एप्स पर रोक चीन को कड़ा संकेत

जनता में चीनी सामान के बहिष्कार का जज्बा पैदा हो रहा है. भारत अब चीन के व्यवहार और प्रतिक्रिया को भांपता रहेगा. उसका आक्रामक रुख जारी रहता है, तो चीजें और आगे बढ़ सकती हैं.

By बालेंदु शर्मा | July 2, 2020 1:34 AM

बालेन्दु शर्मा दाधीच, तकनीकी मामलों के जानकार

balendudadhich@gmail.com

संप्रभुता और अखंडता के प्रति खतरा माने गये 59 चीनी मोबाइल एप्स पर भारत में प्रतिबंध लगाया जाना आर्थिक, राजनीतिक और तकनीकी दृष्टि से बड़ी घटना है. मुझे याद नहीं कि पहले किसी भी देश ने इस तरह का प्रतिबंध किसी भी देश के एप्स या सॉफ्टवेयरों पर लगाया हो. सरकार के फैसले ने अमेरिका में चीनी कंपनी हुआवे के खिलाफ लगाये गये प्रतिबंध की याद ताजा कर दी. वह एक आक्रामक फैसला था और भारत ने भी बड़ा फैसला किया है. इसका मनोवैज्ञानिक संदेश बहुत गहरा है और चीन पर भावनात्मक चोट करनेवाला है. संभवतः चीन को संकेत मिल गया होगा कि भारत की दीर्घकालीन नीति में बड़ा और स्थायी बदलाव आ गया है. यह चीनी अर्थव्यवस्था, बाजार और तकनीकी कंपनियों के राजस्व को विशेष प्रभावित करनेवाला कदम भले ही न हो, वह भारत की बदलती मनःस्थिति को स्पष्ट करता है.

भारत सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 69ए और सूचना प्रौद्योगिकी नियम-2009 के तहत इन मोबाइल एप्स पर पाबंदी लगायी है. इसमें व्यवस्था है कि भारत की संप्रभुता और अखंडता के हित में अगर जरूरी हो, तो सरकार किसी भी कंप्यूटर (या डिजिटल) संसाधन को प्रतिबंधित कर सकती है. इन एप्लीकेशनों के बारे में सरकार की चिंता स्पष्ट थी. इन पर प्रतिबंध ऐसे समय पर लगाया गया है, जब भारत और चीन के बीच सैन्य टकराव भी चल रहा है. मौजूदा परिस्थितियां ऐसी हैं कि अगर आप किसी संसाधन को देश की संप्रभुता और अखंडता के लिए खतरा मानते हैं, तो फिर उनको संदेह का लाभ नहीं दिया जा सकता है.

चीन में विकसित सॉफ्टवेयर, मोबाइल एप्लीकेशन, वेब सेवाओं आदि के असुरक्षित होने के मुद्दे पर दुनिया में कोई विशेष विवाद नहीं है. कई देश चीनी हैकरों पर वर्षों से साइबर हमलों के आरोप लगाते रहे हैं. कहा जाता है कि उन्हें चीन का परोक्ष व्यवस्थागत समर्थन प्राप्त है. चीनी दूरसंचार उपकरणों को लेकर दुनियाभर में चिंताएं हैं. अनेक सॉफ्टवेयर तथा एप्स के डेटा के चीन में स्टोर किये जाने को लेकर दुनिया में असहजता है, क्योंकि उनका इन्फ्रॉस्ट्रक्चर चीन सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है, जो कठोर सरकारी नियंत्रण तथा पारदर्शिता के अभाव के लिए जाना जाता है.

मोबाइल फोन तथा एप्लीकेशनों के भीतर सहेजा गया डेटा कई तरह से भारत सरकार की चिंताओं को बढ़ाता है. पहला, इन एप की सामग्री को एक्सेस किये जाने का खतरा है. दूसरा, यह आशंका कि ये एप्स अपने सीमित दायरे से बाहर निकल कर मोबाइल फोन के दूसरे एप्स या स्टोरेज में रखे गये डेटा को एक्सेस न कर रहे हों. तीसरा, इन्हें हैक कर लिये जाने की आशंका और चौथा, इन्हें सहेजने के स्थानों (चीन) पर भारतीय यूजर्स की सामग्री को किसी अन्य पक्ष द्वारा एक्सेस किया जाना. यहां यूजर्स में ऐसे लोग भी शामिल हैं, जो सुरक्षा, आंतरिक सुरक्षा, गुप्तचर, कूटनीतिक, राजनीतिक आदि संदर्भों में अहमियत रखते हैं. मोबाइल फोन में रखी बहुत सी सूचनाएं आपकी निजी सुरक्षा के साथ-साथ राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से भी संवेदनशील हो सकती हैं.

