बीते दिनों दिल्ली में हिंसा से काफी जान-माल का नुकसान हुआ. नफरत भरे संदेशों और अफवाहों से उन्माद भड़का, जिसे नियंत्रित करने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ी. संसद में विपक्ष इस मसले पर आक्रोशित है और सरकार से सवाल पूछ रहा है.
दिल्ली पुलिस आयुक्त का भी कहना है कि बीते 23 और 24 फरवरी को दंगों से संबंधित ट्वीट तेजी से फैल रहे थे. लेकिन, ट्विटर ने समय रहते अपेक्षित कार्रवाई नहीं की. अब सरकार फर्जी खबरों और नफरत फैलाने का माध्यम बन रहे इन सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर शिकंजा कसने की तैयारी में है. सरकार बाकायदा दिशा-निर्देश जारी करने की योजना बना रही है. गृह मंत्रालय ने इस मुद्दे पर अहम बैठक की, जिसमें गृह सचिव के साथ सूचना एवं प्रौद्योगिकी, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधिकारियों समेत गूगल, ट्विटर, फेसबुक, व्हॉट्सएप और टिकटॉक के प्रतिनिधि शामिल हुए.
भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सरकार कुछ कड़े फैसले ले सकती है. डिजिटल दुनिया भौगोलिक सीमाओं से परे है, जिस पर नियंत्रण आसान नहीं है. इस आभासी दुनिया की समस्याएं वास्तविक जीवन पर भी असर डालती हैं. यूट्यूब, गूगल, व्हॉट्सएप, फेसबुक और टि्वटर सार्वजनिक प्लेटफार्म हैं, जहां पोर्न, फेक न्यूज, हिंसा और सांप्रदायिक उन्माद फैलाने वाली खबरें साजिशन भी साझा की जाती हैं. इसे चिह्नित करने और उस पर लगाम लगाने की जिम्मेदारी सोशल मीडिया कंपनियों की है. हालांकि, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 69ए सरकार को ऑनलाइन कंटेंट पर निगरानी रखने और उसे हटाने का अधिकार देती है.
हाल के दिनों में फर्जी खबरों से संबंधित शिकायतों के निस्तारण में ट्विटर समेत विभिन्न कंपनियों का रवैया संतोषजनक नहीं रहा है. हालांकि, फेसबुक, गूगल ने मामूली सुधार किया है. आइटी अधिनियम के संशोधनों के लागू होने के बाद इन कंपनियों पर कड़े प्रावधान लगाये जा सकते हैं. ज्यादातर सोशल मीडिया कंपनियां अपनी कंटेंट पॉलिसी घोषित करती हैं, जिसमें धमकी भरे संदेशों, हिंसा बढ़ानेवाले बयानों को प्रतिबंधित करने का दावा तो करती हैं, लेकिन वास्तव में ऐसा होता नहीं. नेताओं के नफरती भाषण, आपत्तिजनक वीडियो व संदेश इन माध्यमों पर तैरते रहते हैं.
इंटरनेट का दुरुपयोग लोकतांत्रिक व्यवस्था में अविश्वसनीय तरीके से बाधा पहुंचा रहा है. दुनियाभर में महसूस किया जा रहा है कि यह व्यक्तिगत अधिकारों, तमाम राष्ट्रों की सुरक्षा व संप्रभुता के लिए संभावित खतरा है. निजता के अधिकारों को सुरक्षित करने और अवांछित तथा अवैध गतिविधियों पर निगरानी के लिए सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकना आज के दौर की सबसे बड़ी चुनौती है. फर्जी खबरों की समस्या अनियंत्रित हो जाये, इससे पहले सरकार के साथ चुनाव आयोग को भी चेतने की जरूरत है, तभी इस संभावित समस्या से आम नागरिकों और देश को बचाया जा सकेगा.