डॉ रुक्मिणी बनर्जी, सीइओ, प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन
rukmini.banerji@pratham.org
इस बार की असर की रिपोर्ट पहले से भिन्न है. आमतौर पर जो सर्वे होता है उसमें बच्चों के पढ़ने और गणित का स्तर जांचा जाता है. इस वर्ष कोविड आ गया, इसलिए हमने इस बार का असर इस बात को ध्यान में रखकर किया कि इस समय बच्चे क्या कर रहे हैं, उनके घर में क्या चल रहा है, क्योंकि काफी समय से स्कूल बंद हैं. जिन बच्चों तक टेक्नोलॉजी की पहुंच नहीं है, और जिनके माता-पिता पढ़े-लिखे नहीं हैं, उनकी पढ़ाई कैसे चल रही है? वर्ष 2020 का सर्वे पहली बार फोन से किया गया है. वर्ष 2018 में सर्वे के दौरान हमने करीब तीन लाख घरों के फोन नंबर लिये थे. उसी दौरान पता चला था कि 80 से 90 प्रतिशत घरों में कोई न कोई फोन था. असर 2018 के जानकारी के आधार पर ही असर 2020 के लिए सैंपलिंग की गयी.
इस बार फोन पर हमने कई तरह की बातें पूछीं, जिनमें बच्चों के नामांकन का स्तर भी शामिल था. इस बात के कोई संकेत नहीं दिखे कि आर्थिक या किसी अन्य कारण से बच्चों को स्कूल से निकाल लिया गया है. परिवर्तन बस इतना दिखा कि इस दौरान सरकारी स्कूलों में बच्चों का नामांकन ज्यादा हुआ है, निजी स्कूलों में थोड़ा घटा है. सर्वे में पूछा गया कि 2018 में परिवार के पास क्या साधन थे और 2020 में क्या हैं? घर में टीवी, स्मार्टफोन है या नहीं. पता चला कि 2018 की तुलना में 2020 में परिवार के बाकी साधनों में ज्यादा परिवर्तन नहीं आया है, लेकिन स्मार्टफोन में बहुत बड़ा बदलाव आया है.
वर्ष 2018 में सरकारी स्कूल में पढ़नेवाले 30 प्रतिशत बच्चों के घर में स्मार्टफोन था, जो बढ़कर 56 प्रतिशत, जबकि निजी स्कूल के 50 प्रतिशत बच्चों के पास था, वह 75 प्रतिशत हो गया है. राष्ट्रीय नमूने से पता चला है कि 60 प्रतिशत परिवारों के पास स्मार्टफोन हैं और 40 प्रतिशत के पास नहीं हैं. सर्वे में 11 प्रतिशत परिवारों ने लाॅकडाउन में नया फोन खरीदने की बात भी स्वीकार की. अधिकांश ने स्मार्टफोन ही खरीदा है. साथ ही पता चला कि करीब 70 प्रतिशत परिवार बच्चों की पढ़ाई में किसी न किसी तरह की मदद करते हैं.
स्कूल बंद होने के कारण बहुत बड़े पैमाने पर सरकार द्वारा जो शैक्षणिक सामग्री बच्चों को भेजी जा रही है, वह उन तक पहुंच भी रही है. सितंबर की 10 तारीख से महीने के अंत तक यह सर्वे हुआ था और जिस तारीख को हमने जिस परिवार से प्रश्न किया उसके ठीक एक सप्ताह पहले के बारे में विस्तार से पूछा. अस्सी प्रतिशत परिवार ने बताया कि उनके बच्चों की इस वर्ष की पाठ्य-पुस्तकें उन तक पहुंच चुकी हैं. सरकारी और निजी विद्यालय का फर्क यहां भी दिखा. निजी स्कूल के बच्चों की तुलना में सरकारी स्कूल के ज्यादा बच्चों तक पाठ्य-पुस्तकें पहुंची हैं.
लगभग 36 प्रतिशत परिवारों ने कहा कि इस सप्ताह हमारे घर में बच्चों की पढ़ाई से संबंधित कोई न कोई संदेश या पाठ्य सामग्री, कोई गतिविधि, निर्देश स्कूल की तरफ से आया है. बच्चों तक जिस माध्यम से पठन-सामग्री पहुंची उनमें व्हाॅट्सएप, शिक्षक द्वारा फोन से निर्देश देना, अभिभावक द्वारा स्कूल जाकर शिक्षक से पूछना या शिक्षक द्वारा बच्चों के घर जाकर पढ़ाई या गतिविधि करने का निर्देश देना शामिल हैं. इनमें ज्यादातर सामग्री व्हाॅट्सएप से पहुंची है. जिन 36 प्रतिशत के पास पठन सामग्री पहुंची है, उनमें से निजी स्कूल के 87 प्रतिशत और सरकारी स्कूल के 67 प्रतिशत बच्चों के पास व्हाॅट्सएप से पहुंची है.
सरकारी स्कूल के बच्चों के परिवार में फोन ज्यादा गये हैं और शिक्षकों और परिवार के सदस्यों के बीच मुलाकात ज्यादा हुई है. निजी स्कूल व्हाॅट्सएप पर ज्यादा निर्भर देखे गये हैं. यहां यह भी महत्वपूर्ण है कि करीब 70 प्रतिशत बच्चों ने पठन संबंधी गतिविधियां की हैं और इसमें परिवार के सदस्यों ने उनकी मदद की है. यहां अधिकांश बच्चों ने पाठ्य-पुस्तक व वर्क-बुक के माध्यम से ही गतिविधियां की हैं. कुछ ही प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं, जिन्होंने ऑनलाइन या वीडियो क्लासेज के माध्यम से पढ़ाई की है. जिसके पास जो साधन थे, उस के आधार पर सभी बच्चों ने अपनी पढ़ाई जारी रखी है. जिन बच्चों की टेक्नोलॉजी तक पहुंच नहीं है, उन तक पाठ्य-पुस्तकों का वितरण कर यह कमी पूरी करने की कोशिश हुई है.
जहां टेक्नोलॉजी की सुविधा है वहां व्हाॅट्सएप, वीडिया व ऑनलाइन क्लास चल रहे हैं और ऐसे बच्चों के अतिरिक्त गतिविधियों में शामिल होने की ज्यादा संभावना भी है. यदि फिर से आज जैसी सूरत बनती है तो बच्चों की पढ़ाई को निर्बाध बनाये रखने के लिए सभी माध्यमों का प्रयोग करना होगा. सभी लोगों तक स्मार्टफोन या इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध कराना संभव नहीं है, लेकिन कम से कम सभी के पास सामान्य फोन तो होना चाहिए, ताकि संपर्क करना आसान हो जाये. जहां तक डिजिटल डिवाइड को लेकर बच्चों के परिणाम का प्रश्न है, तो इसका उत्तर तब तक नहीं दिया जा सकता, जब तक स्कूल नहीं खुल जाते और बच्चों की पढ़ाई के स्तर की जांच नहीं हो जाती है.
Posted by: Pritish shaya