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एकल प्लास्टिक का रोकें इस्तेमाल

हमें पॉलिथीन और एकल इस्तेमाल की प्लास्टिक को नियंत्रित करने के प्रयासों में योगदान करना होगा, तभी स्थितियों में सुधार लाया जा सकता है.

भारत में पर्यावरण के लिए एक बड़ा खतरा पॉलिथीन और प्लास्टिक से है. बिहार, झारखंड समेत कई राज्यों में पॉलिथीन पर तो प्रतिबंध है और एक जुलाई से देशभर में भी एक बार इस्तेमाल होने वाली प्लास्टिक पर पाबंदी लगा दी गयी है. एकल उपयोग वाले प्लास्टिक उत्पादों पर लगा राष्ट्रव्यापी प्रतिबंध दो दशक के लंबे प्रयास के बाद लगा है. इसकी शुरुआत 1999 में पॉलिथीन बैग पर प्रतिबंध के साथ हुई थी.

तब से एकल उपयोग वाले प्लास्टिक को समाप्त करने के लिए तीन राष्ट्रीय कानून के अलावा अनेक राज्यों ने भी कानून बनाये हैं. प्रतिबंध उन प्लास्टिक उत्पादों पर लगा है, जो एक बार उपयोग करने के बाद फेंक दिये जाते हैं. इनमें प्लास्टिक के प्लेट, कप, गिलास और कटलरी जैसे कांटे, चम्मच, चाकू व ट्रे आदि शामिल हैं. प्रतिबंध मल्टी-लेयर्ड पैकेजिंग को कवर नहीं करता है, जिसका इस्तेमाल चिप्स से लेकर गुटखा पाउच जैसे सामानों में होता है.

केंद्र सरकार ने मल्टी-लेयर्ड प्लास्टिक व पैकेजिंग को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने के लिए निर्माताओं को दो साल का समय दिया है. कड़ी पाबंदियों के बावजूद पिछले दो दशकों के प्रयास नाकाफी साबित हुए हैं. हम पॉलिथीन इस्तेमाल को नियंत्रित करने में तो सफल रहे हैं, लेकिन इसे खत्म नहीं कर सके हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चार साल पहले एकल इस्तेमाल की प्लास्टिक के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने की घोषणा की थी. उसके बाद अब एक जुलाई से देश ने इस दिशा में पहला कदम उठाया है. यह अभियान धीरे धीरे ही जोर पकड़ेगा.

सामान्य-सी दिखने वाली पॉलिथीन और प्लास्टिक हम सबके जी का जंजाल बन गयी है. यह पर्यावरण में जहर घोल रही है. इंसान, जानवर और पेड़-पौधों इसने किसी को नहीं छोड़ा है. माना जाता है कि प्लास्टिक अजर-अमर है और इसके नष्ट होने में एक हजार साल लग जाते हैं. इसके नुकसान की लंबी सूची है. जलाने पर यह ऐसी गैस छोड़ती है, जो जानलेवा होती हैं.

यह जल चक्र में बाधक बन कर बारिश को प्रभावित करती है तथा नदी-नालों को अवरुद्ध करती है. खेती की उर्वरा शक्ति को क्षीण करती है. आंतों में अटकने के कारण इसे खाने वाले पशु मौत का शिकार भी होते हैं. इतना ही नहीं, दूध और अन्य खाद्य पदार्थों के माध्यम से हमारे खून में पहुंचने लगा है. पर्यावरणविदों का आकलन है कि एक भारतीय औसतन हर साल करीब 10 किलो प्लास्टिक का इस्तेमाल करता है.

एक आकलन के अनुसार देश में हर साल लगभग 35 लाख टन घरेलू प्लास्टिक का कचरा पैदा हो रहा है. आप देखेंगे कि हर शहर में प्लास्टिक के कचरे का अंबार लगा रहता है. लाखों टन प्लास्टिक कचरे को खाली जगहों पर फेंक दिया जाता है, जहां वे छोटे माइक्रोप्लास्टिक में विघटित हो जाते हैं. इसके बाद यह सब्जियों व खाद्यान्नों के माध्यम से मानव खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर जाता है.

पर्यावरणविदों का कहना है कि हम रोजाना प्लास्टिक खा रहे हैं. यह जान लें कि प्लास्टिक महज कूड़ा नहीं है, बल्कि एक जहरीला रसायन है, जो धीरे-धीरे हमारे शरीर में प्रवेश कर रहा है. हम लोग अक्सर खाने की वस्तुएं पॉलिथीन में रख लेते हैं, जिससे कैंसर की संभावना बढ़ जाती है. इसके खिलाफ समय रहते कोई कार्रवाई करना बेहद जरूरी हो गया है.

लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है. लाखों लोग इसके कारोबार से जुड़े हैं. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार देश में लगभग 683 इकाइयां हैं, जो हर साल लगभग 2.4 लाख टन एकल इस्तेमाल की प्लास्टिक का निर्माण करती हैं. समस्या यह है कि रोजमर्रा की प्लास्टिक की वस्तुओं के विकल्प महंगे हैं. यह बड़ी चुनौती है. बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक भी काफी महंगी हैं.

सड़क किनारे समान बेचने वाले के लिए यह महंगा सौदा है. इसमें गर्म खाना और पेय पदार्थ नहीं परोसा जा सकता है. कागज के अधिकांश उत्पादों की कीमत प्लास्टिक से अधिक है. कागज से बने सामान पर्यावरण पर और अधिक बोझ डालते हैं. मजबूती के लिए अधिकांश पेपर कपों में प्लास्टिक का भी उपयोग होता है. इस वजह से इसका कचरा नॉन-रीसाइकिलेबल हो जाता है.

एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक प्रतिबंध से छोटे निर्माताओं को नुकसान होने की आशंका है. इस उद्योग के प्रतिनिधियों का कहना है कि इस उद्योग का टर्नओवर 10 हजार करोड़ रुपये है और इसमें सीधे तौर पर दो लाख लोग जुड़े हुए हैं. प्रतिबंध से रीसाइक्लिंग उद्योग पर भी असर पड़ेगा, जो अप्रत्यक्ष रूप से 4.5 लाख लोगों की रोजी-रोटी का माध्यम है. कूड़े से उठा कर ये प्लास्टिक को रिसायकल करने वाले उद्योगों को बेचते हैं.

आंकड़ों के हिसाब से देश में सभी तरह की प्लास्टिक का निर्माण उद्योग करीब 40 लाख लोगों को रोजगार मुहैया कराता है. करीब 60 हजार से ज्यादा प्रसंस्करण इकाइयों में से लगभग 90 फीसदी मध्यम व लघु उद्योग क्षेत्र में हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि इस फैसले का ज्यादातर बोझ मध्यम व लघु क्षेत्र पर ही पड़ेगा. ऐसे में इसका एकमात्र हल यही है कि सरकारों को इस क्षेत्र की सहायता के लिए आगे आना होगा.

हो सकता है कि अगले कुछ महीनों में जब आप बाजार जाएं, तो इसका असर दिखाई दे. अपने इर्द-गिर्द नजर घुमा कर देखें कि क्या अब भी पेय पदार्थों के साथ प्लास्टिक का पाइप दिया जा रहा है? क्या मिठाई के डिब्बे अब भी प्लास्टिक फिल्म से पैक किये जा रहे हैं? अगर सब कुछ पहले की तरह है, तो फिर इसका अर्थ होगा कि देश में एकल उपयोग प्लास्टिक के खिलाफ जंग की सफलता अभी कोसों दूर है.

इसमें सहयोग के लिए हम सबको आगे आना होगा और यह तय करना होगा कि पॉलिथीन व एकल प्लास्टिक का इस्तेमाल नहीं करेंगे. तभी यह प्रतिबंध प्रभावी होगा. यह सच्चाई है कि इसको लेकर समाज में जैसी चेतना होनी चाहिए, वैसी नजर नहीं आती है, लेकिन अब समय आ गया है कि जब हम इस विषय में संजीदा हों. यह जान लीजिए कि जब तक लोग इसके प्रति सचेन नहीं होंगे, तब तक कोई उपाय कारगर साबित नहीं हो सकता है.

इसकी मिसाल हमारे सामने है. पहले कई राज्यों में पॉलिथीन पर प्रतिबंध लगाया गया, लेकिन जब तक जनता इस मुहिम से नहीं जुड़ी, तब तक योजना प्रभावी नहीं हुई. अपने पर्यावरण को बचाना एक सामूहिक जिम्मेदारी है. इसकी अनदेखी की भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है. हमें पॉलिथीन और एकल इस्तेमाल की प्लास्टिक को नियंत्रित करने के प्रयासों में योगदान करना होगा, तभी स्थितियों में सुधार लाया जा सकता है.

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