आलोक पुराणिक, वरिष्ठ व्यंग्यकार
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चालू विश्वविद्यालय ने लॉकडाउन विषय पर निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया, इस प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार प्राप्त निबंध इस प्रकार है- लॉकडाउन भी सरकारों की तरह कई तरह के होते हैं- चुस्त लॉकडाउन, सुस्त लॉकडाउन, ढीला लॉकडाउन, टाइट लॉकडाउन, नाम-मात्र का लॉकडाउन, पहला लॉकडाउन, चौथा लॉकडाउन, कंपलीट लॉकडाउन, आंशिक लॉकडाउन, पाक्षिक लॉकडाउन, साप्ताहिक लॉकडाउन, वार्षिक लॉकडाउन आदि-आदि. लॉकडाउन में कई तरह की गतिविधियां होती हैं, लोग अंत्याक्षरी खेलने लगते हैं, तरह तरह के खाने बनाने लगते हैं, जो यह सब नहीं कर पाते, हालात से त्रस्त होकर सड़कों पर चलने लगते हैं, उन्हे हम प्रवासी मजदूर कहते हैं. लॉकडाउन इनके लिए अंत्याक्षरी या खाने-पीने का वक्त नहीं होता, गहरे संकट का वक्त होता है.
संकट गहरा हो या उथला हो, नेताओं के लिए हमेशा मौके के तौर पर आता है. नेता एक ही काम में बिजी रहते हैं कि किस मौके को वोटों में तब्दील करने की प्रक्रिया चलायी जाये, यानी कुल मिलाकर नेतागिरी पर कभी भी लॉकडाउन ना होता. लॉकडाउन वैसे ऑनलाइन अपराध में भी नहीं होता. इसे देखते हुए हमें यह नहीं मानना चाहिए कि नेताओं और ऑनलाइन चोरों में गहरी समानता होती है. लॉकडाउन गहन परीक्षाओं का वक्त होता है. पत्नी का टेस्ट यह होता है कि वह कितनी देर तक, कितने दिनों तक, कितने हफ्तों तक अपने पति को घर में झेल सकती है.
घर में बैठा पति बहुत खतरनाक सास के मुकाबले भी ज्यादा बड़े स्तर की सास साबित होता है, ऐसा कई समाजशास्त्रियों का मानना है. फिर भी भारतीय परिवार नामक संस्था बहुत मजबूत संस्था है, झेलेबिलिटी के हर टेस्ट में यह खरी उतरी है. यानी दो महीनों से पति घर में पड़ा हुआ है, फिर भी पत्नी उससे इज्जत से ही बात कर रही है, इससे साबित होता है कि भारतीय पत्नियों की झेलेबिलिटी क्षमताएं अपार हैं. पति की अपार क्षमता कि वह भी पत्नी को झेलता रहा है कई हफ्ते. और, बच्चों की झेलेबिलिटी क्षमताएं तो परम अपार सुपर हैं, वो दोनों को एक साथ झेलते हैं चौबीस घंटे.
इन दिनों मुल्क कवियों का लाइव होना भी झेलता है. कवि रोज फेसबुक पर बताता है कि आज दोपहर तीन बजे लाइव रहूंगा फेसबुक पर फलां फलां पेज पर. इसे धमकी माना जाये या सूचना, यह सवाल पहले उठता था. पर अब इतने कवि लाइव होने लगे हैं, अगर यह धमकी भी है, तो कई कवियों की सामूहिक धमकी मानी जाये. लॉकडाउन में कवि का लाइव होना बहुत भीषण घटना है. मतलब कोई कोई तो इसे दुर्घटना तक मानता है.
कवि सिर्फ लाइव ही नहीं होता, लाइव होने के बाद पूछता भी है कि मैं लाइव था, तुमने देखा कि नहीं. अगर आप कहें कि देखा, तो फिर वह डपटता है कि तारीफ में बहुत लंबा से कमेंट क्यों ना लिखा. अगर आप कहें कि आपने ना देखा, तो वह ज्यादा डपटता है-तुम करते क्या हो! लॉकडाउन में कवि लाइव है, इससे बड़ी घटना क्या है, देखो, देखो. देश बहुत झेलशील है, सो फेसबुक पर लाइव कवियों को भी झेलता है जी.