vocabulary of Hindi : आजादी से पहले, खासकर द्वितीय विश्व युद्ध से पहले, जनसंचार साधन बहुत विकसित नहीं हो पाये थे. लैंड लाइन फोन बहुत ही कम थे, मोबाइल फोन तो थे ही नहीं, रेडियो सेट भी बहुत कम लोगों के पास होते थे, ट्रांजिस्टर रेडियो भी नहीं होते थे. सब जगह तारघर भी नहीं होते थे. सूचना टेक्नॉलोजी और टेलीविजन युग अभी कोसों दूर था. इसके अलावा अखबारी काम कुछ मंद गति से ही होता था. इसका एक नमूना इस प्रकार है-
21 दिसंबर 1938 को रायबरेली में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का देहावसान हुआ. 23 को इलाहाबाद से यह समाचार बाहर पत्रों को भेजा गया. चौथे दिन यह जनता के पास पहुंचा. हिंदी के एक महारथी की यह उपेक्षा कितनी संतापदायक थी. आज के ‘ब्रेकिंग न्यूज’ के जमाने में यह घटना बहुत ही अजीबो-गरीब लगती है. उन दिनों हिंदी पत्र-पत्रिकाओं की शब्दावली बहुत समृद्ध नहीं थी, खासकर अंग्रेजी के पारिभाषिक शब्दों के हिंदी समानार्थक शब्दों के मामले में. अंग्रेजी के सैकड़ों शब्द ज्यों के त्यों इस्तेमाल किए जाते थे. न तो हिंदी भाषा के विद्वानों ने और ना ही बड़े समाचारपत्रों के संपादकों ने समय रहते इस ओर कोई उपयुक्त ध्यान दिया. सरकारी स्तर पर भी अंग्रेजी के प्रशासनिक शब्दों के हिंदी रूपांतरण का भी बहुत अभाव था. जैसे, अंग्रेजी के गवर्नर शब्द के लिए हिंदी में भी गवर्नर शब्द ही इस्तेमाल होता था. इसी प्रकार मैजिस्ट्रेट और अन्य शब्द. अमेरिका के प्रेजिडेंट के लिए प्रेजिडेंट शब्द ही इस्तेमाल होता था या अध्यक्ष.
जब ‘चीफ मिनिस्टर’ प्रधानमंत्री कहलाता था!
बाद में हिंदी पत्रकारिता के युगपुरुष दैनिक ‘आज’के संपादक बाबूराव विष्णु पराड़कर ने इस दिशा में काफी काम किया. दैनिक ‘आज’ को उन दिनों हिंदी का प्रमुख अखबार माना जाता था. इसके संपादकीय का अंग्रेजी अनुवाद सरकारी स्तर पर ब्रिटिश वाइसराय के टेबल पर पहुंचाया जाता था. द्वितीय विश्व युद्ध में अंग्रेजी के इतने नये-नये शब्द, जैसे, ब्लैक आउट, बांबर, ब्लिटज प्रचलन में आये कि उनकी गिनती करना मुश्किल है. इनमें से ज्यादातर शब्दों को बाद में लोग भूल गये. पराड़कर जी ने हिंदी को करीब 200 नये शब्द दिये. ‘नेशन’ के लिए राष्ट्र, ‘इंफ्लेशन’ के लिए मुद्रास्फीति, ‘मिस्टर’ के लिए श्री, ‘मेसर्स’ के लिए सर्वश्री आदि.
आजादी के बाद संवैधानिक शब्दों में भी काफी बदलाव किया गया. नये-नये शब्द तो गढ़े ही गये. केंद्रीय असेंबली के लिए हिंदी में पहले अलग-अलग शब्द इस्तेमाल होते थे. गांधीजी, जो स्वयं एक पत्रकार भी थे, इसके लिए केंद्रीय विधान परिषद शब्द इस्तेमाल करते थे. संविधान निर्माण के समय अंग्रेजी के हिंदी समानार्थक शब्द गढ़ने की जरूरत महसूस हुई. विधान परिषद के लिए संविधान सभा शब्द इस्तेमाल किया गया. जब केंद्र में कोई निर्वाचित सरकार नहीं थी तब प्रांतों के ‘चीफ मिनिस्टर’ को प्रधानमंत्री कहा जाता था. बाद में यह शब्द ‘प्राइम मिनिस्टर’ को ट्रांसफर कर दिया गया और ‘चीफ मिनिस्टर’ को मुख्य मंत्री कहा जाने लगा.
