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असफल हो रहा है बिजनेस का ‘कैश बर्निंग मॉडल’

जब किसी व्यवसाय में रणनीतिक तौर पर नुकसान करते हुए एकाधिकार करने की कोशिश होती है, तो उसके साथ पूंजी भी घटती है और व्यवसायी की परिसंपत्तियां भी कम होती हैं

पिछले लगभग डेढ़ वर्ष में नये जमाने की कई ऐसी कंपनियों, जिनमें अधिकांश नुकसान में फंसी ई- कॉमर्स कंपनियां थीं, ने सेबी के कुछ प्रावधानों के अंतर्गत आइपीओ जारी किया. आम निवेशकों ने इन कंपनियों के पूर्व में बढ़ते जा रहे बाजार मूल्यांकन से प्रभावित होकर बड़ी मात्रा में इनके शेयर खरीदे. जुलाई 2021 में जोमैटो, नवंबर 2021 में नाइका, पेटीएम और पॉलिसीबाजार, मई 2022 में देहलीवरी ने जनता को शेयर जारी किये. निवेशकों ने बड़े चाव से इन शेयरों को खरीदा था, लेकिन निवेशकों को भारी नुकसान उठाना पड़ा.

नवंबर 2022 तक पॉलिसीबाजार के निवेशकों की 69 प्रतिशत राशि डूब गयी. पेटीएम में 65.4 प्रतिशत, नाइका में 49.34 प्रतिशत, जोमैटो में 41.39 प्रतिशत और देहलीवरी में 31.33 प्रतिशत का नुकसान निवेशकों को सहना पड़ा है. जोमैटो के निवेशकों के लगभग 40,911 करोड़, पॉलिसीबाजार के लगभग 37,277 करोड़ , नाइका के लगभग 51,469 करोड़, देहलीवरी के लगभग 12,175 करोड़ और पेटीएम के निवेशकों के सबसे अधिक लगभग 66,169 करोड़ रुपये नवंबर 2022 तक डूब गये.

ये सभी कंपनियां शेयर जारी होते समय भी नुकसान में थीं और अभी भी नुकसान में हैं. वास्तव में इन कंपनियों का बिजनेस मॉडल ही ‘कैश बर्निंग मॉडल’ है. बिजनेस का परंपरागत तरीका तो लाभ अधिकतम करने का है. आर्थिक सिद्धांतों में अधिकतम लाभ के अलावा, अधिकतम बिक्री का उद्देश्य भी बताया जाता है. हालांकि उसमें भी तात्कालिक रूप से नुकसान नहीं लेते हुए, दीर्घकाल में लाभों को अधिकतम करने की उनकी रणनीति भी रही.

पिछले दो दशकों से बिजनेस का एक नया मॉडल, ‘कैश बर्निंग मॉडल उभर कर आया, जो प्रारंभ में सफल होता दिखाई दिया. इसकी शुरुआत ई-कॉमर्स व्यवसाय में हुई. प्रारंभ में लगा कि ई-कॉमर्स कंपनियां लोगों को लुभाने के लिए उन्हें सस्ते में माल देती हैं, बाद में वे उसकी भरपाई कर लेंगी,

पर जब कंपनियों ने छोटे दुकानदारों, थोक व्यापारियों आदि को बाजार से बाहर करने की रणनीति के तहत दशकों तक नुकसान करते हुए अपने व्यवसाय को जारी रखा, तो उनकी कार्यनीति को आर्थिक विश्लेषकों ने समझने का प्रयास किया. पता चला कि कैश बर्निंग दीर्घकालिक रणनीति है, जो प्रमोटरों को मालामाल कर रही है और व्यवसाय में भी भारी वृद्धि कर रही है.

