हिंद महासागर में घेरें चीन को
वर्ष 1979 में चीन ने वियतनाम के लैंग सोन प्रांत पर हमला कर दिया. इससे एनवीए (नॉर्थ वियतनामीज आर्मी)20 किलोमीटर अंदर चली गयी. पीएलए(पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) अतिक्रमण करते हुए अंदर दाखिल हुई और इस जीत के लिए शेखी मारने लगी. इसके बाद वियतनामी सैन्य कमांडर जनरल वान तियन दंग ने ट्रैप को बंद कर तोपों के घातक हमले से पीएलए को वहीं ढेर कर दिया.
मोहन गुरुस्वामी
वरिष्ठ विश्लेषक
वर्ष 1979 में चीन ने वियतनाम के लैंग सोन प्रांत पर हमला कर दिया. इससे एनवीए (नॉर्थ वियतनामीज आर्मी)20 किलोमीटर अंदर चली गयी. पीएलए(पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) अतिक्रमण करते हुए अंदर दाखिल हुई और इस जीत के लिए शेखी मारने लगी. इसके बाद वियतनामी सैन्य कमांडर जनरल वान तियन दंग ने ट्रैप को बंद कर तोपों के घातक हमले से पीएलए को वहीं ढेर कर दिया.
संयोगवश, तत्कालीन भारतीय विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी उस समय बीजिंग दौर पर थे, वे जल्दबाजी में स्वदेश लौट आये. अगर वे कुछ दिन वहां और रुकते, तो वियतनाम से चीन को मिले सबक को देखते कि कैसे सेना अपनी रणनीति तय करती है और युद्धक्षेत्र में उसका कैसे इस्तेमाल करती है. सामरिक तरीके से दुश्मन को अपनी जमीन देकर उसे दर्दनाक क्षति पहुंचाना ज्यादा महत्वपूर्ण है.
दुर्भाग्य से, भारत में हम अपनी जमीन के प्रति जुनूनी हैं. गलवान और पैंगोंग त्सो घटना के बाद हमारे कमांडर और राजनेता ‘जमीन के नुकसान’ का ही मुद्दा उठा रहे हैं. ऐसा प्रतीत होता है कि हम वास्तविक या काल्पनिक नियंत्रण रेखाओं पर सेना की स्थिति को लेकर चिंतित नहीं हैं. क्या कोई पैंगोंग के उत्तरी किनारे पर ‘फिंगर्स’ क्षेत्र पर सैन्य व्यावहारिकता पर विचार करता है? क्या किसी जनरल को खुद के चुने स्थान पर अपने संसाधनों को व्यवस्थित करने की इजाजत है, जैसाकि लैंग सोन में वान तियन दंग ने किया था.
क्या हम चीन के साथ बड़े संघर्ष के लिए तैयार हैं? गलवान की स्थिति को देखते हैं. पीएलए डारबुक-दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) सड़क पर दबदबा बनाना चाह रहा था. सब-सेक्टर नॉर्थ (एसएसएन) से हमारा यह एकमात्र संपर्क मार्ग है. श्योक नदी के समानांतर यह मार्ग 230 किलोमीटर से अधिक लंबा है.
नदी काराकोरम के दक्षिण की तरफ से बहती है. उसके बाद चिपचैप नदी की तरफ मुड़ जाती है और डीबीओ पर समाप्त होती है. इस वक्रीय क्षेत्र में देपसांग मैदान है. पीएलए देपसांग पर काबिज है, जो अक्साई चिन के सीधे दक्षिण में है. यह सड़क डीबीओ पर खत्म हो जाती है. हालांकि, कुछ किलोमीटर आगे काराकोरम पास शुरू होता है और उसके बाद शिनजियांग का यारकांड लगता है.
पैंगोंग त्सो के उत्तर में विवादित फिंगर्स 4-8 का मामला अलग है. इसका डारबुक-डीबीओ मार्ग से जुड़ा कोई सामरिक महत्व नहीं है. वर्तमान में पीएलए इस सड़क के सबसे करीब पहुंच चुकी है. इस सड़क को अवरुद्ध कर वह एसएसएन को लद्दाख से काट सकती है. वस्तुतः भारत यहां दीवार की तरह टिका हुआ है, जिसके बायीं ओर काराकोरम रेंज है और दायीं ओर एलएसी है. बड़ा संघर्ष छिड़ने पर इस सड़क को कैसे बचाया जा सकता है? क्या इसकी हिफाजत के लिए बड़ी सैन्य तैनाती करेंगे या फिर हमने कुछ लैंग सोन से सीखा है?