साइबर सुरक्षा की दृष्टि से खतरनाक एप्स को प्रतिबंधित करने के साथ यह भी संकेत है कि भारत सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए कड़ी कार्रवाई करने से हिचकेगी नहीं. चीन मानता रहा है कि भारत चीनी सामान के बहिष्कार से लेकर सीमा पर चीनी हरकतों का करारा जवाब देने तक पर महज जबानी धमकियां देता है. चीन के ग्लोबल टाइम्स की टिप्पणियों से स्पष्ट है कि चीनी सरकार मानती है कि भारत चीन के विरुद्ध कोई भी सीधा बड़ा कदम नहीं उठायेगा. उनका मानना है कि भारत में राष्ट्रवादी तत्व बहिष्कार का हो-हल्ला मचाते रहते हैं, लेकिन सरकार को एहसास है कि वह चीन के साथ उलझने की स्थिति में नहीं है.

चीन की धारणा शायद हुआवे प्रकरण पर आधारित हो. 5जी तकनीक के मामले में हुआवे कंपनी के उपकरणों को लेकर दुनियाभर में चिंता जतायी गयी. अमेरिका में उसे प्रतिबंधित भी कर दिया गया, लेकिन भारत ने अपने यहां 5जी के परीक्षणों में हुआवे को भाग लेने की अनुमति दी थी. लेकिन, अब हालात बदल रहे हैं. संभव है कि भारत सरकार जल्द ही अमेरिका की तरह ही हुआवे से भी हाथ झटक ले. मौजूदा घटना का बड़ा संकेत यही है कि भारत सरकार को अब चीन के खिलाफ कदम उठाने में कोई हिचक नहीं है. चीन के लिए यह अविश्वसनीय रहा होगा, जो उसके विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता के बयान में स्पष्ट होता है कि अभी हम इस खबर की तस्दीक कर रहे हैं.

लगता है भारत अब चीन के साथ अपने संबंधों को बचाये रखने के लिए बेताब नहीं है. भारत सरकार अब तक आत्मनिर्भर होने की बात करके अप्रत्यक्ष रूप से चीन पर अपनी निर्भरता घटाने का संकेत दे रही थी, आगे कुछ और बड़े फैसले कर सकती है. उसने चीनी कंपनियों के कुछ अनुबंध रद्द किये हैं और ऐसे कुछ टेंडर भी रद्द कर दिये हैं, जहां पर चीनी कंपनियां दावेदार थीं और देश में जनता के स्तर पर भी चीनी सामान के बहिष्कार का जज्बा पैदा हो रहा है. भारत अब चीन के व्यवहार और प्रतिक्रिया को भांपता रहेगा. अगर उसका आक्रामक और शत्रुतापूर्ण रुख जारी रहता है, तो चीजें और आगे बढ़ सकती हैं.

भारत अब टकराव से बचने की मुद्रा में नहीं है. सरकार के इस फैसले का असर सिर्फ भारत और चीन में ही नहीं, बल्कि विश्व स्तर पर दिखायी देगा. चीनी कंपनियों की विश्वसनीयता के सामने पहले ही संकट है और भारत जैसे बहुत बड़ी जनसंख्या वाले लोकतंत्र का यह कदम चीनी कंपनियों की वैश्विक साख को और भी प्रभावित करेगा. दूसरे देश भी चीनी चुनौती का आकलन करने के लिए प्रेरित होंगे. बहुत संभव है कि आनेवाले सप्ताहों में आपको इस घटनाक्रम की प्रतिध्वनि दूसरे देशों में भी सुनायी दे.

(ये लेखक के निजी िवचार हैं)

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