प्रधानमंत्री जन धन योजना के दस वर्ष
जब हम कुछ चीजों- चाहे वह सत्ता, पद, प्रभाव या भौतिक धन हो- की आकांक्षा करते हैं और उन्हें हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं, तो हम अपनी सफलता पर बस थोड़े समय के लिए ही खुश होते हैं. इसके बाद, हम एक नयी मनःस्थिति में होते हैं. जो उपलब्धि हासिल कर ली जाती है, वह मानक बन जाती है. जो चीज हाथ आने से बची होती है, वही अगली खोज या बेचैनी की कारण बन जाती है.
Jan Dhan Yojana: अधिकतर मनुष्यों के मामले में यही सच है. हम सार्वजनिक नीतियों के संबंध में यही दृष्टिकोण अपनाते हैं. हम कुछ नीतियों या कार्रवाइयों के लिए गुहार लगाते हैं. जब मौजूदा सरकार लंबे समय से चली आ रही किसी समस्या का समाधान कर देती है, तो अपेक्षाओं के पैमाने को और भी ऊंचा उठा दिया जाता है. उपलब्धि की मान्यता और प्रति-तथ्यात्मक चिंतन अपर्याप्त होता है- निम्नतर किस्म की यथास्थिति को लेकर जड़ता सी होती है. प्रधानमंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाई), जो अपनी दसवीं वर्षगांठ मना रही है, के साथ भी कुछ ऐसा ही मामला है.
लंबे समय तक, हम करोड़ों भारतीयों के वित्तीय बहिष्करण का रोना रोते रहे. वर्ष 2014 में, तत्कालीन नयी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार ने करोड़ों भारतीयों को औपचारिक वित्तीय प्रणाली में शामिल करने का एक महत्वाकांक्षी और चुनौतीपूर्ण कार्य प्रारंभ किया. यह प्रधानमंत्री जन धन योजना एक शानदार कामयाबी साबित हुई. इस सफलता को कुछ प्रमुख तथ्यों की रौशनी में देखा जा सकता है. इस योजना के 14 अगस्त 2024 तक 53.13 करोड़ लाभार्थी थे, जिनकी कुल जमा राशि 2.31 लाख करोड़ रुपये थी. इन लाभार्थियों में लगभग तीस करोड़ महिलाएं हैं. ‘द डिजाइन ऑफ डिजिटल फाइनेंशियल इंफ्रास्ट्रक्चर: लेसंस फ्रॉम इंडिया’ (बीआईएस पेपर्स नंबर 106, दिसंबर 2019) शीर्षक एक शोध पत्र में बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स के शोधकर्ताओं ने रेखांकित किया है, ‘वर्ष 2008 में निम्न स्तर के वित्तीय समावेशन और औपचारिक पहचान को देखते हुए, एक दशक से कुछ अधिक समय पहले भारत के सामने बेहद कठिन चुनौतियां थी.
ऊपर उल्लिखित किये गये बैंक खातों से संबंधित आंकड़ों और प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के साथ उनके संबंध के आधार पर एक मोटा अनुमान यह है कि अगर भारत पूरी तरह से विकास की पारंपरिक प्रक्रियाओं पर ही निर्भर रहा होता, तो 80 प्रतिशत वयस्कों को बैंक खातों से लैस करने का लक्ष्य हासिल करने में 47 साल लग जाते.’ एक अन्य शोध पत्र (‘बैंकिंग द अनबैंक्ड: व्हाट डू 280 मिलियन न्यू बैंक एकाउंट्स रिवील अबाउट फाइनेंसियल एक्सेस?’, सितंबर 2023) से यह पता चलता है कि प्रधानमंत्री जन धन योजना खातों ने वित्तीय बचत को सुरक्षित रखने में मदद की है क्योंकि चोरी की संभावना वाले इलाकों में इस योजना के खातों का अधिक उपयोग हुआ. इससे ऊंची ब्याज दर वसूलने वाले अनौपचारिक स्रोतों से उधार लेने की प्रवृति में भी गिरावट आय.
