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सुदृढ़ होती राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति

चीन लगातार अपनी नौसेना के आधुनिकीकरण में लगा हुआ है और इसी वजह से रक्षा बजट में बढ़ोतरी कर रहा है. इसे ध्यान में रखते हुए भारत ने भी अपने रक्षा आधुनिकीकरण पर बल दिया है.

डॉ अमित सिंह
एसोसिएट प्रोफेसर, राष्ट्रीय सुरक्षा
विशिष्ट अध्ययन केंद्र, जेएनयू

भारत की विदेश नीति एवं राष्ट्रीय सुरक्षा नीति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में काफी बदलाव हुआ है. हालांकि अभी तक भारत की लिखित ‘राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति’ नहीं है, इसलिए मोदी सरकार में इसे भी अमलीजामा पहनाने की कवायद चल रही है. यह रणनीति सेना और रक्षा संबंधित निकायों को विभिन्न प्रकार के खतरों से निपटने के लिए दिशानिर्देश की तरह काम करेगी. हाल में रक्षा प्रमुख (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने कहा है कि ‘राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति’ लिखित हो या न हो, जरूरत इस बात की है कि भारत को चारों ओर से कैसे सुरक्षित रखा जाए.

उन्होंने यह भी कहा है कि पाकिस्तान भले ही आर्थिक उथल-पुथल में है, लेकिन उसकी सैन्य क्षमता में कोई कमी नहीं आयी है और वह हमारे लिए खतरा बना हुआ है. सीडीएस ने रेखांकित किया है कि ‘हमारी तात्कालिक चुनौती चीन का उदय और अनसुलझी सीमा समस्या है. हमारे दो पड़ोसी हैं और दोनों हमारे विरोधी हैं. दोनों का दावा है कि उनकी दोस्ती हिमालय से भी ऊंची और महासागर से भी गहरी है और वे दोनों परमाणु हथियार सक्षम हैं.’ उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि हमें अपने प्रतिद्वंद्वी को कम नहीं आंकना चाहिए.

गौरतलब है कि मोदी सरकार के कार्यकाल में विदेश नीति काफी मजबूत हुई है. यह नया भारत है, जो अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मुखर होकर अपनी बात रखता है और कई विषयों या संदर्भों पर हवा का रुख बदलने का दम रखता है. रूस के साथ भारत के पुराने और घनिष्ठ संबंध है. इसलिए अमेरिका और अन्य नाटो मुल्क भारत की तरफ उम्मीद भरी निगाहों से देख रहे है कि रूस-यूक्रेन युद्ध को कैसे रोका जाए. यह बात सही है कि जब 2022 में पुतिन को लग रहा था कि वे तकनीकी या परमाणु हमला कर यूक्रेन की पीठ तोड़ सकते है, तो अमेरिका और नाटो ने अनेक देशों को गुहार लगायी, जिनमें भारत भी था.

प्रधानमंत्री मोदी ने पुतिन से बात की और खतरे को टाला. जब शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन की मीटिंग हुई थी, तब भी उन्होंने कहा कि यह युद्ध का युग नहीं है. जी-20 की अध्यक्षता के दौरान भी भारत ने कहा कि हमें मिल-बैठकर विवादों का निपटारा करना चाहिए. पिछले कई साल से चीन की अनैतिक गतिविधियां हिंद महासागर में बढ़ती जा रही हैं. जिस तरह से चीन दक्षिण सागर में अपना वर्चस्व बढ़ा रहा है, उसी का विस्तार वह हिंद महासागर में भी चाहता है. भारत की नजर लगातार चीन पर बनी हुई है, क्योंकि हिंद महासागर में चीन क्या करना चाहता है, उसके मंसूबे क्या हैं, उससे भारत परिचित है.

इस संदर्भ में भारत को और मुखर होने की आवश्यकता है. यह सिर्फ कागजी कार्रवाई या चिंता जताने से समाधान नहीं होगा. चीन को उसी की भाषा में जवाब दिया जाना चाहिए. अमेरिकी नौसेना के भी अड्डे हिंद महासागर में है. हिंद महासागर से आज भी 90 प्रतिशत विश्व व्यापार गुजरता है. अमेरिका लगातार भारत को आगाह कर रहा है और उसका मानना है कि यदि चीन पर लगाम लगानी है, तो इसमें भारत की महत्वपूर्ण भूमिका है. चीन लगातार अपनी नौसेना के आधुनिकीकरण में लगा हुआ है और इसी वजह से रक्षा बजट में बढ़ोतरी कर रहा है. इसे ध्यान में रखते हुए भारत ने भी अपने रक्षा आधुनिकीकरण पर बल दिया है.