हमें शुरू में ही भारतीय वायुसेना (आइएएफ) को लाना पड़ेगा. अगर जमीनी क्षेत्र में पीएलए मजबूत है, तो दूसरे स्तर पर आइएएफ बेहतर स्थिति में है. इसके प्रमुख बेस नजदीकी मैदानों पर हैं और यह पूर्ण ईंधन और हथियारों के साथ लड़ाकू बमवर्षक आसानी से लांच कर सकता है. वहीं दूसरी ओर, पीएलएएफ काफी ऊंचाई वाले हवाई क्षेत्र से संचालित होती है और उसके पास ईंधन और हथियारों के वहन का विकल्प सीमित है.
अगर दूसरे विकल्प पर काम करते हैं, तो बिना देर किये तीसरे आयाम पर लग जाना होगा, समुद्री क्षमता को सक्रिय करना होगा. कुल 70 प्रतिशत तेल समुद्री मार्ग से जाता है, जो लगभग 300-500 किलोमीटर भारतीय समुद्री तट से होकर गुजरता है. भारत चीन के विदेशी व्यापार को अवरुद्ध कर सकता है. इस क्षेत्र में पीएलएएएन भारतीय नौसेना से टकराने से बचेगी, हिंद महासागर में अमेरिका नौसेना भी हावी है.
परस्पर निर्भर दुनिया में दो परमाणु शक्तियों के बीच युद्ध बिना परिणामों का नहीं होगा. विवाद कम करने के लिए अंतरराष्ट्रीय दबाव पड़ना स्वाभाविक है. इसलिए, चीन विवाद को सीमित रखना चाहेगा और एक आयाम से बाहर नहीं जायेगा. यह भारत के हित में होगा कि वह तुरंत अन्य दो आयामों को तेज कर दे, जहां वह युद्ध में अपने विध्वंसक विकल्पों को उतार सकता है.
एक क्षेत्र तक सीमित होने से विवाद की अवधि बहुत कम होगी. यह दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण है कि वे अपने राष्ट्र को भरोसा दिला सकें कि युद्ध में दुर्गति नहीं हुई है. तब चेहरा ही सब कुछ हो जायेगा. इससे पहले कि बाहरी शक्तियों द्वारा संघर्ष रोकने का दबाव बने, संघर्ष में उच्च स्तर पर त्वरित वृद्धि की आवश्यकता होती है. जीत का भ्रम बहुत सीमित विकल्पों में ही पैदा किया जाना है.
जीत एक अनुभूति का विषय होगा. हमने देखा है कि कैसे जल्द ही कारगिल में वायु शक्ति तैनात की गयी. भारत-चीन सीमा के दोनों ओर के इलाके और सैन्य मौजूदगी से पता चलता है कि शुरू में ही वायु शक्ति के दाखिल होने से जीत की संभावना बढ़ सकती है, जो धारणाओं को प्रभावित करेगी.
भारत के हथियारों के निर्माण और तैयारियों से स्पष्ट है कि संघर्ष पहाड़ों की चोटियों और हिमालय की घाटियों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आसमान में भी होगा, विशेषकर शिनजियांग और तिब्बत के पठार और हिंद महासागर के ऊपर. यह भारत के लिए तार्किक है कि हिमालयी संघर्ष को हिंद महासागर तक बढ़ाये, विशेषकर भारतीय भौगोलिक क्षेत्र में और समुद्री रास्तों को बाधित करे, जहां से चीन का दो तिहाई तेल आयात होता है.
इस तेल की अदायगी के लिए चीन का 41 प्रतिशत निर्यात अब मध्य-पूर्व एवं उत्तरी अफ्रीका (एमइएनए) क्षेत्र में है. एशिया अब दुनिया का सबसे गतिशील आर्थिक क्षेत्र है. आनेवाले दशक में दुनिया के 10 सबसे तेज उभरती अर्थव्यवस्थाओं में से छह (भारत और चीन भी शामिल) एशियाई देश होंगे. भारत अब तक अपनी क्षमता को सांकेतिक तौर पर अधिक नहीं बढ़ा रहा है, लेकिन कभी-कभी यह उपयोगी होता है. एक पुरानी चीनी कहावत है कि बंदरों को डराने के लिए कभी-कभी बिल्ली की खाल उतारनी पड़ती है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं)