हमले बंद हों

देश के अनेक हिस्सों में स्वास्थ्यकर्मियों और पुलिसबल पर हमलों की घटनाएं निंदनीय हैं. जब से कोरोना के कहर को काबू करने के लिए सरकारी कोशिशें शुरू हुई हैं, तब से ऐसे हमलों की खबरें आ रही हैं.

By संपादकीय | April 17, 2020 8:48 AM

देश के अनेक हिस्सों में स्वास्थ्यकर्मियों और पुलिसबल पर हमलों की घटनाएं निंदनीय हैं. जब से कोरोना के कहर को काबू करने के लिए सरकारी कोशिशें शुरू हुई हैं, तब से ऐसे हमलों की खबरें आ रही हैं. भारत समेत समूची दुनिया में शायद ही कोई देश और समाज ऐसा होगा, जहां लोगों को यह नहीं मालूम होगा कि लाखों लोग कोरोना वायरस के संक्रमण के शिकार हैं और रोजाना हजारों मौतें हो रही हैं. इस वायरस की रोकथाम के लिए न तो कोई टीका है और न ही कोई दवा. इससे बचाव के अलावा कोई विकल्प नहीं है और संक्रमित होने के बाद डॉक्टर की निगरानी में रहने के सिवा कोई चारा नहीं है.

यदि कोई लापरवाही बरतता है, तो वह न केवल अपनी जान को जोखिम में डालता है, बल्कि अपने परिवार, मोहल्ले और शहर के लिए भी संक्रमण का खतरा पैदा करता है. सरकार, प्रशासन, डॉक्टर और मीडिया के द्वारा लोगों को लगातार आगाह किया जा रहा है कि वे सावधानी रखें, लॉकडाउन व अलग-थलग रहने के निर्देशों का पालन करें तथा संक्रमण के संदेह या आशंका की स्थिति में उपचार करायें. सरकारों की ओर से स्वास्थ्यकर्मियों और पुलिसकर्मियों की टीमें गली-मुहल्लों में घूम-घूम कर मदद पहुंचा रही हैं. ये अधिकारी और कर्मचारी अपने और अपने परिवार के संक्रमण का खतरा उठाकर भी लोगों को बचाने में दिन-रात जुटे हुए हैं.

इन कर्मियों पर जानलेवा हमला किसी भी तरह से बर्दाश्त के काबिल नहीं है. इन लोगों के पास अपनी सुरक्षा के भी समुचित बंदोबस्त नहीं हैं और कई स्वास्थ्य्कर्मी संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं. ऐसे में हमें उनका स्वागत करना चाहिए, उनका हौसला बढ़ाना चाहिए और उनके सुझावों पर अमल करना चाहिए. ऐसा नहीं करना आत्मघाती भी होगा और दूसरों के लिए मौत का इंतजाम करना भी. हमें तो इन लोगों का शुक्रगुजार होना चाहिए, लेकिन हमला कर हम अहसानफरामोश हो रहे हैं. हमलावरों और उन्हें उकसानेवालों की पहचान कर उन्हें सजा दी जानी चाहिए. रिपोर्टों के अनुसार, ऐसी वारदातों के पीछे अफवाहों और फर्जी खबरों की भूमिका है.

ऐसे तत्वों के साथ कड़ाई से निपटा जाना चाहिए. इसके साथ ही मुहल्ले और शहरों में समुदायों के बड़े-बुजुर्गों, समाजसेवियों तथा निर्वाचित जन-प्रतिनिधियों को आगे आकर आम लोगों को समझाने-बुझाने की कोशिश करनी चाहिए तथा असामाजिक और हिंसक लोगों व गुटों की पहचान करने में मददगार होना चाहिए. सरकारी विभागों और कर्मियों तथा समाज के विभिन्न वर्गों के बीच अगर भरोसे का नाता नहीं बनेगा, तो कोरोना वायरस से चल रही हमारी सामूहिक लड़ाई कमजोर पड़ जायेगी. इसका खामियाजा बहुत सारे लोगों को अपनी जान गंवाकर चुकाना पड़ेगा. वह किसी को और सभी को अपना निशाना बना सकता है और बना भी रहा है. ये हमले तुरंत रुकने चाहिए .

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