भारत ने अपने सीमावर्ती इंफ्रास्ट्रक्चर को भी काफी बेहतर कर लिया है. पहले कहा जाता था कि सीमा से लगते गांव भारत के आखिरी गांव हैं, लेकिन वर्तमान सरकार ने यह नैरेटिव बदल दिया है. अब वे गांव भारत के पहले गांव कहे जाते हैं. उनका आधुनिकीकरण किया जा रहा है. बहुत समय से भारतीय नौसेना के दो प्रमुख अड्डे हुआ करते थे- इस्टर्न एवं वेस्टर्न कमांड. अब अंडमान और निकोबार में तीसरा मुख्य अड्डा बनाया गया है.

हाल में हमने लक्षद्वीप को चौथा नौसैनिक अड्डा बनाने की पूरी तैयारी की है. आने वाले समय में कई अत्याधुनिक देश में ही बने युद्धपोतों की संख्या बढ़ने वाली है, जिन्हें अंडमान-निकोबार और लक्षद्वीप में तैनात किया जायेगा. अभी भारत ने आइएनएस जटायू को लक्षद्वीप में स्थापित किया है. उससे पहले आइएनएस द्वीप रक्षक को भी तैनात किया था. भारत के नौसेना प्रमुख आर हरि ने कुछ दिन पहले कहा था कि आइएनएस जटायू सागर में भारत आंख और कान बन कर उभरेगा और हमें अब यह पता रहेगा कि इस क्षेत्र में क्या गतिविधियां चल रही हैं. अब भारत को अरब सागर में भी सतर्कता बढ़ा देनी चाहिए, ताकि भारत चीन ही नहीं, बल्कि पाकिस्तान पर भी लगाम लगा सके.

भारतीय नौसेना कई सालों से अपने आधुनिकीकरण के लिए रूस पर निर्भर थी. रूस हमारा पुराना और नजदीकी मित्र है. फिर भी भारत ने रक्षा को लेकर विविधीकरण किया है तथा कई और राष्ट्रों से भी अपनी जरूरतों को पूरा करने की तरफ रुख किया है. यह भी उल्लेखनीय है कि आत्मनिर्भर भारत अभियान की सफलता से कुछ साल पहले तक हथियार खरीदने वाला भारत अब खुद भी हथियारों का निर्माण कर रहा है और उसे बेच भी रहा है. आने वाले समय में या वर्तमान में भी भारत ने रूस के साथ-साथ अमेरिका व अनेक बड़े देशों को चुनौती पेश की है कि अब वे देश रक्षा के बाजार में अकेले नहीं हैं. अब भारत भी वहां है, जिसके पास कई अत्याधुनिक हथियार हैं, जिन्हें वह बेच सकता है. भारत अनेक युद्धपोत भी बना रहा है, जो पूरी तरह स्वदेशी हैं. यहां तक कि भारत में परमाणु ऊर्जा से संचालित पनडुब्बी भी बनाये जा रहे हैं. ब्रह्मोस के साथ-साथ कई अत्याधुनिक मिसाइलें भी भारत ने बनायी हैं, जिनका नौसेना वर्जन भी है और उनको तैनात भी किया जा रहा है.

इतना ही नहीं, ऐसे उन्नत हथियार वियतनाम, फिलीपींस एवं अन्य कुछ देशों को बेचे भी जा रहे हैं. वियतनाम, थाइलैंड, फिलीपींस आदि भी चीन की चुनौती को महसूस कर रहे हैं. इस प्रकार, भारत दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों की नौसेना को भी विकसित कर रहा है. कुछ दिन पहले ही पूरी तरह से स्वदेशी बहुआयामी क्षमता से लैस अग्नि-5 मिसाइल का भी सफल परीक्षण भारत ने किया है, जिसने चीन की नींद उड़ा दी है. भारत के पास विशेषज्ञता है और वह दीर्घकालिक भूमिका के लिए तैयार हो चुका है. रक्षा स्वावलंबन ने अब भारत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक शक्ति के रूप स्थापित कर दिया है और आने वाले समय में भारत की धमक अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भी बढ़ेगी.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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