014 में भारत के राष्ट्रीय जैव विविधता लक्ष्य और 2010 में स्थापित वैश्विक आईची जैव विविधता लक्ष्य और यूनाइटेड नेशन के सस्टेनेबल डेवलमेंट लक्ष्य के साथ अपने कार्यों को सूचीबद्ध किया है.
टाटा स्टील की जैव विविधता नीति का एक प्रमुख तत्व इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन अॅाफ नेचर (आईयूसीएन) के साथ हमारे जुड़ाव पर टिका है, जो 2013 में आईसीयूएन के ग्लोबल बिजनेस ऐंड बायोडायवर्सिटी प्रोग्राम के हिस्से के रूप में शुरू हुआ था. यह कार्यक्रम उद्योग के लिए प्रासंगिक जैव विविधता संरक्षण के महत्व पर कंपनी और सेक्टर स्तर पर परिवर्तनकारी और प्रदर्शनकारी परिवर्तन को प्रोत्साहित करने का प्रयास करता है और इस प्रकार स्थानीय स्तर पर संरक्षण के लिए सकारात्मक लाभ देता है.
तब से टाटा स्टील ने झारखंड और ओडिशा में अपनी सभी खानों के लिए आईयूसीएन के साथ अपनी जैव विविधता प्रबंधन योजनाएं (बायोडायवर्सिटी मैनेजमेंट प्लांस–बीएमपी) शुरू की है. बीएमपी का समग्र ध्यान खनन स्थलों में और उसके आसपास जैव विविधता संरक्षण और वृद्धि पर है. टाटा स्टील के बीएमपी को प्रोग्रेसिव माइन क्लोजर प्लांस की अनिवार्यताओं के अतिरिक्त पर्यावरण मंजूरी की शर्तों के साथ भी एकीकृत किया गया है. यही नहीं, जैव विविधता संरक्षण और खान के पुनरोद्धार पर वैश्विक मानकों यानी वर्ल्ड बैंक/इंटरनेशनल फाइनांस कॉर्पोरेशन (आईएफसी) व इंटरनेशनल काउंसिल ऑन माइनिंग ऐंड मेटल्स (आईसीएमएम) की आवश्यकताओं को भी बीएमपी में शामिल किया गया है.
पिछले कुछ वर्षों में टाटा स्टील के संरक्षण और व्यापक जैव विविधता कार्यक्रमों के प्रभाव से पर्यावरण में कई दृष्टिगोचर और मात्रात्मक सुधार हुए हैं.जमशेदपुर संयंत्र में पिछले 20 वर्षों के दौरान एक ओर कच्चे स्टील की क्षमता तीन गुना बढ़ी है, तो दूसरी ओर विशिष्ट कार्बन डायऑक्साइड उत्सर्जन में 35 प्रतिशत से अधिक की कमी आयी है, विशिष्ट जल की खपत में 50 प्रतिशत से अधिक की कमी आयी है और विशिष्ट धूल उत्सर्जन में 80 प्रतिशत से अधिक की कमी आयी है. इसके अतिरिक्त 30 प्रतिशत से अधिक ग्रीन कवर के साथ जमशेदपुर ने हरित और सबसे स्वच्छ औद्योगिक शहर होने का प्रतिष्ठित गौरव हासिल किया है.
वित्तीय वर्ष 2017 में अपनी कमिशनिंग के बाद से कलिंगानगर प्लांट ने भी पर्यावरणीय प्रदर्शन में महत्वपूर्ण सुधार किए हैं. वित्त वर्ष 2017 -2019 के कुछ महत्वपूर्ण सुधार की बात करें तो, कार्बन डाइआक्साइड के उत्सर्जन तीव्रता में 17.5 प्रतिशत, विशिष्ट जल खपत में 44 प्रतिशत और धूल उत्सर्जन तीव्रता में 54 प्रतिशत की कमी की गयी है.
पहली बार वित्त वर्ष 2019 में जमशेदपुर और कलिंगानगर, दोनों स्टील संयंत्र ने ठोस अपशिष्ट के सौ फीसदी इस्तेमाल की उपलब्धि हासिल की. हम अपने प्रभावकारी कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी पर फोकस जारी रखे हुए हैं और विभिन्न हस्तक्षेपों और पहल के माध्यम से करीब 1.2 मिलियन लोगों के जीवन पर प्रभाव डाला.
स्टील सेक्टर के लीडर के रूप में टाटा स्टील ने अपनी सस्टेनेबल पहलकदमियों को एक मॉडल बनाया है, जो न केवल इसके इकोलॉजिकल फुटप्रिंट को कम करता है, बल्कि अन्य कंपनियों को नियामक तंत्र के परे जाने और जैव विविधता के संरक्षण, विस्तार और पुनरोद्धार के लिए सकारात्मक लाभ को साकार करने के लिए प्रेरित करता है.
टाटा स्टील की कहानी और इसके व्यापक समुदाय के एक जिम्मेदार सदस्य के रूप में इसका क्रमिक विकास भी कई मायनों में भारत में स्टील निर्माण की ही एक कहानी है. हमारे संस्थापक पितामह जमशेदजी नसेरवानजी टाटा के शब्दों में, ‘‘एक मुक्त उद्यम में समुदाय, कारोबार का महज एक स्टेकहोल्डर भर नहीं है, बल्कि वास्तव में इसके अस्तित्व का मूल उद्देश्य है.’’
Posted By : Rajneesh Anand