सामान्य तौर पर जब किसी व्यवसाय में रणनीतिक तौर पर नुकसान करते हुए एकाधिकार करने की कोशिश होती है, तो उसके साथ पूंजी भी घटती है और व्यवसायी की परिसंपत्तियां भी कम होती हैं, पर पिछले दो दशकों से चल रहे ‘कैश बर्निंग मॉडल’ ने गणना का तरीका ही बदल दिया है. दो युवाओं ने एक कंपनी बनायी, फिल्पकार्ट. इस ई-कॉमर्स कंपनी ने बाजार कीमत से 20 से 30 प्रतिशत कम पर सामान बेचना शुरू किया.

माल सस्ता बेचने के कारण प्रारंभिक राशि समाप्त हो गयी थी. सो उन्होंने बाजार में निवेशकों के साथ संपर्क साधा और उस व्यवसाय में राशि लगाने को कहा. उस कंपनी की खासियत यह थी कि बड़ी संख्या में ग्राहकों की जानकारियां उनके पास थीं और उनका विश्वास भी उन्होंने अर्जित कर लिया था. उस आधार पर कंपनी का मूल्यांकन किया गया और हिस्सेदारी के रूप में कुछ प्रतिशत शेयर निवेशकों को देकर एक बड़ी राशि प्राप्त की गयी.

बाद में वह राशि भी डिस्काउंट और अत्यधिक कम कीमतों में उड़ा दी गयी. तब तक कंपनी का मूल्यांकन और बढ़ गया था तथा नये निवेशकों ने हिस्सेदारी के रूप में कुछ और प्रतिशत लिया एवं बड़ी राशि कंपनी को दी. यह प्रक्रिया चलती रही. अप्रैल 2018 में वालमार्ट ने कंपनी का मूल्यांकन 20 अरब डॉलर का किया और फिल्पकार्ट के 77 प्रतिशत शेयर 15.4 अरब डॉलर में खरीद लिये, जिसमें बड़ा हिस्सा उन दो प्रमोटर युवाओं को भी मिला.

अगस्त 2017 में एक निवेशक कंपनी, सॉफ्टबैंक ने फिल्पकार्ट के 22 प्रतिशत शेयर फिल्पकार्ट के मूल्यांकन, 10 अरब डालर, के हिसाब से 2.2 अरब डॉलर में खरीदे थे. जब वालमार्ट ने इस कंपनी के 77 प्रतिशत शेयर 20 अरब डालर के मूल्यांकन के आधार पर खरीदे, तो सॉफ्टबैंक को 2.2 अरब डॉलर के निवेश के बदले 4.4 अरब डॉलर मिले. इस ‘कैश बर्निंग मॉडल’ में अभी तक किसी को नुकसान नहीं हुआ था, पर कहानी इसके बाद भी है.

पिछले लगभग डेढ़ वर्ष में जिन कंपनियों, जिन्होंने कैश बर्निंग मॉडल के बूते अपना व्यवसाय बढ़ाया और उनका मूल्यांकन जरूरत से अधिक होता रहा, उन्हें बड़ी मात्रा में निवेश मिलता रहा. जब इन कंपनियां में निवेशक बंद कमरे में निवेश कर रहे थे, तब ये कंपनियां अच्छी वैल्यूएशन प्राप्त कर रही थीं, पर जैसे ही बाजार में इसका मूल्यांकन हुआ, तो उसका परिणाम भी सामने आ गया.

इन कंपनियों के शेयरों में इतनी कम अवधि में इतना बड़ा नुकसान उनके बिजनेस मॉडल पर प्रश्नचिह्ल खड़ा कर रहा है. ये सब वे कंपनियां हैं, जिन्होंने अपने व्यवसाय और उसके मूल्यांकन को कैश बर्निंग मॉडल के आधार पर बढ़ाने का प्रयास किया. यदि इन स्टार्ट अप्स को भविष्य में अपने व्यवसाय को विस्तार देने हेतु निवेश प्राप्त करना है, तो उसे अपने बिजनेस मॉडल को बदलना होगा या ‘कैश बर्निंग’ को बंद करना होगा.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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