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रुकें आत्महत्याएं

अन्य स्वास्थ्य व चिकित्सा से जुड़ी स्थितियों की तरह हमें मानसिक स्वास्थ्य के महत्व को प्राथमिकता के साथ रेखांकित करना चाहिए.

भारत उन देशों में शुमार है, जहां हर साल बड़ी संख्या में लोग विभिन्न कारणों से आत्महत्या कर लेते हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि 2019 में 1.39 लाख लोगों अपनी ही जान ले ली थी. इस बेहद चिंताजनक आंकड़े का एक भयावह पहलू यह है कि इनमें से 93016 मृतकों की आयु 18 से 45 साल के बीच थी. यदि 2018 के आंकड़ों से तुलना करें, तो पिछले साल आत्महत्या के मामलों में जहां 3.4 फीसदी की बढ़ोतरी हुई, वहीं अपने ही हाथों अपनी इहलीला समाप्त करनेवाले युवाओं की संख्या में चार फीसदी की बढ़त दर्ज की गयी है.

हमारे देश की आबादी में युवाओं और कामकाजी उम्र (15 से 59 साल) के लोगों की तादाद आश्रितों यानी बच्चों और बुजुर्गों से ज्यादा है. इस स्थिति को जनसांख्यिक लाभांश कहते हैं और किसी भी देश के विकास के लिए यह एक आदर्श स्थिति होती है. आत्महत्याओं के आंकड़े जनसांख्यिक लाभांश से पैदा हुए उत्साह के लिए चिंताजनक हैं और सरकार एवं समाज के स्तर पर इसे रोकने के लिए ठोस प्रयासों की दरकार है.

ब्यूरो की रिपोर्ट में खुदकुशी की जो वजहें बतायी गयी हैं, उनमें पारिवारिक स्थिति, प्रेम संबंध, नशे की लत, मानसिक स्वास्थ्य में गड़बड़ी आदि प्रमुख हैं. यदि 18 से 45 साल के मृतकों की बात करें, तो पारिवारिक कारण सबसे बड़े कारक के रूप में सामने आते हैं. भारत जैसे देशों में सांस्कृतिक और सामाजिक तौर पर व्यक्ति के जीवन में परिवार की बड़ी अहम भूमिका होती है. यदि पारिवारिक कलह या आपसी संबंधों के बिगड़ने या आर्थिक स्थिति खराब होने जैसी स्थितियां जानलेवा होती जा रही हैं, तो सभी को इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है. किसी भी परेशानी का सामना मिल-जुलकर किया जा सकता है.

ऐसा कर न केवल जीवन को बचाया जा सकता है, बल्कि उसे संवारा भी जा सकता है. युवा मृतकों में हजारों की संख्या छात्रों की है. वर्ष 2018 में हर रोज 28 छात्रों ने खुदकुशी की थी, जो दस सालों में सर्वाधिक औसत था. साल 2019 के आंकड़ों में भी सुधार के संकेत नहीं हैं. ऐसे में छात्रों पर परिवार को दबाव कम करना चाहिए तथा शैक्षणिक संस्थाओं को सचेत रहना चाहिए. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, अवसाद दुनिया की सबसे बड़ी बीमारी है. भारत में यह चुनौती बेहद गंभीर है.

इस साल कोरोना महामारी और आर्थिक संकट से बड़ी समस्याएं पैदा हो गयी हैं. कुछ महीनों से लगातार आत्महत्या की खबरें आ रही हैं. अन्य स्वास्थ्य व चिकित्सा से जुड़ी स्थितियों की तरह हमें मानसिक स्वास्थ्य के महत्व को प्राथमिकता के साथ रेखांकित करना चाहिए. सलाहकारों और चिकित्सकों की उपलब्धता को सुनिश्चित करने पर ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि हर आत्महत्या यह सूचित करती है कि ऐसे कई अन्य लोग ठीक वैसी ही मनःस्थिति से घिरे हैं और उन्हें बचाया जा सकता है.

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