खाद्य-सामग्री में मिलावट पर सख्ती से लगे रोक

दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों में हर साल 15 करोड़ लोग सिर्फ खाने से संबंधित बीमारियों से ग्रसित होते हैं. उनमें से करीब पौने दो लाख लोगों की हर साल इससे मौत हो जाती है.

By डॉक्टर जुगल | June 7, 2023 8:09 AM

डॉक्टर जुगल किशोर

चिकित्सक और प्राध्यापक, सफदरजंग अस्पताल, नयी दिल्ली

drjugalkishore@gmail.com

हम जो कुछ भी खाते या पीते हैं, जैसे पानी या फल आदि, उन सब को फूड ही कहा जाता है. ये फूड ही हमारे शरीर को जिंदा रखता है. ऐसे में यदि कोई हानिकारक पदार्थ हमारे शरीर में जाता है, तो वह हमारे जीवन के लिए खतरा बन जाता है. इसलिए फूड को लेकर काफी प्रयोग हुए हैं और आज हम अच्छी तरह से ये समझ पाये हैं कि शरीर के लिये क्या चाहिए. हमें कौन से विटामिन, मिनरल, कार्बोहाइड्रेट या प्रोटीन आदि की जरूरत है. इसके बावजूद हमारे देश में अक्सर यह होता है कि लोगों को दूषित खाना मिलता है जिससे उनकी जान तक चली जाती है.

तो फूड जनस्वास्थ्य के हिसाब से एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है, जिस पर हमेशा ध्यान देते रहना चाहिए. मोटे तौर पर कह सकते हैं कि दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों में हर वर्ष 15 करोड़ लोग सिर्फ खाने से संबंधित बीमारियों से ग्रसित होते हैं. उनमें से करीब पौने दो लाख लोगों की हर वर्ष इससे मौत हो जाती है. भारत में समझा जाता है कि हर साल लगभग एक लाख लोग खाने से संबंधित बीमारियों से मारे जाते हैं. इनमें ऐसे मामले भी आते हैं जिनमें गरीबी की वजह से लोगों को खाना नहीं मिलता और ऐसे में वो ऐसी चीजें खा लेते हैं जिनसे वो बीमार पड़ जाते हैं. साथ ही, दूषित पानी पीने की वजह से भी हैजा, डायरिया जैसी कई बीमारियां होती हैं.

जनस्वास्थ्य के लिहाज से सबसे ज्यादा मामले ऐसे होते हैं जिनमें खाने के भीतर अति सूक्ष्म माइक्रोबैक्टीरिया या ऐसे ऑर्गनिज्म के आ जाने या उनकी संख्या बढ़ जाने से शरीर के भीतर संक्रमण होता है और फूड प्वाइजनिंग या डायरिया हो जाता है, जिससे डिहाइड्रेशन की वजह से पीड़ित की मौत हो जाती है. यह एक आम समस्या है जो पूरी दुनिया में होती है, लेकिन भारत में यह ज्यादा है. उसके बाद दूसरी समस्या खाने में मिलावट की होती है.

इनमें कुछ मिलावट जान-बूझकर की जाती है और कुछ अनजाने में होती है. जैसे, पहले डीडीटी का छिड़काव होता था, वो हम सुरक्षित होने के इरादे से करते थे, मगर वो शरीर में चला जाता था और उससे नुकसान होता था. उसी तरह से बहुत सारे किसानों को नहीं पता होता और अनजाने में वे ऐसे काम करते हैं जिनके बारे में उन्हें जानकारी नहीं होती. फिर एक मिलावट वो होती है जिसमें जान-बूझकर आर्थिक फायदे के लिए खाने में मिलावट की जाती है.

इसमें खाने में ऐसी चीजें मिला दी जाती हैं जो खाने का हिस्सा हैं ही नहीं, जैसे कंकड़ मिलाना, खोये में ब्लॉटिंग पेपर डाल देना. इसके अलावा एक समस्या मिसलेबलिंग की है, यानी ये दावा करके सामान देना कि यह खाना बहुत अच्छा है, मगर वह होता नहीं है. उसकी वजह से गलत जानकारी दी जाती है, जैसे एनर्जी ड्रिंक के नाम पर यदि उसमें बहुत सारी कैफीन डाल दी जाए, तो यह एक गलत तरीका है. उसके बाद जीन-संवर्धित खाने या ऑर्गेनिक खाने को लेकर भी जो दावे किये जाते हैं, उनके बारे में भी अभी पक्के तौर पर कहना कठिन है कि आगे चलकर क्या होगा.

भारत में सुरक्षित खाना और उसकी गुणवत्ता की निगरानी के लिए फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड एक्ट बनाया गया जो बहुत व्यापक कानून है. उसके तहत फूड इंस्पेक्टर को बहुत अधिकार होता है, वह लेबोरेटरी में किसी भी चीज की जांच करा सकता है. राष्ट्रीय स्तर पर ऐसी बड़ी प्रयोगशालाएं हैं. उसी तरह बड़े शहरों की नगरपालिकाओं को भी खाने की जांच कराने के अधिकार होते हैं क्योंकि यह एक पुरानी समस्या है और यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया जाता रहा है कि खाने के खेत से निकलकर प्लेट तक आने का सफर में कोई ऐसी चीज ना हो जाए जिससे लोगों को परेशानी हो.

सरकार की ओर से व्यवस्था बहुत अच्छी बनायी गयी है मगर कुछ कमियां, जैसे कर्मचारियों की संख्या, या उनके अनुभव की कमी, या उनके प्रशिक्षित नहीं होने से चुनौती आ सकती है, क्योंकि जो नयी चीजें आ रही हैं, उन्हें एकदम नये ढंग से टेस्ट करना आसान नहीं होगा. दरअसल, खाने के उत्पादन को लेकर जो नयी चीजें अपनायी जा रही हैं, उतना नया काम टेस्टिंग के काम में नहीं हो रहा. इसके साथ ही, जो फूड इंडस्ट्री है, वहां भी विज्ञान पर आधारित शोध होना चाहिए, उस क्षेत्र में भी हमें और ट्रेनिंग की जरूरत है.

अभी जैसे खाने के सामानों पर वेज या नॉन-वेज का लेबल लगाया जाता है, और खाने में जो सामग्रियां हैं उसकी जानकारी दी जाती है, वो कानूनी दबाव की वजह से हो रहा है. तो व्यवस्था है, मगर उसका पालन सही तरीके से हो इसके लिए सरकार और प्रयास कर सकती है. खाने में मिलावट एक अपराध है. इसे रोकने के लिए जो भी कानून बना है उसका पालन होना चाहिए.

दुर्भाग्य से, विदेशों में मिलावट बड़ी समस्या नहीं है, मगर भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया में यह बहुत बड़ी समस्या है. दूध हो, चीनी हो, कॉफी हो, पनीर हो, आईसक्रीम हो, घी हो, तेल हो, दालें हों- शायद ही खाने का कोई सामान ऐसा होता है जिसमें ऐसी चीजों की मिलावट नहीं हो रही जो हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं है.

Next Article

Exit mobile version