सुधारों में गति
कोरोना वायरस के कहर ने अर्थव्यवस्था के समीकरण को बदल दिया है. अभी भीहम बदलाव की इस अनिश्चित प्रक्रिया से ही गुजर रहे हैं. इस स्थिति ने एकओर जहां विभिन्न प्रकार की चिंताओं को जन्म दिया है
कोरोना वायरस के कहर ने अर्थव्यवस्था के समीकरण को बदल दिया है. अभी भीहम बदलाव की इस अनिश्चित प्रक्रिया से ही गुजर रहे हैं. इस स्थिति ने एकओर जहां विभिन्न प्रकार की चिंताओं को जन्म दिया है, वहीं हमारे सामनेऐसा अवसर भी आया है, जब हम अतीत और वर्तमान के अनुभवों तथा भविष्य कीचुनौतियों का आकलन करते हुए नीतियों का निर्धारण कर सकते हैं. मौजूदासंकट से ठीक पहले विभिन्न घरेलू और आर्थिक कारणों से भारत समेत कई बड़ीअर्थव्यवस्थाओं की बढ़त कमजोर हो रही थी.
हमारे देश में आर्थिक वृद्धि कीगति तेज करने के लिए वाणिज्य-व्यापार के क्षेत्र में राहत, निर्यातबढ़ाने पर जोर तथा करों एवं ब्याज दरों में बदलाव जैसे अनेक स्तरों परसुधार के प्रयास हो रहे थे. इसके साथ ही ग्रामीण क्षेत्र मेंइंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने तथा वंचित वर्ग को विशेष सुविधाएं देने कीप्रक्रिया भी जारी थी. उत्पादकों और श्रमिकों के हितों को देखते हुए श्रमकानूनों में संशोधन भी हो रहे थे. निवेश और विनिवेश के नियमों मेंपरिवर्तन भी इस प्रक्रिया का अहम हिस्सा था. इससे पहले कि इन उपायों कोपूरी तरह से अमली जामा पहनाया जाता और उनके असर का आकलन किया जाता,कोरोना वायरस के संक्रमण ने स्थिति को बेहद गंभीर बना दिया. अभी भी इससेनिजात पाने तथा आर्थिकी पर इसके नकारात्मक प्रभाव के बारे में निश्चितरूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है.
मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक मेंप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उचित ही रेखांकित किया कि हमें कोविड-19 सेलड़ने के साथ-साथ अर्थव्यवस्था को भी अहमियत देना है. उन्होंने यह भी कहाहै कि हमें ऐसे सुधारों को लागू करने का हौसला दिखाना चाहिए, जो देश कीजनता के लिए हितकारी हो. उल्लेखनीय है कि कोरोना वायरस से पहले ऐसे अनेकसुधार प्रस्तावित या विचाराधीन थे, जिन्हें अब नीतियों और योजनाओं काहिस्सा बनाया जा सकता है. श्रम कानूनों में समुचित संशोधन को आगे बढ़ानेका यह उचित अवसर है. कुछ दिन पहले संसदीय समिति ने इस बाबत कुछ सुझावदिये हैं, जिन्हें सरकार को गंभीरता से लेना चाहिए.
सत्तारूढ़ भारतीयजनता पार्टी ने भी अपनी ओर से कुछ सुधारों को प्रस्तावित किया है. इसीप्रकार विपक्ष, अर्थशास्त्रियों तथा औद्योगिक संगठनों की भी विभिन्नमसलों पर अपनी राय है. इन सुझावों पर सरकार और अलग-अलग विभागों को जल्दीविचार कर आगे की रूप-रेखा बनाने की दिशा में अग्रसर होना चाहिए. चीन औरकुछ अन्य देशों से औद्योगिक इकाइयां भारत आ सकती हैं. ऐसे में श्रमकानूनों में सुधार के साथ भूमि अधिग्रहण, बैंकिंग व्यवस्था, ऋण कीउपलब्धता तथा शासकीय निगरानी जैसे क्षेत्रों में अनुकूल परिवर्तनअपेक्षित हैं. तीन दशक पहले मौके का ठीक से फायदा नहीं उठा पाने की वजहसे भारत औद्योगिक विकास में चीन और कुछ अन्य एशियाई देशों से पीछे रह गयाथा. इस बार ऐसा नहीं होना चाहिए.