यह भी एक दिलचस्प बात है कि संविधान बनने से पहले तक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष को उसके सम्मान और लोकप्रियता के कारण ‘राष्ट्रपति’ कहा जाता था. उन दिनों अखबारों में राष्ट्रपति सुभाषचंद्र बोस, राष्ट्रपति जवाहरलाल नेहरू जैसे शब्द छपते थे. संविधान बनते समय जब राज्याध्यक्ष यानी प्रेजिडेंट के लिए हिंदी समानार्थक शब्द तय करने की बात चली तो कई नाम सुझाये गये, जैसे प्रेजिडेंट के लिए राज्यपाल के तर्ज पर ‘राष्ट्रपाल.’ एक शब्द ‘प्रजापति’ का भी सुझाव दिया गया. लेकिन उसे नामंजूर कर दिया गया, इस आधार पर कि गणतंत्र में न कोई राजा होता है, न कोई प्रजा होती है. अंतत: राष्ट्रपति शब्द का चयन किया गया. कांग्रेस ने अपने अध्यक्ष के लिए राष्ट्रपति शब्द का इस्तेमाल बंद कर दिया.
एक और दिलचस्प बात यह है कि बहुत-सी संस्थाएं अपने सचिव पद के लिए मंत्री शब्द इस्तेमाल करती थीं और प्रधान सचिव के लिए प्रधानमंत्री. आर्यसमाज की सार्वदेशिक प्रतिनिधि संस्था अपने प्रधान सचिव के लिए प्रधानमंत्री शब्द इस्तेमाल करती थी. संस्थाओं के लिए प्रधानमंत्री शब्द अब कालातीत हो चुका है.
श्री शब्द का प्रचलन
यहां ऊपर में मिस्टर के लिए श्री शब्द का प्रचलन आरंभ करने की बात कही गयी है. मजेदार बात यह कि शुरू में इसके लिए श्रीयुत या श्रीमान शब्द इस्तेमाल किया जाता था. आर्यसमाज सोसाइटी या संस्था शब्द की तरह अपने समाज नाम को स्त्रीलिंग के तौर पर इस्तेमाल करता था. समाज की ओर से 1898 में प्रकाशन आरंभ करने वाले साप्ताहिक ‘आय्यावर्त’ (यही वर्तनी इस्तेमाल की जाती थी) के मास्ट हेड के नीचे लिखा रहता था- ‘श्रीमती आर्य्य प्रतिनिधि सभा विहार-बंगाल का साप्ताहिक.’ इसमें आर्यसमाज के समाचारों के अतिरिक्त सामान्य समाचार भी छपते थे. यह पत्र वर्ष 1905 तक चला बाद में इस नाम का हिंदी दैनिक पत्र महाराजा दरभंगा द्वारा पटना से प्रकाशित किया गया.
वर्षों तक हिंदी के समाचारपत्रों में वर्तनी का मानकीकरण नहीं आ पाया. यहां तक कि एक ही समाचार पत्र के अलग अग पन्नों पर वर्तनी की भिन्नता बनी रही, जैसे नयी दिल्ली, नई दिल्ली शब्दों के दोनों रूप एक साथ. अमेरिका और अमरीका भी. इस दिशा में प्रभात खबर हिंदी के उन अग्रणी समाचार पत्रों में रहा, जिसने अपनी हाउस स्टाइल अपनाकर एक दिशा प्रशस्त की.
समाचारपत्रों के अनुवाद
यहां यह उल्लेख करना भी उपयुक्त होगा कि आजादी से पहले समाचारपत्रों को अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद करने की विकट स्थिति का सामना करना पड़ता था. इसमें कई गलतियां हो जाने की संभावना बनी रहती थी. सब समाचारपत्रों के अनुवाद में कुछ अंतर भी रहता था. समाचारपत्रों के दफ्तरों में कई ट्रांसलेटर रखने पड़ते थे, क्योंकि समाचार एजेंसियों के समाचार अंग्रेजी में आते थे, हिंदी की कोई समाचार एजेंसी नहीं थी. आजादी के बाद भी कई वर्षों तक यही स्थिति बनी रही. हिंदी को औचित्यपूर्ण महत्त्व प्राप्त कराने में काफी समय लगा.