दुबई में चल रहे संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में जारी वैश्विक जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक में भारत ने लंबी छलांग लगायी है. यह सूचकांक जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए देशों द्वारा किये जा रहे प्रयासों के आकलन के आधार पर तैयार किया जाता है. वर्ष 2014 में इस सूचकांक में भारत 31वें स्थान पर था. इस वर्ष भारत शीर्ष के सात देशों में शामिल हो गया है. इन दस वर्षों में भारत ने निरंतर प्रगति की है, लेकिन 2019 में जहां उसका स्थान नौवां था, वहीं 2020 और 2021 में वह दसवें स्थान पर आ गया था. इसकी मुख्य वजह कोरोना महामारी से पैदा हुईं परिस्थितियां थीं. उल्लेखनीय है कि पहले तीन स्थानों के लिए किसी देश को योग्य नहीं पाया गया. भारत से पहले तीन देश- डेनमार्क, एस्टोनिया और फिलीपींस- हैं. भारत का प्रदर्शन इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि एक ओर विकास के लिए हमें अधिक ऊर्जा की आवश्यकता है, जिसके कारण स्वच्छ ऊर्जा के बढ़ते उत्पादन एवं उपभोग के बावजूद हमें कुछ दशकों तक जीवाश्म आधारित ईंधनों पर निर्भर रहना है. ग्लासगो जलवायु सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी कि 2070 तक भारत का कार्बन उत्सर्जन शून्य हो जायेगा.
स्वच्छ ऊर्जा में प्रगति एवं वन क्षेत्र के विस्तार के बावजूद चीन इस सूचकांक में 51वें स्थान पर है. वहीं अमेरिका को 57वां स्थान मिला है. विकसित यूरोपीय देश, जापान, कनाडा और रूस भी भारत से बहुत पीछे हैं, जबकि इन सभी देशों के पास जलवायु प्रयासों के लिए भारत से अधिक तकनीक और धन है. यदि प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन के औसत के हिसाब से देखें, तो इन देशों का उत्सर्जन भारत की तुलना में बहुत अधिक है. इससे स्पष्ट है कि भारत के जलवायु कार्यक्रम एवं योजनाएं सही दिशा में अग्रसर हैं. हालांकि सूचकांक में यह भी इंगित किया गया है कि नीतियों और स्वच्छ ऊर्जा के मामले में बेहतरी की गुंजाइश और जरूरत है. भारत ने जलवायु सम्मेलन को जानकारी दी है कि 2021-22 में भारत ने 13.35 लाख करोड़ रुपये जलवायु प्रयासों पर खर्च किया है, जो सकल घरेलू उत्पादन का लगभग 5.6 प्रतिशत हिस्सा है. अगले सात वर्षों में इन कोशिशों पर 57 लाख करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च की उम्मीद है. उल्लेखनीय है कि भारत जलवायु परिवर्तन का भुक्तभोगी है. धरती के बढ़ते तापमान के कारण प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति लगातार बढ़ती जा रही है. इस साल लगभग हर दिन देश में कहीं-न-कहीं कोई आपदा घटी है. ऐसे में ऐसी आशंका जतायी जा रही है कि भारत को अनुमान से 15.5 लाख करोड़ रुपये और खर्च करने पड़ सकते हैं.