प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि तीन वर्ष पहले लागू हुई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भारतीय भाषाओं को उनका उचित महत्व दिया जा रहा है. इससे भाषा के दम पर दबदबा कायम करने के युग के अंत की शुरुआत हो गयी है. उन्होंने नयी शिक्षा नीति की तीसरी वर्षगांठ के उपलक्ष्य पर एक समारोह में कहा कि युवाओं को उनकी प्रतिभा की जगह, उनकी भाषा के आधार पर जज किया जाना सबसे बड़ा अन्याय है.
प्रधानमंत्री ने अंग्रेजी और अन्य भाषाओं के बीच भेदभाव के जिस मुद्दे को छेड़ा है, वह विषय पुराना है, मगर खास तौर पर नयी शिक्षा नीति लागू होने के बाद इसकी चर्चा ने जोर पकड़ा है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में कहा गया है कि ‘जहां तक संभव हो, कम-से-कम पांचवीं कक्षा तक, मगर आदर्श हो कि आठवीं या उसके आगे भी, पढ़ाई का माध्यम घर की भाषा या मातृभाषा या स्थानीय भाषा या क्षेत्रीय भाषा हो’. नयी शिक्षा नीति में उच्च शिक्षा में भी भारतीय भाषाओं को प्रोत्साहित किये जाने का लक्ष्य है.
ठीक एक वर्ष पहले, गृह मंत्री अमित शाह ने देश में इंजीनियरिंग, मेडिकल और कानून की पढ़ाई भारतीय भाषाओं में पढ़ाये जाने का आह्वान किया था. इसके पीछे यह दलील दी गयी थी कि देश के 95 फीसदी छात्र अपनी मातृ भाषा में पढ़ाई करते हैं और उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भाषाई अड़चन की वजह से वे कहीं पीछे न छूट जाएं. तब शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने लोकसभा में बताया था कि वर्ष 2021-22 में, 10 राज्यों में 19 इंजीनियरिंग कॉलेजों को, छह भारतीय भाषाओं में इंजीनियरिंग पढ़ाने की मंजूरी दी गयी है.
यानी भारतीय भाषाओं को पढ़ाई में प्रोत्साहन करने के बारे में न केवल चर्चा की जा रही है, बल्कि उस दिशा में काम भी हो रहा है. प्रधानमंत्री ने भी शनिवार को 12 भारतीय भाषाओं में शिक्षा और कौशल की पाठ्यपुस्तकें जारी कीं. यह बात किसी से छिपी नहीं है कि भारत में अंग्रेजी का दबदबा है. हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं की तुलना में अंग्रेजी का रुतबा बड़ा है.
हर कोई यह मान कर चलता है कि अंग्रेजी के ट्रेन की सवारी अपने आप सफलता के स्टेशन पर पहुंच जाती है. हालांकि, प्रतिभाशाली होना और सफल होना दो अलग बातें हैं. अंग्रेजी के साथ धारणा यह बन गयी है कि यह कामयाबी की भाषा है. इस धारणा को बिना किसी नकारात्मकता के, सोच विचार कर तोड़ा जाना चाहिए. शिक्षा का उद्देश्य विषय की समझ होना है, भले ही माध्यम जो भी हो. आम जनों में यदि यह भरोसा पैदा हो जाए कि सफलता के लिए भाषा नहीं, बल्कि विषयों की बुनियादी समझ सबसे जरूरी है, तो माध्यम को लेकर जारी यह बहस अपने-आप खत्म हो जायेगी.