ऐसी दुनिया में जहां तत्काल राय बनाना अपवाद के बजाय आम चलन हो, टिप्पणीकारों ने कहा कि प्रधानमंत्री जन धन योजना के तहत आने वाले खाते ज्यादातर शून्य-शेष (जीरो बैलेंस) वाले खाते हैं. लेकिन इन खातों में कुल जमा राशि 2.31 लाख करोड़ रुपये है. कोविड महामारी दौरान के इन खातों की उपयोगिता अतुलनीय साबित हुई. केंद्र सरकार ने इन खातों में लाभ सीधे हस्तांतरित किया. तीन वित्तीय वर्षों (वित्त वर्ष 2020 से लेकर वित्त वर्ष 2022) के दौरान, लगभग 8.1 लाख करोड़ रुपये सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में जमा किये गये. डिजिटल भुगतान से संबंधित बुनियादी ढांचे के विकास के साथ, इसने महामारी के चरम समय के दौरान संपर्क-रहित (नो-टच) भुगतान की सुविधा प्रदान की.
एक नये अध्ययन (‘डज ओपन बैंकिंग एक्सपैंड क्रेडिट एक्सेस?’, अगस्त 2024) से पता चलता है कि इस योजना ने किसी भी वित्तीय संस्थान को ओपन बैंकिंग-ग्राहक की अनुमति से डेटा साझा करने की सुविधा प्रदान की है. खास तौर से, जन धन खातों ने अधिक संख्या वाले इलाकों में फिनटेक (वित्तीय तकनीक) की अगुवाई में ऋण वृद्धि में बढ़ोतरी की है, और सस्ते एवं बेहतर इंटरनेट जुड़ाव वाले इलाकों में इसके प्रभाव अपेक्षाकृत अधिक ठोस रहे हैं. ‘खाता समेकन’ (अकाउंट एग्रीगेशन) ओपन बैंकिंग की एक खासियत है. यह जनता को अपेक्षाकृत अधिक वित्तीय उत्पादों एवं सेवाओं तक पहुंचने में समर्थ बना रहा है.
प्रधानमंत्री जन धन योजना ने महिलाओं को अपना खुद का खाता मुहैया करा कर और उन खातों में पैसे उपलब्ध करा कर उन्हें सशक्त बनाया है. इस वित्तीय आजादी को माप पाना कठिन है, लेकिन यह बेहद महत्वपूर्ण है. भारतीय महिलाओं में आम तौर पर बचत की प्रवृत्ति अधिक होती है और समय के साथ, इसके परिणामस्वरूप परिवारों की वित्तीय सुरक्षा में बढ़ोतरी होगी और राष्ट्रीय बचत दर को बढ़ावा मिलेगा. यही नहीं, इससे देश में महिला उद्यमिता को भी बढ़ावा मिलेगा.
उल्लेखनीय है कि स्टार्ट-अप को बढ़ावा देने वाली सरकार की पहल ‘स्टार्ट-अप इंडिया’ और महिलाओं एवं अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति समुदाय के लोगों में उद्यमिता को बढ़ावा देने वाली योजना ‘स्टैंड-अप इंडिया’ के जरिये उद्यमिता के प्रवाह में महिलाओं की भागीदारी काफी उत्साहजनक रही है. प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत महिला उद्यमियों को लगभग 68 प्रतिशत ऋण स्वीकृत किये गये हैं और मई, 2024 तक ‘स्टैंड-अप इंडिया’ के तहत 77.7 प्रतिशत लाभार्थी महिलाएं हैं. देश में 30 जुलाई 2024 तक उदयम और यूएपी पर पंजीकृत महिलाओं के स्वामित्व वाले सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) की संख्या 1.85 करोड़ से अधिक है.
यह परिकल्पना कि प्रधानमंत्री जन धन योजना खातों ने महिलाओं को सशक्त बनाया है तथा स्व-रोजगार एवं उद्यमिता की दुनिया में उन्हें शामिल होने की सुविधा प्रदान की है, आकर्षक और औपचारिक रूप से जांच के योग्य है. हम एक बार फिर प्रति-तथ्यात्मक चिंतन की चुनौती की ओर लौटते हैं. प्रधानमंत्री जन धन योजना द्वारा खाताधारकों को प्रदान किये गये लाभों के साक्ष्य के आलोक में, प्रति-तथ्यात्मक विचारों की कल्पना करना बहुत कठिन नहीं है. यह अवश्य रेखांकित किया जाना चाहिए कि जन धन योजना शुरू करने के दूरदर्शी निर्णय और कम समय में इसके सफल क्रियान्वयन के बगैर पिछले दशक में भारत की विकास संबंधी उपलब्धियां काफी कमतर होतीं.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)