भारत में खेलों की दुनिया में पलड़ा हमेशा क्रिकेट का भारी रहा है. बीच-बीच में जब कभी ओलंपिक या एशियाई खेल जैसी अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाएं होती थीं, तब-तब क्रिकेट के हीरो देश को बगलें झांकना पड़ता था. बहुत लोगों ने तो मान लिया था कि बाकी खेल भारत यूं ही खेलने के लिए खेलता है. पर, अब भारत के खेलों का इतिहास करवट लेने लगा है. ऐसे समय जब भारत में वन डे क्रिकेट का विश्व कप हो रहा है, देश के प्रधानमंत्री हाल ही में संपन्न एशियाई खेलों से वापस लौटे एथलीटों का सम्मान कर रहे हैं. इनमें पुरुष और महिला क्रिकेटर भी शामिल थे, जिन्होंने चीन में दो स्वर्ण पदक जीते. भारतीय खिलाड़ियों का हांगझोउ एशियाई खेलों में 107 पदक जीतना भारत के खेल इतिहास में मील का पत्थर साबित होगा, जहां से भारत को बस आगे ही जाने की आशा की जानी चाहिए.
इसकी दो बड़ी वजह है. पहली, भारत के ये खिलाड़ी नयी पीढ़ी के लिए रोल मॉडल साबित होंगे. दूसरी, देश में खेलों को लेकर सरकार की लगातार बढ़ती गंभीरता है. एशियाई खेलों में देश का सिर ऊंचा करनेवाले खिलाड़ियों का सम्मान करते हुए प्रधानमंत्री ने एक बड़ा एलान भी किया. कहा है कि सरकार अगले पांच वर्षों में देश में खेल को बढ़ावा देने के लिए 3,000 करोड़ रुपये खर्च करेगी. देश के हर कोने में खेल के लिए आधुनिक मूलभूत सुविधाएं तैयार की जा रही हैं. खिलाड़ियों के प्रयासों में पैसे की कमी बाधा नहीं बनेगी. प्रधानमंत्री का दिया गया यह भरोसा खेलों में जिंदगी खपा देने का जुनून रखनेवाले हर देशवासी का हौसला बढ़ायेगी.
भारत जैसे देश में खेल संस्कृति के नहीं पनप पाने की एक बड़ी वजह बुनियादी सुविधाओं की कमी रही है. भारत को यदि खेल की दुनिया की महाशक्तियों से मुकाबला करना है, तो उसे उन देशों के जैसी ही खेल सुविधाओं का भी इंतजाम करना होगा. सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में इसपर ध्यान दिया है, जिसके परिणाम नजर आने लगे हैं. इनमें पांच वर्ष पहले शुरू हुए खेलो इंडिया तथा नौ वर्ष पहले ओलंपिक को ध्यान में रखकर शुरू की गयी टॉप्स जैसी योजनाएं शामिल हैं. हालांकि, खेल संघों के प्रबंधन संबंधी समस्याएं और डोपिंग की चुनौतियां भी बरकरार हैं. खेलों को बढ़ावा देने के प्रयासों के साथ इन चुनौतियों के हल की दिशा में भी कोशिश की जानी चाहिए. इन सम्मिलित प्रयासों से देश में खेल संस्कृति पनपेगी और खेलों की दुनिया में भी भारत का नाम अग्रिम पंक्ति में शामिल हो सकेगा.